Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में अब तक चार बार सत्तापक्ष लेकर आया विश्वास प्रस्ताव और हासिल भी किया
Rajasthan Political Crisis राजस्थान में अब तक चार बार सत्तापक्ष लेकर आया विश्वास प्रस्ताव और हासिल भी कियातीन बार स्व.भैरोंसिंह शेखावत व एक बार गहलोत ने हासिल किया विश्वास मत
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान में पिछले 18 दिन से चल रहे सियासी संकट के बीच सबकी निगाह राजभवन पर है। एक तरफ जहां सत्तापक्ष तत्काल विधानसभा सत्र बुलाने पर अड़ा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ राज्यपाल कलराज मिश्र इतने जल्दी सत्र बुलाने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में दोनों के बीच टकराव की नौबत आ गई है।
कांग्रेस ने सोमवार को राजस्थान सहित देशभर के राजभवनों पर प्रदर्शन किया। इन दिनों प्रदेश की सियासत में सरकार सत्ता में बहुमत के आधार पर है या नहीं है इसको लेकर भी अपने अपने अटकलें लगाई जा रही हैं। पुराने इतिहास के अनुसार विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है, पर ऐसा नहीं है, सत्ता पक्ष भी विश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार में बने रहने का दावा पेश करता है। ऐसा पहली बार गहलोत सरकार करना चाहती है। इतिहास के अनुसार प्रदेश में सरकारों के गठन से लेकर अब तक चार बार ऐसे मौके आए हैं, जब सरकार विश्वास मत सदन में लेकर आई और सत्ता में बने रहने का हक विधानसभा से प्राप्त किया है।
उल्लेखनीय है कि हमेशा अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से सत्ता पक्ष के विरोध में लाया जाता है, लेकिन विश्वास प्रस्ताव सरकार की ओर से ही अपने लिए सत्ता में बने रहने के लिए पर्याप्त बहुमत है या नहीं है यह बताने के लिए होता है। वर्तमान प्रदेश की राजनीति में गहलोत सरकार सम्भवतः विधानसभा सत्र बुलाकर विश्वास मत हासिल करना चाहती है। राज्य में 4 बार लाया गया विश्वास प्रस्ताव राज्य विधानसभा के इतिहास के अनुसार अब तक 4 बार विश्वास प्रस्ताव सदन में लाया गया है। इन चार बार के विश्वास प्रस्ताव में तीन स्व.भैरों सिंह शेखावत सीएम रहते हुए लेकर आए हैं। वे विश्वास प्रस्ताव को पारित कराने में सफल हुए हैं ।
शेखवत सबसे पहले 23 मार्च, 1990 को लेकर विश्वास मत लेकर आए और वह पारित भी हुआ। उसके बाद शेखावत ने 8 नवंबर, 1990 को दूसरी बार विश्वास मत हासिल किया। इसके बाद तीसरी बार 31 दिसंबर,1993 में शेखावत ने विश्वास प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया और वे उसे सफल भी रहे। वहीं चौथी बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पिछले कार्यकाल में 2009 से 2013 के बीच में एक बार विश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे और वे विश्वास मत हासिल करने में सफल भी रहे थे। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भी इतिहास गहलोत के लिए मददगार होगा।