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सफर समर्पण से समझदारी तक

फास्ट लेन पर दौड़ रहे हैं महानगरीय रिश्ते। घर-बाहर की उठापटक, किस्तों पर खरीदी जा रही खुशियों, महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं की रस्साकशी के बीच कसमसा रहे हैं दांपत्य संबंध। मगर इन्हीं के बीच एक नया और प्यारा संबंध भी पनप रहा है। दोस्ती, सहयोग और साझेदारी की भावना बढ़ने लगी है। रिश्तों की परंपरागत बारहखड़ी में कुछ नए अक्षर जुड़ने लगे हैं। इन्हीं बदलावों पर एक नजर इंदिरा राठौर की।

By Edited By: Published: Sat, 10 May 2014 11:19 AM (IST)Updated: Sat, 10 May 2014 11:19 AM (IST)
सफर समर्पण से समझदारी तक

पर्सनल स्पेस, निजी आजादी, ब्रीदिंग स्पेस, क्वॉलिटी टाइम, सरप्राइज, गिफ्ट्स, सेलब्रेशन..ये सारे शब्द आधुनिक दंपतियों की डिक्शनरी में कुछ साल पहले ही आए हैं। मेट्रो लाइफ में ये शब्द अब महज सैद्धांतिक नहीं रहे, बल्कि कपल्स की रोजमर्रा की जिंदगी में इनका महत्व नजर आने लगा है।

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पच्चीस-तीस साल पहले शादी की सफलता के लिए समझौता, त्याग, धैर्य, वैचारिक समानता जैसे आधार जरूरी थे। आधुनिक जीवन में भी इनका महत्व है, लेकिन नए दंपती अपने रिश्तों में कुछ और बातों पर भी जोर दे रहे हैं। ये वही बातें हैं, जिनका जिक्र शुरू में किया गया है।

हर नई पीढी पहले की तुलना में प्रगतिशील, वैचारिक रूप से संपन्न, व्यावहारिक और लचीली होती है। पिछले 15-20 वर्षो में कपल्स की जिंदगी में कुछ क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। वे एक-दूसरे के पर्सनल स्पेस को महत्व दे रहे हैं और दूसरे के व्यक्तित्व का सम्मान कर रहे हैं। वैचारिक समानता हो या न हो, मगर वे दूसरे के विचारों को महत्व दे रहे हैं। स्त्री-पुरुष की परंपरागत भूमिकाएं भी बदलने लगी हैं।

कल और आज की बहस

हमारे जमाने में हर कीमत पर परिवार को बचाने की कोशिशें होती थीं। हम शादी निभाने के बारे में सोचते थे, मगर अब दोनों सोचते हैं कि मैं क्यों झुकूं, कहती हैं रूपाली ठाकुर, जो कुछ ही महीने पहले सास बनी हैं।

कॉरपोरेट सेक्टर में कार्यरत उनकी 27 वर्षीय बहू शगुन तपाक से कहती हैं, हर हाल में निभाना..? मम्मी जी, इसलिए क्योंकि तब निभाने के सिवा कोई विकल्प नहीं था। हमें एक जिंदगी मिली है, उसे भी समझौतों में बिता दें? घर-बाहर हमारे तनाव भी तो बढे हैं। घर-गाडी की किस्तें, ऑफिस पॉलिटिक्स, सडक पर बढता ट्रैफिक, बिल, काम वाली बाई का टेंशन..। इतने तनावों के बाद संबंधों का दबाव हम नहीं झेलना चाहते..।

कल और आज की यह बहस शाश्वत है। यह भी सच है कि बिना एक-दूसरे को देखे और जाने-समझे भी पहले शादी उम्र भर चल जाती थी। अरेंज्ड मैरिज में कोर्टशिप का कॉन्सेप्ट कुछ ही साल पुराना है। लव मैरिज मुश्किल थी तो लिव-इन-रिलेशनशिप पोस्ट मॉडर्निज्म की कोई चीज हुआ करती थी।

