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राजस्थान में बिछने लगी छात्र राजनीति की बिसात, बागियों का घमासान बना प्रतिष्ठा का सवाल

Student politics in rajasthan. एनएसयूआई एबीवीपी व एसएफआई सहित तमाम छात्र संगठनों के उमीदवारों ने शीर्ष पदों पर जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Wed, 21 Aug 2019 04:16 PM (IST)Updated: Wed, 21 Aug 2019 04:16 PM (IST)
राजस्थान में बिछने लगी छात्र राजनीति की बिसात, बागियों का घमासान बना प्रतिष्ठा का सवाल
राजस्थान में बिछने लगी छात्र राजनीति की बिसात, बागियों का घमासान बना प्रतिष्ठा का सवाल

जोधपुर, रंजन दवे। राजस्थान में जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव का प्रचार अब परवान चढ़ने लगा है। चुनाव लड़ने के लिए नामांकन गुरुवार को भरे जाएंगे लेकिन एनएसयूआई, एबीवीपी व एसएफआई सहित तमाम छात्र संगठनों के उमीदवारों ने शीर्ष पदों पर जीत हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इन तमाम छात्र संगठनों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृहनगर में एनएसयूआई जीत की हैट्रिक की कोशिश में है तो एबीवीपी भी इस जुगाड़ में है कि किसी तरह उसे जीत मिल जाए। लेकिन जेएनवीयू में बागी भी इस बार अपनी तगड़ी मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं।

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एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर होने के कारण और उनका खुद का छात्र राजनीति भरा जीवन होने के नाते जोधपुर में छात्रसंघ चुनाव का शुरू से ही क्रेज रहा है, वही भारतीय जनता पार्टी के जोधपुर के सांसद और लाडले जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह के स्वयं एबीवीपी से पूर्व में अध्यक्ष रहने के कारण छात्रों में जोश हैं। दोनों ही छात्र संघटनों से जुड़े विद्यार्थी इन दिग्गजों में रोल मॉडल के रूप में अपना भी भविष्य देखते हैं।

एनएसयूआई ने अध्यक्ष पद पर हनुमान तरड को अपना उम्मीदवार घोषित किया है और तीसरी बार हैट्रिक लगाने के मंसूबे पाले हैं। वहीं, एबीवीपी के उमीदवार त्रिवेंनद्रपाल सिंह जीत हासिल करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन एबीवीपी के बागी रविन्द्र सिंह भाटी एबीवीवी के परंपरागत वोट और जातीय समीकरण साध कर उनका गणित बिगाड़ने मेें ताकत लगाए हैं। इधर, एसएफआई के उमीदवार अजयसिंह माली और दलित वोटों के भरोसे जीत का सपना संजोए।

जिस तरह जोड़-तोड़ की राजनीति चल रही है, उससे एसपफआई उमीदवार एनएसयूआई का गणित गड़बड़ा सकते हैं। हालांकि चुनाव में सीधा मुकाबला एनएसयूआई और निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे रविन्द्र सिंह भाटी के बीच रहने की संभावना अभी से नजर आ रही है। जेएनवीयू में पिछले दो साल से एनएसयूआई का दबदबा कायम है। लगातार तीन साल एबीवीपी के हैट्रिक लगाने के बाद 2017 में कांता गवाला ने एनएसयूआई को जीत दिलाई थी। पिछले साल महज नौ वोटों से एनएसयूआई के उमीदवार सुनील चौधरी एबीवीपी के मूलसिंह से चुनाव जीते थे।

इस वजह इस बार एनएसयूआइ हैट्रिक लगाने में पूरी ताकत लगा रही है। एनएसयूआई के पदाधिकारियों के अलावा किसान छात्रसंघ के पदाधिकारी भी हनुमान तरड को जीत दिलाने में जुटे है। लेकिन पिछले चुनाव मेंं टिकट नहीं मिलने पर एबीवीपी छोड़कर एनएसयूआई की टिकट पर चुनाव जीते महासचिव इस बार अपने सजातीय एसएफआई के अजय सिंह टाक का समर्थन करते हुए उन्हें चुनाव जिताने में ताकत लगाए हैं।

वहीं, पिछले चुनाव में कम मार्जिन से चुनाव हारे मूलसिंह एबीवीपी के त्रिवेंन्द्रपाल सिंह के साथ चुनाव जीतने की पूरी रणनीति संभाले हैं। लेकिन एबीवीपी से टिकट नहीं मिलने पर बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे रविन्द्र सिंह भाटी एबीवीपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्हें पूर्व अध्यक्ष कुणाल सिंह का समर्थन होने के साथ अन्य राजपूत संघटनों से भी समर्थन मिलने से वे एबीवीपी के परंपरागत राजपूत वोटवैंक पर सेंघमारी कर सकते हैं। चुनाव परिदृश्य और जातीय गणित देखे तो इस बार दलित वोटर्स का जिस उम्मीदवार को समर्थन मिलेगा, उसकी जीत तय है। इस वजह से सभी उम्मीदवार दलित वोटर्स को रिझााने की पूरी कोशिश कर रही हैं।

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