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राजस्थान में बेसहारा पशुओं के लिए योजना लागू करने की तैयारी

Rajasthan Government. पशुधन के मामले में राजस्थान देश के अग्रणी राज्यों में है। पश्चिमी राजस्थान में तो गांवों की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक पशुओं और मवेशियों पर ही निर्भर है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 03:00 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 03:00 PM (IST)
राजस्थान में बेसहारा पशुओं के लिए योजना लागू करने की तैयारी
राजस्थान में बेसहारा पशुओं के लिए योजना लागू करने की तैयारी

जयपुर, जेएनएन।  Rajasthan Government. राजस्थान के गांवों में बेसहारा पशुओं की देखभाल और उन्हें एक साथ रखने के लिए राजस्थान की सरकार छत्तीसगढ़ में चल रही नरूआ गरूआ, घुरूआ और बाड़ी योजना लागू करने पर विचार कर रही है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के दौरे में इस योजना का अध्ययन भी किया है।

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पशुधन के मामले में राजस्थान देश के अग्रणी राज्यों में है। पश्चिमी राजस्थान में तो गांवों की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक पशुओं और मवेशियों पर ही निर्भर है। किसान ही पशुपालन का काम भी करते हैं, लेकिन गांवों में ही बेसहारा पशु भी काफी संख्या में पाए जाते हैं। जब गाय या भैंस दूध देना बंद कर देती है या किसी उपयोग की नहीं रहती तो पशुपालक इन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं। बाद में ये मवेशी खेती को भी नुकसान पहुंचाते हैं और गांव के पास से गुजरने वाले हाईवे तथा अन्य सड़कों पर दुर्घटना का कारण भी बनते हैं।

जानकार बताते हैं कि पहले गांवों में ऐसे पशुओं और मवेशियों के लिए अलग स्थान रहता था, जिसे फाटक कहा जाता था। इस समस्या को दूर करने के लिए ही छत्तीसगढ़ में चल रही नरूआ गरूआ, घुरूआ और बाड़ी योजना लागू करने का विचार किया जा रहा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कृषि मंत्री लालचंद कटारिया और राजाखेड़ा के विधायक रोहित बोहरा कुछ समय छत्तीसगढ़ में इस योजना को देखकर आए हैं और उन्हें यह काफी अच्छी लगी है। अब राजस्थान में यहां की परिस्थितियों को देखते हुए इस योजना को लागू करने पर विचार किया जा रहा है। हर गांव का होगा मास्टरप्लान दरअसल राजस्थान में सरकार हर गांव का मास्टरप्लान तैयार करवा रही है। इसके तहत गांवों में बेसहारा पशुओं के लिए भी स्थान तय किया जाएगा।

गांव के किसान और पशुपालक चाहेंगे तो अपने मवेशी भी दिन के समय इस स्थान पर रख सकेंगे। इनके चारे-पानी की व्यवस्था गांव की पंचायत आपसी सहयोग से करेगी और यहां मवेशियों से मिलने वाले गोबर से गोबर गैस और गोबर के अन्य उत्पाद जैसे जलाने के लिए कंडे आदि बनाए जाएंगे। इससे महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा। साथ ही, इसी स्थान पर केंचुआ खाद और अन्य जैविक खाद भी तैयार की जाएगी।

मवेशियों के पानी की व्यवस्था के लिए छोटा कच्चा तालाब भी बनाया जाएगा। इस तरह यह स्थान गांव में मवेशियों के रहने का स्थान तो बनेगा ही, साथ ही गांव में महिलाओं के रोजगार और पंचायत की आय का साधन भी बन सकेगा। कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि यह योजना वहां सफलतापूर्वक चल रही है और हम भी इस पर विचार कर रहे हैं।

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