मानवाधिकार आयोग ने कहा- शव रख कर मांगे मनवाना दंडनीय अपराध बने, मृत व्यक्ति के भी होते है मानवाधिकार
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने एक महत्वपूर्ण आदेश में शव रख कर मांगे मनवाने की प्रवृत्ति पर आपत्ति की है और कहा है कि शव के भी मानवाधिकार होते है।
जयपुर, मनीष गोधा। राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग ने शुक्रवार को अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में शव रख कर मांगे मनवाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर आपत्ति की है और कहा है कि शव के भी मानवाधिकार होते है। आयोग ने सरकार को सिफारिश की है कि शव रख कर मांगे मनवाने की घटनाओं को दण्डनीय अपराध घोषित किया जाए।
राजस्थान में लम्बे समय से शव रख कर मुआवजा, सरकारी नौकरी और अन्य तरह की मांगे मनवाए जाने की प्रवृत्ति देखने में आ रही है। गैंगस्टर आनंदपाल का शव तो उसके परिजनों ने 20 दिन से भी ज्यादा समय तक रखाा था और प्रदेश में कानून व्यवस्था की गम्भीर स्थिति पैदा हो गई थी। इसके अलावा देश के आदिवासी इलाकों में शव रख कर मौताणे के रूप में मुआवजे की मांग किए जाने की प्रथा भी है।
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया ने शुक्रवार को अपने एक अहम आदेश में कहा है कि शव का दुरुपयोग किए जाने, इसकी आड़ में आंदोलन कर अवैध रूप से सरकार, प्रशासन, पुलिस, अस्पताल और डाॅक्टरों पर दबाव डालकर राशि या अन्य कोई लाभ प्राप्त करने को मानवाधिकार आयोग शव का अपमान और उसके मानवाधिकारों का हनन मानता है।
अयोग ने कहा है कि इस हनन को रोकने के लिए जरूरी नीति निर्धारण और विधि के प्रावधानों को मजबूत किया जाना जरूरी है। आयोग ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट एक आदेश का भी उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया है कि संविधान के तहत सम्मान और उचित व्यवहार का अधिकार जीवित व्यक्ति ही नहंी, उसकी मृत्यु के बाद उसके शव को भी प्राप्त है।
जस्टिस टाटिया ने अपने आदेश में कहा है कि मृत व्यक्ति के शरीर पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियो को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होता। वे सिर्फ कस्टमरी लाॅ के तहत अंतिम संस्कार के लिए उसे प्राप्त कर सकते है। उसका बंटवारा, व्यापार या शरीर के अंगों का व्यापार नहीं किया जा सकता। आयोग ने कहा है कि विश्व के किसी भी धर्म के अनुसार शव का एकमात्र उपयोग उसका सम्मान सहित अंतिम संस्कार ही है। आयोग ने इस मामले में सरकार को सिफारिश की है कि शव का दुरूपयोग किए जाने के मामलों को दण्डनीय अपराध बनाया जाना चाहिए।
सरकार को यह सिफारिश की है आयोग ने
- दाह संस्कार के लिए लगने वाले समय से अधिक समय तक शव को नहीं रखा जा सकता
- परिजन अंतिम संस्कार नहंी कर रहे हैं तो इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। सरकार स्थानीय निकाय और जरूरत पडने पर पुलिस की सहायता से अंतिम संस्कार कराए।
- यदि किसी अपराध की जांच के लिए शव की जरूरत नहीं है या न्यायिक आदेश के अनुसार अंतिम संस्कार पर रोक नहीं है तो पुलिस को अंतिम संस्कार के विशेष अधिकार दिए जाएं।
- शव को अनावश्यक रूप से घर या किसी सार्वजनिक स्थान पर रखना दंडनीय अपराध घोषित किया जाए
- नियत स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर शव के अंतिम संस्कार पर रोक लगाई जाए और अंतिम संस्कार के स्थान आवश्यक रूप से आबादी क्षेत्र के बाहर रखे जाएं।
- शव का किसी आंदोलन, मौताणा, कोई राशि या मांगे मनवाने के लिए उपयोग किया जाए तो दण्डनीय अपराध बनाने के लिए कानून बनाया जाए।