बारात दरवाजे पर खडी थी, तुम्हारे दादा जी ने मुझे देखा और मैंने उन्हें और प्यार हो गया.., एक कमर्शियल में दादी अपनी पोती को बताती हैं। तब लडकियों को विदाई के समय लंबे-चौडे परिवारों में एडजस्टमेंट के नुसखों की बडी सी पोटली थमाई जाती थी। मगर अब स्थितियां काफी बदल चुकी हैं।

थोडा तुम झुको-थोडा हम

अब पति-पत्नी खुद को एक-दूसरे के अनुसार बदल रहे हैं। मैंने वाइफ के लिए सुबह जल्दी उठना सीखा, क्योंकि उन्हें वॉक की आदत है। उनके लिए थोडी-बहुत कुकिंग भी सीखी, कहते हैं मनीष गर्ग, जो आइटी सेक्टर में हैं और हाल ही में इन्होंने छह साल पुरानी गर्लफ्रेंड से शादी की है।

थैंक गॉड, मुझे मनीष मिला। शादी के बाद भी हमारी दोस्ती खत्म नहीं हुई है। हम दोनों ने एक-दूसरे की जरूरतों के हिसाब से खुद को बदला है। हम मिल कर घर के काम करते हैं। पांच दिन हमारी दिनचर्या बहुत व्यस्त रहती है, लेकिन वीकेंड्स पर एक-दूसरे को क्वॉलिटी टाइम देते हैं। कहीं भी घूमने निकल जाते हैं.., कहती हैं वाणी, जो एक प्राइवेट फर्म में मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव हैं।

बदले हैं परिवार भी

एडजस्टमेंट परिवार भी कर रहे हैं, कहती हैं श्रद्धा भल्ला, जिनकी सात महीने पूर्व अरेंज्ड मैरिज हुई है। शादी के तुरंत बाद ऑफिशियल असाइनमेंट पर उनके पति करन को कोरिया जाना पडा। इस बीच वह सास-ससुर के साथ रहीं। कहती हैं, वे मेरे बेस्ट फ्रेंड्स हैं। करन तो हाल ही में इंडिया लौटे। इस बीच मुझे उनके पेरेंट्स को समझने का मौका मिला। वे मेरी बहुत केयर करते हैं। मुझे लगता है, अगर मेरी सास मंडे से फ्राइडे मुझे स्कर्ट पहनने की इजाजत दे सकती हैं तो शनिवार-रविवार मैं उनके हिसाब से सलवार-सूट पहन सकती हूं। मेरी ससुराल में सालों से होली नहीं मनाई गई थी। मगर इस साल मेरी खातिर न सिर्फ होली मनाई गई, बल्कि पार्टी भी की गई, क्योंकि मुझे होली बहुत पसंद है। अगर मेरे सास-ससुर मेरे लिए इतना करते हैं तो मैं उनकी छोटी-छोटी खुशियों के लिए क्यों न समझौते करूं? अब लडकियां प्रोफेशनल हैं। सास-ससुर उनकी प्रॉब्लम्स समझते हैं। वे खुद को उनके हिसाब से ढालते हैं।

श्रद्धा की बात से सहमत हैं शिवानी शर्मा, जिन्होंने एक साल पहले लव मैरिज की है। कहती हैं, मैंने जब कहा कि मैं लगातार चूडा नहीं पहन पाऊंगी तो मेरी दादी सास (सास की सास) ने आसानी से मेरी बात मान ली और बोलीं, तुम्हारी मर्जी है-तुम पहनो या न पहनो। हालांकि शिवानी को यह भी लगता है कि अरेंज्ड मैरिज में परिवार ज्यादा सपोर्टिव होते हैं। कहती हैं, बच्चों की खातिर कई बार पेरेंट्स लव मैरिज के लिए तैयार तो होते हैं, लेकिन मन से नहीं स्वीकार पाते। यह मेरा निजी अनुभव है। मगर यह भी सच है कि एडजस्टमेंट और बदलाव की कोशिश दोनों ओर से जारी है..।

