चित्तौड़गढ़ जिले का गांव, जहां सदियों से पेड़ काटना तो दूर टहनियां तक नहीं काटी जाती
जिले के चंदेरिया थाना क्षेत्र में जिला मुख्यालय से महज पंद्रह किलोमीटर दूर कपासन मार्ग पर स्थित है। इस गांव में सदियों से पेड़ की टहनियां तक नहीं काटी जाती।... चित्तौड़गढ़ जिले का मादलदा गांव जहां सदियों से पेड़ ही नहीं टहनियां तक नहीं काटी जा सकती। जागरण
संवाद सूत्र, चित्तौड़गढ़ । कोरोना महामारी ने आॅक्सीजन और पेड़ों की महत्ता बता दी है। पेड़ हमारे लिए कितने आवश्यक हैं, यह सभी जान चुके हैं। ऐसे में विश्व पर्यावरण दिवस पर अधिकाधिक पौधे लगाए जाने और पेड़ों की कटाई नहीं किए जाने पर जोर दिया जा रहा है। किन्तु यह शायद यह जानकर आपको एकबारगी यकीन नहीं हो लेकिन यह सच है कि चित्तौड़गढ़ जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां सदियों से पेड़ काटना तो दूर टहनियां तक नहीं काटी जाती।
यह गांव है मादलदा, जो चित्तौड़गढ़ जिले के चंदेरिया थाना क्षेत्र में जिला मुख्यालय से महज पंद्रह किलोमीटर दूर कपासन मार्ग पर स्थित है। इस गांव में सदियों से पेड़ की टहनियां तक नहीं काटी जाती। इस गांव में मकान बनाते समय पेड़ों का विशेष ध्यान रखा जाता है। यहां इस तरह भवनों का निर्माण कराया जाता है ताकि पेड़ ही नहीं पेड़ की टहनी तक को नुकसान नहीं पहुंचे। यहां कई भवनों से पेड़ों की टहनियां बाहर से अंदर और अंदर से बाहर निकलते देखी जा सकती है।
लोकदेवता देवनारायण भगवान में विशेष आस्था
डेढ़ हजार आबादी वाला मादलदा गांव के लोग लोकदेवता भगवान देवनारायण में आस्था रखते हैं। इस गांव के बीच पहाड़ी पर भगवान देवनारायण का मंदिर है। मंदिर के चारों और कई किलोमीटर क्षेत्र में धोक के हजारों पेड़ हैं। सदियों से यहां यही मान्यता चली आ रही है कि धोक के पेड़ों को काटा नहीं जाएगा। ऐसा करने पर उन्हें पाप का भागीदार बनना पड़ता है। इसी के चलते ग्रामीण धोक के पेड़ों को हाथ तक नहीं लगाते। उसी का नतीजा है कि पूरा गांव हरियाली से आच्छादित है। गांव ही नहीं आसपास का पूरा इलाका भी पूरा जंगल का रूप ले चुका
हर घर में मिल जाएंगे धोक के पेड़
गांव के हर घर में धोक के बड़े-बड़े पेड़ लगे हैं। यहां धोक के पेड़ों की टहनियां मकानों की छत से निकलती दिखाई देखी जा सकती है तो दीवारों से। यदि मकान में कोई पौधा या पेड़ निकल के आया तो उसे काटने के स्थान पर फलने—फूलने का मौका देते हैं।