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सकारात्मक सोच से बदलें जिंदगी

कहते हैं मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यह महज एक कहावत ही नहीं, सच्चाई भी है। हम अकसर अपनी आलोचना से इतने निराश हो जाते हैं कि जिंदगी से ही विश्वास टूट जाता है। इससे हमारा मनोबल तो गिरता ही है, काम करने की इच्छा भी खत्म हो जाती है। जबकि सफलता पाने के लिए जरूरी है कि हम अपनी क्षमताओं को पहचानें और आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए आगे बढ़ें।

By Edited By: Published: Wed, 22 Aug 2012 02:51 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2012 02:51 PM (IST)
सकारात्मक सोच से बदलें जिंदगी

कहने को तो हम आजाद भारत के नागरिक हैं, लेकिन आज भी अंदर ही अंदर ऐसी कई बातों के ग्ाुलाम हैं, जो न सिर्फ हमें आगे बढने से रोकती हैं, बल्कि हमारे चारों ओर ऐसा माहौल बना देती हैं कि हम अपनी ही सफलता के आडे आ जाते हैं। ऐसी तमाम बातों में से एक है नकारात्मक सोच। कई लोग अपने व्यक्तित्व व करियर को लेकर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं और जिंदगी से इतने निराश हो जाते हैं, मानो कुदरत ने सबसे ज्यादा परेशानियां उन्हें ही दी हैं। दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग सिर्फ अपनी कमजोरियों को ही याद रखते हैं। जरा अपने अंदर झांककर देखिए कहीं आप भी अपने व्यक्तित्व को कम करके तो नहीं आंकतीं? मैं बहुत मोटी हूं, मैं अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पाती.. ऐसी बहुत सारी बातें हमारे आसपास घूमकर अंदर तक चस्पा हो जाती हैं और हम अपने बारे में नकारात्मक सोचने लगते हैं। इस बार जब आप आजादी का जश्न मनाएं, तो खुद को इस भावना से आजाद करने की कोशिश करें।

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कैसे आती है नकारात्मकता

अमूमन लोग नकारात्मक नहीं सोचते लेकिन लगातार मिल रही असफलता या बार-बार हो रही आलोचनाओं के चलते नकारात्मक भावनाएं उनके ऊपर हावी हो जाती हैं। इससे उनके व्यक्तित्व पर काफी असर पडता है। कई बार तो लोग भावनात्मक रूप से टूट भी जाते हैं और अंदर ही अंदर आत्महीनता की ग्रंथियां निराशावादी सोच को किस तरह बढावा देती चली जाती हैं, पता भी नहीं चलता। ऐसी स्थिति से निकलने में लोगों को लंबा वक्त लगता है। नकारात्मक सोच का एक कारण आत्मविश्वास का कमजोर होना भी है। जब हमारे अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है, तो हमें किसी की कोई भी बात जल्दी बुरी लगती है।

जिंदगी से शिकवा क्यों

साहित्य में पैठ रखने वाली अंशु के दोस्त उसके प्रशंसक भी हैं, लेकिन अपनी सांवली रंगत की वजह से वह खुद को बदसूरत समझती है। जब कोई उसकी प्रशंसा करता है, तो उसे लगता है वह उसका मजाक उडा रहा है। अंशु की तरह ऐसे कई लोग हैं जो अपने व्यक्तित्व को लेकर हीनभावना के शिकार होते हैं। कई लोग करियर को लेकर भी हीनभावना से ग्रस्त होते हैं। यह हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि हमें अपने व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष जल्दी नजर आता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम सिर्फ उसे ही देखें। जिंदगी में अगर संघर्ष है, तो कामयाबी भी है फिर छोटी-छोटी बातों को लेकर उससे शिकवा क्यों किया जाए।

नजरिए में बदलाव

नकारात्मक प्रभाव से खुद को मुक्त करना मुश्किल नहीं है, बस हमें चीजों को देखने का नजरिया बदलना होगा। हर घटना के दो पहलू होते हैं। हमें अपने आपको यह प्रशिक्षण देना है कि कैसे हम सकारात्मक पहलू को पहले देखें। सकारात्मक नजरिया अपनाते ही नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देता है और हम नामुमकिन से लगने वाले काम भी आसानी से कर लेते हैं। हमारा नजरिया ही यह तय करता है कि हम असफलता को किस तरह लेते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के लिए सफलता की ही एक सीढी है असफलता इसलिए वे हारकर भी जीतने की कला जानते हैं।

सीखें इनसे भी

अगर आप महान व्यक्तियों की आत्मकथा पढें तो पाएंगी कि सारी विषम परिस्थितियों के बावजूद जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। एपीजे अब्दुल कलाम, बराक ओबामा जैसी तमाम शख्सीयते हैं, जिन्होंने सफलता के पहले संघर्ष का लंबा दौर देखा और बाद में भी कई बार आलोचनाओं के शिकार हुए, लेकिन इन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।

जब आएं नकारात्मक खयाल

-स्वयं की खूबियों का आंकलन करने के लिए आत्मनिरीक्षण करें और यह देखें कि आप कौन सा कार्य सबसे अच्छे ढंग से कर सकती हैं।

-अपनी उपलब्धियों को डायरी में लिखें और जब नकारात्मक विचार आप पर हावी होने लगें तो डायरी पढें। आप पाएंगी कि आपका तनाव कम हो रहा है।

(मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. विचित्रा दर्गन आनंद से बातचीत पर आधारित)


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