मैं, तुम और हम

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ काउंसलिंग की चेयरपर्सन डॉ. वसंता आर. पत्रे कहती हैं, अब पति-पत्नी के रिश्ते ज्यादा डेमोक्रेटिक हैं। आज से 25-30 पहले की तरह ये बॉस और अधीनस्थ वाले संबंध नहीं रहे, बल्कि इनमें पार्टनरशिप और कंपेनियनशिप पनप रही है। यह शादी का नया कॉन्सेप्ट है। आज के लडका-लडकी एक-दूसरे के परिवार को भी सपोर्ट करने लगे हैं। मेरा-तुम्हारा के बजाय हमारा का भाव बढ रहा है रिश्तों में। यह हेल्दी रिलेशनशिप है। समान भागीदारी घरेलू कामों, निवेश, परिवार संबंधी निर्णयों में नजर आ रही है। बच्चे को जन्म देने से लेकर उनकी परवरिश तक यह भागीदारी साफ दिख रही है। युवा वर्ग शादी की अहमियत समझ रहा है, लेकिन इस संस्था में बदलाव की जरूरत भी महसूस करता है। अब कपल्स एक-दूसरे के लिए त्याग से ज्यादा सहयोग पर भरोसा रखने लगे हैं। यह शादी जैसी संस्था के लिए अच्छा संकेत है। जहां लोग इस जरूरत को नहीं समझ रहे, वहां प्रॉब्लम्स हो रही हैं। पति-पत्नी के बीच परस्पर-निर्भरता और सामूहिकता की भावना पैदा हुई है। मेरे हिसाब से यह सकारात्मक बदलाव है।

स्पष्ट इच्छाएं और चाहतें

मूलचंद मेडिसिटी, दिल्ली की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. पूजा शिवम जेटली कहती हैं, कपल्स को पता है कि उन्हें खुद से, रिश्तों व पार्टनर से क्या चाहिए। वे यह भी जानते हैं कि रिश्तों को क्या देना चाहते हैं। अब परवरिश इस तरह की है कि बच्चों का व्यक्तित्व विकसित हो, उनमें निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो सके। आज के दौर में कपल्स की एक-दूसरे पर आर्थिक निर्भरता कम हुई है। इससे संबंधों में बराबरी आई है। युवा शादी से पहले फाइनेंशियल प्लानिंग कर रहे हैं। घरेलू कामों में सहयोग बढा है। यह बदलाव छोटे शहरों में भी शुरू हुआ है। संबंधों में क्वॉलिटी फैक्टर बढा है। जहां स्त्रियां नौकरी नहीं कर रही हैं, वहां भी वे सिर्फ हाउसवाइफ नहीं, होम मैनेजर की भूमिका में हैं। घरेलू कार्यो के अलावा उनके जिम्मे बाहर के भी कई काम हैं। वे अब महज पति की परछाई नहीं हैं, उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व तैयार हो रहा है। संयुक्त परिवारों में भी संबंध बदलने लगे हैं। घर की बहू से की जाने वाली अपेक्षाओं में बदलाव आया है।

रोल रिवर्सल

वैवाहिक संबंधों में आ रहे इन बदलावों को फिल्में और विज्ञापन भी खूब दिखा रहे हैं। बाजार से सामान लेकर लौटती स्त्री का स्वागत पति खाना बना कर करता है। पति-पत्नी साथ मिल कर बर्तन साफ करते हैं..। अब घर की ड्राइविंग सीट पर सिर्फ उसके मुखिया का अधिकार नहीं रहा, स्त्री भी इस ड्राइविंग फोर्स में बराबर की हिस्सेदारी निभा रही है।

एक रिसर्च के मुताबिक यूएस में घरेलू जिम्मेदारियों की शेयरिंग शादी में बहुत बडा मुद्दा है। यहां के 62 फीसद कपल्स मानते हैं कि शादी की सफलता में इस तरह की व्यावहारिक शेयरिंग बडी भूमिका निभाती है।

