अपने पुरखों को जानना है तो कुछ समय बाद आइए जयपुर
RSS family. वंशावली लेखन की लुप्त होती विधा और वंशावली लेखकों के संरक्षण के लिए यह अनूठा प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शुरू किया है।
जयपुर, मनीष गोधा। यदि आप यह जानना चाहते हैं कि आपके पुरखे कौन थे या आप यह जानना चाहते हैं कि आप मूलत: किस धर्म से हैं तो कुछ समय बाद जयपुर आइए। यहां आपको आपके वंशावली लेखक की जानकारी मिल जाएगी। उससे संपर्क कर आप अपनी पीढ़ियों का बहीखाता जान सकेंगे।
वंशावली लेखन की लुप्त होती विधा और वंशावली लेखकों के संरक्षण के लिए यह अनूठा प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने शुरू किया है। संघ के धर्म जागरण समन्वय विभाग के अधीन अखिल भारतीय वंशावली संरक्षण व संवर्धन संस्थान की स्थापना की गई है। इसका राष्ट्रीय स्तर का केंद्र जयपुर में बनाया जा रहा है। इसमें देशभर के वंशावली लेखकों का पूरा डाटा मौजूद रहेगा और इस विधा से संबंधित अन्य जानकारियां व शोधकर्ताओं के लिए विशेष सामग्री भी मौजूद रहेगी।
एक मस्जिद में हुई सभा से आया विचार
संघ के इस प्रकल्प की शुरुआत 2007 में हुई। संघ के धर्म जागरण समन्वय विभाग से जुड़े प्रचारक रामप्रसाद राजस्थान के भरतपुर जिले के मेवात क्षेत्र के गुलपाड़ा गांव में एक मुस्लिम मित्र के आग्रह पर स्थानीय मस्जिद में बैठक में गए थे। रामप्रसाद ने बताया कि वहां मौजूद कुछ मुस्लिम भाइयों के पास इस बात की जानकारी थी कि उनके पुरखों का धर्म परिवर्तन कब हुआ। जब मैंने उनसे पूछा यह जानकारी कहां से आई तो उन्होंने बताया कि यह जानकारी उन्हें उनके वंशावली लेखक के जरिए मिली है जो अभी भी उनके परिवार में आता है। मेवात क्षेत्र में इन वंशावली लेखकों को 'जागा" कहा जाता है।
रामप्रसाद उस वंशावली लेखक से मिले तो पता चला कि उस क्षेत्र में ऐसे कई 'जागा" हैं। रामप्रसाद ने बताया कि जागाओं से इस मुलाकात के बाद ही यह विचार आया कि वंशावली लेखन की इस लुप्त होती विधा और लेखकों के संरक्षण के लिए काम किया जाए तो इतिहास के बारे में काफी जानकारी मिल सकती है। बदहाली में जीवन बिता रहे वंशावली लेखकों की सहायता भी की जा सकती है। इसी उद्देश्य से वर्ष 2007 की गुरु पूर्णिमा के दिन वंशावली संरक्षण व संवर्धन संस्थान की स्थापना की गई।
कई राज्यों में चल रहा है काम
इस प्रकल्प का काम राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और तमिलनाडु में चल रहा है। रामप्रसाद ने बताया कि हमने इस काम को आगे बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालयों को जोड़ा। सबसे पहले जोधपुर विश्वविद्यालय में एक सम्मेलन कराया। इसके बाद भावनगर, भोपाल सहित कई स्थानों पर सम्मेलन कराए।
पुष्कर में एक बड़ा सम्मेलन कराया गया। आज इस संस्थान से 5200 वंशावली लेखक जुड़े हुए हैं और 2019 को हमने संगठन वर्ष घोषित किया है। संस्थान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 27 जनवरी को कोटा में होगी और इसके बाद सदस्यता अभियान शुरू किया जाएगा। पूरे देश में अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहे वंशावली लेखकों को इसका सदस्य बनाया जाएगा और उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन परिवारों से उनका संपर्क करवाया जाएगा जिनकी वंशावलियां वे लिखते आए हैं लेकिन लंबे समय से यह काम बंद कर रखा है।
उन्होंने बताया कि वंशावली लेखक परिवारों में जाकर वंशावली लिखने का काम करते थे। इसके बदले उन्हें दक्षिणा मिलती थी, लेकिन अब यह काम हरिद्वार और पुष्कर जैसे स्थानों पर ही हो रहा है। यहां पंडितों- परिवार पुरोहितों के पास वंशावलियां मिल जाती हैं। परिवार में जाकर वंशावली लिखने का काम अब बहुत कम हो गया है, जबकि देश के हर प्रांत में ये लेखक मौजूद हैं और कई जगह इनके गांव तक बसे हुए हैं। बिहार में इन्हें पंजीकार कहते हैं तो मेवात में जागा। इसी तरह हर जगह इन्हें अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है।