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Rajasthan: अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे गतिरोध को दूर करने को लेकर आलाकमान सक्रिय

माकन की पहल पर मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों पर होने लगी बात कांग्रेस के एक राष्ट्रीय सचिव ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वर्तमान में दिल्ली में कोई ऐसा नहीं है जो गहलोत पर दबाव बनाकर फैसले करा सकें।

By Priti JhaEdited By: Published: Thu, 10 Jun 2021 02:50 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jun 2021 08:08 PM (IST)
Rajasthan: अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे गतिरोध को दूर करने को लेकर आलाकमान सक्रिय
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे गतिरोध को दूर करने को लेकर आलाकमान सक्रिय

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। जितिन प्रसाद भाजपाई हुए तो कांग्रेस की चिंता बढ़ी और अब राजस्थान में सुलह के प्रयास तेज हो गए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चल रहे गतिरोध को दूर करने को लेकर आलाकमान सक्रिय हो गया। प्रारंभिक बातचीत में सुलह का फार्मूला बनने लगा है। पायलट ना तो राजस्थान की राजनीति छोड़कर जाना चाहते हैं और ना ही गहलोत मंत्रिमंडल में वापसी चाहते हैं। वे अपने समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल व राजनीतिक नियुक्तियों में प्राथमिकता चाहते हैं।

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आलाकमान द्वारा 10 माह पूर्व किए गए वादे को पूरा कराना चाहते हैं। वहीं गहलोत भी कोरोना संक्रमण काबू में आने के बाद मंत्रिमंडल के विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां करने को लेकर तैयार हैं। हालांकि गहलोत यह काम किसी दबाव में नहीं करना चाहते। वे अपनी शर्तों पर ही फैसले करना चाहते हैं। गहलोत ने आलाकमान को संकेत दिए हैं कि राज्य में कोरोना नियंत्रण में आने लगा है अब वे मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां करने को तैयार हैं।

प्रदेश प्रभारी अजय माकन का कहना है कि पायलट के बताए मुद्दों पर पार्टी काम कर रही है। एक बार दोनों के साथ वर्चुअल बैठक हुई अब शनिवार को फिर मिलेंगे। जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़कर जाने का असर यह हुआ कि 10 माह से पायलट की अनदेखी कर रहे आलाकमान ने सक्रियता दिखाते हुए राजस्थान के मसलों को शीघ्र निपटाने की कोशिश प्रारंभ कर दी है ।

आलाकमान गहलोत के सामने कमजोर

कांग्रेस के एक राष्ट्रीय सचिव ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वर्तमान में दिल्ली में कोई ऐसा नहीं है जो गहलोत पर दबाव बनाकर फैसले करा सकें। दिल्ली में जो नेता बैठे हैं वे सभी गहलोत से काफी जूनियर हैं। इसलिए जो भी फैसले होंगे उनमें गहलोत की मर्जी चलेगी,आलाकमान अपने फैसले नहीं थोप सकेगा। जिस तरह से पंजाब में 10 दिन में सुलह का फार्मूला तय हो गया,ऐसा राजस्थान में होना मुश्किल लगता है,क्योंकि पिछले साल पायलट की बगावत के समय जिस राजनीतिक कौशल से अपनी कुर्सी बचाई उसमें उन्होंने यह संदेश दे दिया कि वे किसी भी परिस्थिति से से अच्छी तरह से निपट सकते हैं। उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। गहलोत की ही रणनीति का परिणाम है कि पिछले एक साल में पायलट समर्थक हाशिए पर चले गए। गहलोत ने राजनीतिक कौशल से पायलट कई समर्थकों को अपने पाले में ले लिया ।

गहलोत हैं आश्वस्त

गहलोत खुद के लिए पायलट को किसी तरह का खतरा नहीं मानते, लेकिन इसके बावजूद बृहस्पतिवार को उनके विश्वस्तों ने विधायकों के साथ संपर्क साधने का सिलसिला जारी रखा। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रघुवीर मीणा,मुख्य सचेतक महेश जोशी व धर्मंद्र राठौड़ ने कुछ विधायकों से व्यक्तिगत मुलाकात की तो कुछ से टेलिफोन पर संपर्क साधा ।वहीं पायलट खेमा भी सक्रिय रहा। पायलट समर्थक विधायकों में अपने खेमे के विश्वेंद्र सिंह के छोड़कर गहलोत के पाले में जाने की चिंता जरूर नजर आई। 


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