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Madhav Darak Passes Away: कवि माधव दरक नहीं रहे, सीएम अशोक गहलोत ने जताया शोक

Madhav Darak Passes Away राजस्थानी भाषा के सर्वोच्च कवि माने जाने वाले माधव दरक का देहांत 90 वर्ष की आयु में उनके पैतृक गांव केलवा राजसमंद में हुआ। प्रदेश के साहित्यकार और कवियों ने माधव दरक को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राजस्थानी साहित्य की अपूरणीय क्षति बताया है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sat, 26 Dec 2020 09:33 PM (IST)Updated: Sat, 26 Dec 2020 09:33 PM (IST)
Madhav Darak Passes Away: कवि माधव दरक नहीं रहे, सीएम अशोक गहलोत ने जताया शोक
कवि माधव दरक नहीं रहे, सीएम अशोक गहलोत ने जताया शोक। फाइल फोटो

उदयपुर, संवाद सूत्र। Madhav Darak Passes Away: ‘मायड़ थारो वो पूत कठै...’ और ‘एड़ो म्हारो राजस्थान...’ जैसी सैकड़ों कविताओं के सृजनकर्ता राष्ट्रीय कवि माधव दरक की शनिवार को सांसारिक दुनिया को अलविदा कर गए। राजस्थानी भाषा के सर्वोच्च कवि माने जाने वाले माधव दरक का देहांत 90 वर्ष की आयु में उनके पैतृक गांव केलवा राजसमंद में हुआ। प्रदेश के साहित्यकार और कवियों ने माधव दरक को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राजस्थानी साहित्य की अपूरणीय क्षति बताया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य अरविन्द सिंह मेवाडत्र ने भी राजस्थानी कवि के देहावसान को लेकर शोक जताया है।

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राजस्थानी कवि के देहावसान को लेकर उदयपुर में साहित्यकारों तथा कवियों ने शोक संवेदना जारी किए हैं। संप्रति संस्थान की ओर से आयोजित शोकसभा में विभिन्न साहित्यकारों ने उनके निधन को जनभाषा मेवाड़ी की काव्यशक्ति की अपूरणीय क्षति बताते उन्हें शालीनता, सहजता और सरलता का सर्वाधिक लोकप्रिय जनकवि बताया। कवि अजातशत्रु ने कहा कि माधवजी उनके पहले काव्यगुरु थे, जिन्होंने मंचीय कवि के रूप में उन्हें स्थापित किया। उनकी ‘मायड़ थारो वो पूत कठै’ कविता हर चौथे मेवाड़ी के मोबाइल की रिंगटोन ही बन गई। वे जहां भी ‘एड़ो म्हारो राजस्थान’ सुनाते, हजारों हाथ हवा में लहराकर उनकी वाहवाही में तालियों की गूंज दिये अथक बने रहते। साहित्यकार डॉ. देव कोठारी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य तुलसी पर लिखी ‘आप पधारे जहां तुलसी’ कविता सुनाकर उन्होंने पूरे देश में धर्मक्रान्ति का शंखनाद किया। उनकी ‘जैनाचार्य तुलसी’ कविता तो हर समारोह की शीर्ष शोभा ही सिद्ध हुई।

राजस्थानी के साहित्यकार डॉ. महेन्द्र भानावत ने तीन जनवरी 1953 के प्रसंग को याद करते हुए बताया कि पहली बार माधवजी ने लेकपेलेस में महाराणा भूपालसिंहजी के समक्ष ‘मंगरा रे बीच राण कुंभा, कुंभलगढ़ किलो बंधवायो’ कविता सुनाकर पुरस्कार प्राप्त किया। उनकी प्रेरणा से तेरापंथ के अग्रणी श्रावक सवाईलाल पोखरना ने बम्बई तेरापंथ धर्मसंघ द्वारा एक भव्य समारोह आयोजित कर माधवजी का बहुमान कराया। साहित्यकार किशन दाधीच का कहना था कि उनके कण्ठ में मेवाड़ी की मिठास का यह प्रभाव रहा कि पूरे देश में सर्वाधिक लोकप्रिय जन-जन के चहेते रसदार कवि बने रहे। डॉ. इकबाल सागर के अनुसार, प्रतिवर्ष प्रताप जयंती पर प्रताप स्मारक मोती मगरी पर आयोजित कवि सम्मेलन में माधवजी ही मुख्य किरदार के रूप में छाये रहते। पहली बार उन्होंने ही ‘मायड़ थारो वो पूत कठै’ कविता सुनाई थी जो सर्वाधिक सराही गई। इस अवसर पर डॉ. श्री कृष्ण ‘जुगनू’, डॉ. ज्योतिपुंज ने भी संवेदनाएं व्यक्त कीं। 


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