राजस्थानः साल में आठ महीने पानी में, फिर भी मजबूती से खड़ा है यह शिव मंदिर
Shiva temple in water. ईंट-पत्थर और चूने से निर्मित यह तीन सौ साल पुराना सूर्यमुखी शिव मंदिर पिछले 49 साल से पानी में डूबा रहने के बावजूद मजबूती से खड़ा है।
उदयपुर, संवाद सूत्र। राजस्थान के बांसवाड़ा-डूंगरपुर जिले की सीमा पर स्थित बेडुआ गांव में अनास, माही और जाखम नदियों के संगम तट पर स्थित शिव मंदिर साल में आठ माह (जुलाई से फरवरी तक) जलमग्न रहता है। ईंट-पत्थर और चूने से निर्मित यह तीन सौ साल पुराना सूर्यमुखी शिव मंदिर पिछले 49 साल से पानी में डूबा रहने के बावजूद न सिर्फ मजबूती से खड़ा है, बल्कि साल-दर साल निखरता जा रहा है। गर्मी पड़ने के साथ जब बांध का पानी उतरने लगता है, तब पर्यटक और श्रद्धालु पैदल जाकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं।
नदियों के संगम स्थल पर स्थित होने के कारण मंदिर का नाम संगमेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया। इस मंदिर का निर्माण तीन सौ साल पहले बांसवाड़ा जिले अंतर्गत गढ़ी के राव हिम्मतसिंह (परमार राजवंश) ने कराया था। तब यह मंदिर पानी से घिरा हुआ नहीं था। 1970 में गुजरात ने अपनी सीमा में कड़ाणा बांध का निर्माण किया और यह मंदिर डूब क्षेत्र में आ गया। दक्षिण राजस्थान की बड़ी नदियों में शुमार माही और अनास नदी का पानी कड़ाणा बांध में जमा होता है।
इसके चलते साल में आठ महीने यह मंदिर जलमग्न ही रहता है। इसके बावजूद इसकी मजबूती पर कोई फर्क नहीं पड़ा। मंदिर में पूजा-अर्चना का काम संगम तट पर रहने वाले नाव संचालकों के ही हाथ है और वह लोगों को नाव के जरिये मंदिर में दर्शन कराने ले जाते हैं। कड़ाणा बांध का जलस्तर 400 फीट से कम होने पर मंदिर दर्शन के लिए खुल जाता है। मंदिर के बाहर साधुओं की समाधियां बनी हुई है। मंदिर ईंट और पत्थरों से बना है।
सिविल इंजीनियर अरविंद त्रिवेदी का कहना है कि चूने से निर्मित मंदिर पिछले पांच दशक से साल में आठ माह पानी में डूबा रहता है। इसके बाद भी इसकी मजबूती पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। यह बात हैरान करने वाली है।
बंद हो गया आमल्यी ग्यारस का मेला
क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि संगम क्षेत्र में पहले होली के पहले आमल्यी ग्यारस पर हर वर्ष मेला लगता था। इस मेले में शामिल होने के लिए राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश एवं गुजरात से भक्त आते थे। संगम स्थल के डूब जाने के कारण मेला भी बंद हो गया।