भारत में कामों का यह बंटवारा महानगरों में बसे नए परिवारों में दिखने लगा है। मसलन, श्रद्धा को कुकिंग नहीं आती, लेकिन इससे हज्बैंड करन को फर्क नहीं पडता। वह खुद कुकिंग कर सकता है। यह ऐसा बदलाव है, जिसकी कल्पना 30 साल पहले मुश्किल थी। श्रद्धा कहती हैं, लडकियों के प्रोफेशनल जीवन में आने से स्थितियां ज्यादा बदली हैं। मैरिज मार्केट में भी अब लडकियों से की जाने वाली अपेक्षाओं में बदलाव आया है। प्रोफेशनल होना और ड्राइविंग आना जैसी शर्ते रखी जाने लगी हैं। अगर लडकी ड्राइविंग जानती है तो लडके को तसल्ली रहती है कि वह इमरजेंसी में घर की हेल्प कर सकेगी या बूढे मां-बाप को हॉस्पिटल ले जा सकेगी.।

शिवानी को भी किचन में पति का सहयोग मिलता है। उनकी सास नौकरीपेशा हैं, लिहाजा ससुर घरेलू कामों में मदद करते हैं। अटैचमेंट की शुरुआत इनकी जिंदगी में कुछ इस तरह हो रही है कि शनिवार की पूरी छुट्टी यह कपल पेरेंट्स के लिए रखता है और रविवार खुद के लिए।

लाइफस्टाइल एक्सपर्ट डॉ. रचना खन्ना कहती हैं, लडकियों के नौकरी करने से परिवारों में जेंडर रोल बदले हैं। लडकियां घर की आर्थिक मदद कर रही हैं तो लडके भी घरेलू कामों में सहयोग कर रहे हैं। जीवनशैली व्यस्त हुई तो रिश्तों में पर्सनल स्पेस, मी टाइम, क्वॉलिटी टाइम जैसी जरूरतें महसूस होने लगीं। कपल्स एक-दूसरे को क्वॉलिटी टाइम देना चाहते हैं तो दूसरे को पर्सनल स्पेस भी देना चाहते हैं। हालांकि बदलाव महानगरों में ज्यादा दिख रहे हैं। छोटे शहरों में परिवारों का ढांचा काफी हद तक परंपरागत है।

तैयार हो रहे हैं नए आधार

आज के युवा 20-30 साल पहले के कपल्स से ज्यादा परिपक्व हैं। वे विपरीत स्थितियों में रिश्तों को संभालना जानते हैं। दांपत्य का मतलब यह नहीं है कि दूसरे के लिए अपने विश्वास, आस्थाएं, पसंद-नापसंद, मूल्य और प्राथमिकताएं बदल लें। सुखद दांपत्य में एक-दूसरे को सहयोग देते हुए दोनों दूसरे की निजी स्वतंत्रता का सम्मान भी करते हैं। सहयोग व साझेदारी की भावना पति-पत्नी के बीच नए व बराबरी के रिश्ते को जन्म देती है। रिश्ते में रोमैंस और प्यार का स्पार्क बना रहे, इसके लिए नए दंपतियों की कोशिशें जारी हैं। व्यस्त जीवनशैली में प्यार की अभिव्यक्ति भी महत्वपूर्ण है। शायद इसलिए बर्थडे, वेलेंटाइन डे, मैरिज एनिवर्सरी मनाने के साथ ही रोमैंटिक डिनर, सरप्राइज टूर पैकेज और गिफ्ट्स का आदान-प्रदान भी संबंधों में जरूरी समझा जाने लगा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में हुए एक शोध के मुताबिक, रिश्ते में त्याग या समझौते करने से कई बार व्यक्ति असंतुष्ट भी होता है। खासतौर पर एकतरफा समझौतों से रिश्ते में कमिटमेंट कम होता है और दूरी बढती है। जबकि सहयोग, साझेदारी या भागीदारी की भावना रिश्तों में प्यार बढाती है। बडे-बडे समझौतों के बजाय रोजमर्रा के जीवन में छोटे सहयोग जरूरी हैं। कपल्स इस जरूरत को समझ रहे हैं। अब वे दांपत्य को बेहतर बनाने के नए आधार तलाशने लगे हैं।

