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राह मुश्किल सही हौसला बनाए रखिए

आजादी के इतने बरसों बाद क्या सभी को आगे बढ़ने के समान मौके मिल पा रहे हैं? सवाल गंभीर है, लेकिन जरूरी भी। विकास की राह मुश्किल भले हो, मगर हौसले बुलंद हों और दूसरों को साथ लेकर चलने का जज्बा हो तो राह आसान हो सकती है। अपनी आजादी के साथ दूसरे की आजादी का भी सम्मान करें, यही है आगे बढ़ने की जरूरी शर्त।

By Edited By: Published: Wed, 22 Aug 2012 02:51 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2012 02:51 PM (IST)
राह मुश्किल सही हौसला बनाए रखिए

अजादी का एक सुनहरा ख्वाब  यह भी था कि सबको आगे बढने के समान अवसर मिल सकें। आजादी  के इतने बरसों बाद क्या वास्तव में ऐसा हो पा रहा है? यह सवाल भी है कि आजादी  की इस राह में कहीं दूसरों की आजादी  का हनन तो नहीं हो रहा? हम अपने लिए तो आजादी  चाहते हैं लेकिन क्या इसी तरह दूसरे की आजादी  की परवाह भी कर पाते हैं? इन्हीं सवालों पर अलग-अलग विचार।

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जिन्हें खिलना है वे कांटों से नहीं घबराते

हेना चक्रबर्ती, चित्रकार

आजादी  के बाद आगे बढने के लिए सबको समान अवसर मिले हैं, मेरा यही मानना है। यह काफी हद तक व्यक्ति पर भी निर्भर करता है कि वह कहां जाना चाहता है और अपना विकास कैसे करना चाहता है। इच्छाशक्ति से ही लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। सफलता एक अमूर्त धारणा है। मैं चित्रकार हूं। मैंने समाज से बहुत लिया है तो उसे भरसक देने की कोशिश भी की है। समाज ही मेरी प्रेरणा है और यही मेरा कार्यक्षेत्र है। सच कहूं तो कलाकार का जीवन संघर्षो से ही आगे बढता है, संघर्ष नहीं होंगे तो कला निखरेगी कैसे? संघर्ष तो कलाकार के अनुभवों का अनमोल खजाना हैं।

मुझे स्त्री होने के नाते कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पडा, न कभी ऐसा लगा कि मुझे मौके नहीं मिल रहे हैं। हां, कई बार कमर्शियल जीवन व निजी पसंद के बीच कुछ दुविधाएं जरूर आती हैं, क्योंकि कला मेरा शौक है और यही मेरी जीविका भी है। मगर अपनी सीमाओं के भीतर मैंने कोशिश की है कि जो चाहती हूं वह काम कर सकूं। मैं अपने साथ काम करने वाले अन्य लोगों के लिए भी ऐसा ही माहौल चाहती हूं, जिसमें वे स्वतंत्र ढंग से अपना विकास कर सकें। चाहे मेरी बेटी हो, मेरे जूनियर्स हों या फिर मेरी डॉमेस्टिक हेल्पर। बेटी को एनिमेशन में करियर बनाने के लिए यूके से कोर्स करना था। मैंने उसे पूरा मौका दिया आगे बढने का।

मैंने आजादी देना सीखा है और शायद इसलिए मुझे भी आजादी मिली है।

दुनिया में कांटे भी हैं, खर-पतवार भी, लेकिन इन्हीं के बीच रह कर फूल खिलते हैं। जिन्हें खिलना होता है वे कांटों से नहीं घबराते। हालांकि हमारे इर्द-गिर्द ऐसे लोग भी हैं जो खुद के लिए आजादी चाहते हैं, लेकिन दूसरों की आजादी को नहीं सहन कर पाते। मगर मैं यह भी मानती हूं कि दुनिया में अच्छे लोग ज्यादा  हैं, तभी तो ये दुनिया चल रही है।

आगे बढना है तो जोखिम उठाना होगा

डॉ. के.के. अग्रवाल, सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट  और अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन, दिल्ली

