Vijayadashami: महाराणा प्रताप ने विजयदशमी के दिन दर्ज की थी बड़ी जीत, दिवेर के युद्ध में मुगल सेना को रौंद डाला था
Vijayadashami महाराणा प्रताप को दिवेर के युद्ध में विजयदशमी के दिन सफलता मिली थी। राजस्थान के इतिहास 1582 में दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध रहा। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के खोए हुए राज्यों को वापस पाने में सफलता पाई।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। Vijayadashami: मेवाड़ में विजयदशमी पर्व असत्य पर सत्य के लिए ही नहीं, बल्कि मेवाड़ में महाराणा प्रताप की जीत की खुशी में भी यह पर्व मनाया जाता है। महाराणा प्रताप को दिवेर के युद्ध में इस दिन सफलता मिली थी। राजस्थान के इतिहास 1582 में दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध रहा। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के खोए हुए राज्यों को वापस पाने में सफलता पाई। इसके बाद मुगलों तथा मेवाड़ के बीच लंबे समय तक युद्ध चला जो मेवाड़ का मैराथन कहलाया। जिनमें दिवेर का युद्ध भी शामिल है। इतिहास में लिखा है कि यह युद्ध इतना भीषण तरीके से लड़ा गया था कि महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने मुगल सेनापति पर भाले से इतनी जोर से वार किया कि भाला सेनापति का शरीर और घोड़े को चीरता हुआ जमीन में जा धंसा।
इस युद्ध का अंत विजयदशमी के दिन ही हुआ और मुगल सेना के ज्यादातर सैनिक मारे गए। इस युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई मुगल सेना के बादशाह अकबर का चाचा सुल्तान खां कर रहे थे। विजयदशमी के दिन महाराणा ने प्रताप ने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटा। एक टुकड़ी की कमान खुद महाराणा संभाल रहे थे, जबकि दूसरी की कमान उनके बेटे अमर सिंह के हाथों थी। एक ओर अमर सिंह ने मुगल सेनापति को मार गिराया, वहीं महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को उसके घोड़े सहित दो टुकड़ों में काट डाला। जिससे मुगल सेना इतनी घबराई और बचाव के लिए दौड़ने लगी। दोनों ओर से घिरी मुगल सेना को महाराणा की सेना ने रौंद डाला और बड़ी जीत दर्ज की। महाराणा की मुगल सेना पर मिली सफलता को मेवाड़ के लोग आज भी विजयदशमी को याद करते हैं।
महाराणा प्रताप का जन्म नौ मई, 1540 को राजस्थान के मेवाड़ के राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा उदय सिंह था और माता का नाम जयवंता बाई था। पत्नी का नाम अजबदे पुनवार था। इनके दो पुत्र थे, जिनका नाम अमर सिंह और भगवान दास था। महान योद्धा महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर सवारी करते थे, उसका नाम चेतक था जो कि महाराणा प्रताप की तरह ही योद्धा था। महाराणा प्रताप बचपन से ही वीर योद्धा रहे। उन्होंने बाल्यकाल में ही युद्ध कौशल सीख ली थी। हालांकि, वीर और योद्धा होने के बावजूद वे धर्म परायण और मानवता के पुजारी थे। इन्होंने माता जयवंता बाई जी को ही अपना पहला गुरु माना था।