सहयोग का अलग मजा है

अजय देवगन, अभिनेता

मुझे लगता है कि शादी में एक-दूसरे पर भरोसा सचमुच जरूरी है, क्योंकि इसी से सामंजस्य की कला आती है। लेकिन एक-दूसरे के व्यक्तित्व को स्वीकारना और उसका सम्मान करना भी निहायत जरूरी है। आज अगर मैं करियर में आगे बढ पा रहा हूं तो इसका श्रेय काजोल को जाता है। वह ग्लैमर व‌र्ल्ड में हैं, इसके बावजूद उनकी समझदारी और परिपक्वता के कारण ही आज हम खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। हर पति को पत्नी के अस्तित्व का एहसास होना चाहिए। अगर पत्नी बाहर काम कर रही है तो उसे सहयोग दें और अगर वह हाउसवाइफ है तो उसे यह एहसास न होने दें कि उसका काम कमतर है। घर चलाना आसान काम नहीं है। मैं कभी-कभी घरेलू कार्यो में काजोल का हाथ बंटाता हूं। मेरे हाथ से बनी डिश कई बार हम दोनों मिल कर एंजॉय करते हैं। हालांकि मैं अच्छा कुक नहीं हूं। कई बार मेरे हाथों से बनी डिश के कारण मेरा मजाक भी बनता है। मगर छोटे-छोटे कामों में सहयोग का अलग आनंद है। मैं समझता हूं कि निजी या पेशेवर जिंदगी में चाहे जितने तनाव हों, उन्हें रिश्ते पर हावी न होने दें और अपने हमसफर के साथ खुशी और शेयरिंग के दो-चार पल जरूर निकालें, तभी जिंदगी की जंग मिल कर लड सकेंगे।

एडजस्टमेंट तो दोनों ओर से होता है

राघव सचार, म्यूजिक कंपोजर

मैंने लव मैरिज की है। पत्नी अमिता पाठक ऐक्ट्रेस हैं। मैं अरेंज्ड मैरिज में विश्वास नहीं करता। अगर हम पार्टनर को जानते ही नहीं तो शादी के बाद उसके साथ कैसे निभा सकते हैं? हालांकि मुझे लगता है कि शादी में कई बार समझौते भी जरूरी होते हैं, लेकिन ये दोनों ओर से होते हैं। एकतरफा होंगे तो मुश्किलें बढेंगी। शादी में पर्सनल स्पेस बहुत जरूरी है। कई बार ऐसा होता है कि अपने काम के लिए मुझे पर्सनल स्पेस चाहिए, जबकि उसी समय मेरी पत्नी को मेरे साथ की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में आपसी अंडरस्टैंडिंग ही काम आती है। अगर दोनों एक-दूसरे को समझते हैं तो वे स्थिति को समझ सकेंगे। शादी के बाद थोडा-बहुत बदलाव तो सबके भीतर आता है। मुझमें भी आया है और मेरी पत्नी ने भी खुद को बदला है। जब हम लगातार साथ रहते हैं तो धीरे-धीरे एक-दूसरे की आदतों, स्वभाव और पसंद-नापसंद को समझने लगते हैं। जैसे मुझे जल्दी ग्ाुस्सा आता है तो मेरी पत्नी को थोडा कूल होना होगा, ताकि बैलेंस हो सके। वैसे मैं भाग्यशाली हूं कि मेरी वाइफ मुझे कई सालों से जानती हैं, लिहाजा हम एक-दूसरे के बारे में अच्छी तरह समझते हैं। फिर भी शादी के बाद जिम्मेदारियां बढती हैं और रिश्तों का स्वरूप बदलता है। पहले केवल हम दोनों थे, पर अब हमारे परिवार भी हमारे साथ हैं, उनसे जुडी जिम्मेदारियों को भी हमें ही संभालना है। वैसे हम पर घरेलू जिम्मेदारियां कम हैं लेकिन जरूरत पडने पर हम कामों का बंटवारा भी करते हैं। अमिता घर में हैं तो वह बॉस हैं, वह जो भी निर्णय लेंगी, मैं मानूंगा। मैं कुकिंग नहीं कर सकता, जबकि अमिता को कुकिंग अच्छी लगती है। फुर्सत मिलने पर वह कुकिंग करती हैं। करियर और प्रोफेशन से जुडी बातें हम घर पर ज्यादा नहीं करते। हां, किसी को सलाह चाहिए तो अलग बात है। पति-पत्नी के बीच पारदर्शिता जरूरी है। इसी से भरोसा पनपता है। हम क्रिएटिव फील्ड में हैं। इसके अपने फायदे-नुकसान हैं। कई बार महीनों व्यस्त रहते हैं। ढेरों यात्राएं करनी होती हैं। अगर अमिता घर में हैं तो उन्हें पता है कि उन्हें अकेले कैसे मैनेज करना है। इसी समझदारी से रिश्ते आगे बढते हैं।

