नाथद्वारा में श्रीनाथजी का अन्नकूट लूटने उमड़ते हैं आदिवासी, इस साल भी निभाई परम्परा
अन्नकूट में लगभग 20 क्विंटल पकाए हुए चावल के ढेर का पर्वत मंदिर प्रांगण के डोल तिबारी के बाहर बना कर सजाया गया। इसके अलावा अन्नकूट में श्रीखंड हलवा बड़ा पापड़ विभिन्न प्रकार के लड्डू मोहनथाल बर्फी सागर ठोर खाजा पकौड़े खिचड़ी सहित लगभग 60 प्रकार के व्यंजन रखे गए।
उदयपुर, जागरण संवाददाता। राजसमंद जिले के नाथद्वारा स्थित पुष्टीमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की प्रधानपीठ श्रीनाथजी के मंदिर में दीपावली के दो दिन बाद अन्नकूट महोत्सव के दौरान आदिवासियों के अन्नकूट लूट की परम्परा सैकड़ों साल से जारी है। कोरोना महामारी के बीच भी यह परम्परा सोमवार रात को निभाई गई और सैकड़ों आदिवासी अन्नकूट लूटकर ले गए।
अन्नकूट लूट के लिए राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ तथा आसपास क्षेत्र के अलावा उदयपुर जिले के गोगुंदा क्षेत्र के आदिवासियों का सैलाब उमड़ गया। अन्नकूट में लगभग 20 क्विंटल पकाए हुए चावल के ढेर का पर्वत मंदिर प्रांगण के डोल तिबारी के बाहर बना कर सजाया गया। इसके अलावा अन्नकूट में श्रीखंड, हलवा (शीरा), बड़ा, पापड़, विभिन्न प्रकार के लड्डू, मोहनथाल, बर्फी, सागर, ठोर, खाजा, पकौड़े, खिचड़ी सहित लगभग 60 प्रकार के व्यंजन रखे गए।
भगवान श्रीनाथजी को भोग लगाने के बाद अन्नकूट दर्शन के लिए आम भक्तों को प्रवेश दिया गया, जो रात दस से बारह बजे तक चले। इसके बाद लोगों को बाहर निकालने के बाद केवल आदिवासियों को ही प्रवेश के लिए द्वार खोले गए। परंपरागत शैली में शोर मचाते हुए आदिवासियों के दलों ने मंदिर में प्रवेश किया और भगवान श्रीनाथजी के दर्शन के बाद अन्नकूट के प्रसाद और चावल के ढेर को लूटना शुरू किया। वह अपने साथ लाए गमछों और धोती के अलावा विशेष प्रकार की बनाई गई झोली में प्रसाद भरकर दौड़ते हुए मंदिर से बाहर निकलते हैं।
बाहर मौजूद आदिवासी स्त्रियों को वो प्रसाद थमाकर वे पुनः अन्नकूट लूट में शामिल होने लगे। अन्नकूट लूट के नाथद्वारा मंदिर मंडल प्रबंधन तथा प्रशासन ने पूर्ण बंदोबस्त कर रखे थे।
खास महत्व है इस अन्नकूट के चावल का
मंदिर मंडल के लोग बताते हैं कि श्रीनाथजी आने वाले गुजराती भक्तों व स्थानीय लोगों के लिए भी इस चावल का अत्यंत महत्व है। वे आदिवासियों से अन्नकूट के थोड़े से चावल लेकर इन्हें सुखाकर अपने घर में तिजोरी में रखते हैं। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर मृतक के मुँह में गंगाजल के अलावा इन चावल को भी रखने की परंपरा है।