Move to Jagran APP

Rajasthan: कोरोना महामारी में मिटाई सात दशक की ‘प्यास‘, आपदा को अवसर में बदला

Well In Village रोजगार छिनने से गांव लौटे कथौड़ी आदिवासियों ने मजबूरी को अवसर में बदलते हुए सात दशक से चली आ रही समस्या मिटा दी। अब गांव के लोगों को आसानी से पानी मिल रहा है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Tue, 08 Sep 2020 06:40 PM (IST)Updated: Tue, 08 Sep 2020 06:40 PM (IST)
Rajasthan: कोरोना महामारी में मिटाई सात दशक की ‘प्यास‘, आपदा को अवसर में बदला
Rajasthan: कोरोना महामारी में मिटाई सात दशक की ‘प्यास‘, आपदा को अवसर में बदला

उदयपुर, सुभाष शर्मा। Well In Village: कोरोना महामारी में रोजगार छिनने से गांव लौटे कथौड़ी आदिवासियों ने मजबूरी को अवसर में बदलते हुए सात दशक से चली आ रही समस्या मिटा दी। अब यहां की महिलाओं को रोजाना दो किलोमीटर दूर से पानी लाने की मजबूरी से निजात मिल गई है। चैदह परिवारों के चालीस युवकों ने चार माह में पैंतीस फीट गहराई का कुआ खोद डाला। उदयपुर जिले में झाड़ोल उपखंड अंतर्गत फलासिया क्षेत्र के टिंडोरी गांव के कथौड़ी आदिवासियों की मेहनत ने दूसरों को भी नजीर पेश की है। टिंडोरी गांव दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र का गांव है, जहां पेयजल उपलब्ध नहीं है। यहां के लोग बारिश में मौसमी नाले के पानी को उपयोग में लेते आए हैं, जबकि बाकी महीनों में गांव की महिलाएं दो किलोमीटर दूर से पानी लाया करती थीं।

loksabha election banner

जंगल में बसे इन कथौड़ी परिवारों का मुख्य रोजगार कत्था निकालकर बेचना होता था, जंगल घटते गए और वन विभाग की लगी रोक के बाद उनसे यह रोजगार भी छीन गए, लेकिन उन्होंने जंगल नहीं छोड़ा। ऐसे ही कथौड़ी परिवारों का गांव है टिंडोरी, जो गुजरात बार्डर पर पहाड़ी क्षेत्र में है। अल्प खेती वाले इस गांव के लगभग सभी युवा गुजरात में मजदूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते आए हैं। पैंतीस परिवार के लगभग पचास से अधिक युवा गुजरात में ही काम करते थे। कोरोना महामारी के चलते काम बंद होने से उनके समक्ष रोजगार का संकट गहराने लगा और मजबूरी में वह गांव लौट आए। लाॅकडाउन के चलते नजदीकी शहरों में भी काम नहीं मिला।

इसी बीच, कुछ युवाओं ने मिलकर गांव में कुआ खोदने की सोची। चौदह परिवार के चालीस युवा कुआ खोदने में जुट गए। इस काम में उन्होंने गैंती, फावड़े का उपयोग लिया। कुछ फीट खोदने के बाद समस्या खड़ी हुई तो उसका समाधान भी जुगाड़ से कर लिया गया। कटे पेड़ के तने को दूसरे तने से सहारा देकर क्रेन तैयार की और खुदाई के बाद मिट्टी निकालने का काम जारी रखा। पैंतीस फीट गहरा खोदने में तीन महीने का समय लगा तथा

उसकी पत्थर से चुनाई में और एक महीना लगा। चुनाई के लिए पत्थर भी गांव के युवा तोड़कर लाए। कुआ तैयार होने एवं भरपूर पानी आने से गांव के लोग बेहद प्रसन्न हैं, विशेषकर यहां की महिलाएं। गांव वरिष्ठ नागरिकों में शुमार सकू मीणा, शंभू मीणा और कीरकी बाई का कहना है कि आजादी के बाद पहली बार गांव में कुआ खुदा है। पच्चीस फीट पानी आ चुका है जो साल भर के लिए पर्याप्त है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.