केयरिंग से स्पार्क बना रहता है रिश्तों में

इमरान खान, अभिनेता

मैं समझता हूं कि मॉडर्न लाइफस्टाइल में कपल्स के बीच कंपेनियनशिप जरूरी है। हम टिपिकल पति-पत्नी की तरह नहीं रह सकते। खासकर अगर कपल कामकाजी है तो एक-दूसरे के समय, स्पेस, विचारों और भावनाओं का खयाल रखना ही होगा। मुझे लगता है कि काम का दबाव, डेडलाइन, नौकरी जाने का भय.. यह सब माइंड गेम है। इन दबावों का असर रिश्तों पर नहीं पडना चाहिए। अब पति-पत्नी में कोई छोटा-बडा नहीं है। पत्नी भी समर्थ और सक्षम है। लेकिन कई बार सभी को थोडा ज्यादा केयरिंग की जरूरत पडती है। जैसे अभी मेरी पत्नी अवंतिका प्रेग्नेंट हैं। ऐसे में मेरी प्राथमिकता उनकी हेल्थ है। मैं ज्यादातर मीटिंग्स घर पर रखता हूं। उनकी डाइट, मेडिकल टेस्ट वगैरह का ध्यान रखता हूं। इस समय उन्हें इमोशनल सपोर्ट चाहिए, जो एक हज्बैंड होने के नाते मैं उन्हें दे सकता हूं। छोटी-छोटी चीजों का ध्यान रख कर मैं अवंतिका के संग अपने प्यार का स्पार्क बनाए रखता हूं। जब मुझे जरूरत पडी-उन्होंने मेरा साथ निभाया। अब उन्हें मेरी जरूरत है तो मैं उनका खयाल रखता हूं। दांपत्य को इसी तरह सुखद बनाया जा सकता है।

यही प्यार ताउम्र बरकरार रहता है

अक्षय कुमार, अभिनेता

मेरे लिए परिवार सबसे बडी प्राथमिकता है। शूटिंग से घर लौटता हूं तो ट्विंकल और बच्चों के संग वक्त गुजारने से अच्छा और कुछ नहीं लगता। परिवार के साथ छोटी-छोटी खुशियों को बांटने से बडा कोई सुख नहीं है। हम कितना भी मॉडर्न हो जाएं, परिवार में ही खुशी ढूंढते हैं। दुनिया की हर सफलता इस प्यार के आगे छोटी है और यही प्यार जिंदगी भर बरकरार रहता है। ट्विंकल के साथ घरेलू कामों में हाथ बंटाना मुझे अच्छा लगता है। एक-दूसरे को सहयोग देने से पति-पत्नी के बीच प्यार और जुडाव बढता है। मैं अपने सारे काम समय पर निपटा कर बाकी समय ट्विंकल और बच्चों को देता हूं। शादी और परिवार की व्यवस्था पर मुझे गहरा भरोसा है और मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चों में भी यह भरोसा कायम रहे। पारिवारिक मूल्यों में भी मेरी गहरी आस्था है। मैंने अपने ससुर जी (स्व.राजेश खन्ना) को बेटे आरव से ही मुखाग्नि दिलाई। वह पल उसके लिए बहुत भावुक था। लेकिन मुझे लगता है कि इससे बच्चे परिवार की कीमत समझ पाते हैं, उन्हें अपनों का महत्व समझ आता है, साथ ही वे जीवन की कटु सच्चाइयों से भी रूबरू होते हैं।

साक्षात्कार : मुंबई से अमित कर्ण, दुर्गेश सिंह, दिल्ली से इंदिरा राठौर

इंदिरा राठौर


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