मैं हेल्थ सेक्टर में हूं तो इसी क्षेत्र के बारे में बात करूंगा। चिकित्सा क्षेत्र में आज भी भारत और इंडिया अलग-अलग हैं। भारत का अर्थ है-पिछडा हुआ और इंडिया का अर्थ है- पाश्चात्य प्रभाव। आजादी के इतने वर्षो बाद भी मेडिकल केयर में कोई एकरूपता नहीं है। मान लीजिए, किसी को हार्ट अटैक पड जाए तो उसके बचने की उम्मीद इस बात से निर्धारित होती है कि उसे अटैक किस जगह पडा है, दिल्ली-मुंबई या फिर किसी छोटे शहर में। इतने वर्षो बाद भी आम जनता की सेहत को लेकर इतनी लापरवाही है। गांवों-देहातों में न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। चिकित्सा क्षेत्र में विकास का यह हाल है। रही बात निजी तौर पर आगे बढने-विकास करने की तो मैं मानता हूं कि मौके सभी को मिलते हैं। बस, स्थितियों को अपने अनुकूल ढालना पडता है। मैं आज अगर एक मुकाम पर हूं तो इसलिए नहीं कि मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुआ था। 11 भाई-बहन और माता-पिता के साथ एक ही कमरे में रहते थे हम। काफी मुश्किलें थीं, लेकिन धीरे-धीरे आगे बढता गया। किसी ने एक उंगली पकडा दी तो हाथ पकड लिया। मौके आगे बढ कर लेने पडते हैं। अगर कुछ करना है तो सही समय का इंतजार न करें, आगे बढें और समय को सही बना लें। जोखिम उठाए बिना कुछ सीखा नहीं जा सकता। इसलिए कुछ करना है तो जोखिम उठाने का माद्दा भी होना चाहिए।

आजादी का सपना सबका हो अपना

अमित कुमार श्रीवास्तव, विजुअलाइजर-आर्टिस्ट मैं कभी-कभी सोचता हूं कि क्या आजादी का दिन महज दोस्तों को एसएमएस  करना, टीवी पर देशभक्ति मूवी देखना या छुट्टी मनाना है? हम सभी आगे बढने की आजादी चाहते हैं। इसके लिए घर में पेरेंट्स  से बहस करते हैं, दोस्तों से झगडते हैं, ऑफिस में कुंठित होकर नियमों के खिलाफ जाते हैं। हम अपने अहं को ऊपर रखते हैं। लेकिन इन सबके बीच हम असल आजादी के मायने भूल गए हैं। सोचें,आगे बढने के लिए हमने कितनों को पीछे धकेला है! अपनी आजादी के लिए कितनों की आजादी  छीनी है! जब तक हम रूल करने की मानसिकता से मुक्त नहीं होंगे, तब तक न हम अपना विकास कर सकेंगे, न दूसरों को आगे बढने का मौका दे सकेंगे। आज चंद लोग इस कोशिश में जुटे हैं कि एक वास्तविक लोकतंत्र का निर्माण हो सके, सबको आगे बढने के समान मौके मिल सकें। हमें उनके साथ खडा होना होगा और आजादी की मुहिम अपने घर से शुरू करनी होगी। छोटों की बात सुननी होगी, पेरेंट्स के बारे में सोचना होगा, अन्याय-भेदभाव के खिलाफ आवाज  उठानी होगी। निजी हित से ऊपर उठ कर दूसरों के बारे में सोचना होगा, तभी सबका स्वस्थ विकास हो सकेगा।

विकास की रफ्तार बहुत धीमी है

रंजना गौहर, ओडिसी  नृत्यांगना

नृत्य के क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर तो है, लेकिन इससे स्थिति बेहतर नहीं हो जाती। जब तक कल्चर को खाने-पीने, करियर, पैसे व हेल्थ की तरह प्राथमिकता नहीं मिलेगी, कला आगे नहीं बढेगी। देश का भावनात्मक स्वास्थ्य है कला-संस्कृति। हालांकि मैं मानती हूं कि मौके बढे हैं, लेकिन कडी प्रतिस्पर्धा भी है। हमारे समय में मुश्किलें ज्यादा थीं, लेकिन हम नए कलाकारों के लिए बेहतर माहौल बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। आज का समय संपर्क आधारित है। कला में भी पी.आर. का महत्व बढ गया है। आप किस पृष्ठभूमि के हैं और आपके संपर्क कैसे हैं, इससे भी भविष्य निर्धारित होता है। फिर भी मैं बेहद आशावादी हूं। मैं मानती हूं कि धीमी रफ्तार से ही सही, कला का विकास हो रहा है। हमारी एक परेशानी यह भी है कि क्लासिकल डांस के लिए ऑर्गेनाइजर जल्दी आगे नहीं आते, जबकि बॉलीवुड व पॉपुलर फॉर्म के लिए ऑर्गेनाइजर जल्दी मिलते हैं। दूसरी ओर नृत्य में डबल रोल बढ गए हैं। लोग नौकरी के साथ डांस कर रहे हैं। मेरी डांस अकेडमी  उत्सव में 40-45 बच्चे हैं, मगर आगे जाकर उनमें से 4-5 ही टिकते हैं। मैं युवा पीढी को दोष नहीं देती, क्योंकि कला के साथ उन्हें पैसा भी तो चाहिए। सरकार को डांसर्स की पेमेंट बढाने पर विचार करना चाहिए। उन्हें भी अपनी ग्रूमिंग करनी होती है, कॉस्ट्यूम-ज्यूलरी, यात्राओं  पर खर्च होता है, लेकिन उनकी पेमेंट बहुत कम है। यदि हम सुसंस्कृत समाज की कल्पना करते हैं तो हमें कला और देश के सांस्कृतिक स्वास्थ्य को बचाना भी होगा।


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