कोरोना काल में पौधारोपण हुआ मुश्किल, बीजों से हरियाली लाने का किया प्रयास
कोरोना काल में सामूहिक पौधारोपण का आयोजन करना नामुमकिन इसलिए बीजों से हरियाली लाने का प्रयास किया जा रहा है।
जयपुर, राज्य ब्यूरो। कोरोना काल में पौधारोपण कर हरियाली बढ़ाना मुश्किल था। सामूहिक पौधारोपण के आयोजन भी मुश्किल है। ऐसे में इस बार राजस्थान में बीजों से हरियाली लाने का प्रयास किया गया है और दावा किया जा रहा है कि पिछले दो-तीन माह में प्रदेश भर में करीब पांच लाख बीज बोए गए हैं जो अब बारिश में अच्छे परिणाम देंगें। बीजों से हरियाली का यह अभियान राजस्थान के वन विभाग के अधीन आने वाले राजस्थान वानिकी एवं वन्यजीव प्रशिक्षण संस्थान ने चलाया था। संस्थान के निदेशक और प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ. एन.सी. जैन ने बताया कि कोरोना काल में लोग सामाजिक संपर्क से बच रहे हैं।
ऐसे में लोगों का सामूहिक रूप से मिलकर पौधारोपण करना कठिन है। इसी को देखते हुए संस्थान ने बीजों से हरियाली अभियान चलाया, जिसमें एक-दो लोग मिलकर पेड़ों के बीज इकट्ठा करके इन्हें कहीं भी लगा सकते हैं।उन्होंने बताया कि इस बार कोरोना के कारण संस्थान में प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं हो पा रहे थे, इसलिए ऑनलाइन वर्कशॉप के जरिए बीजों से हरियाली के बारे में लोगों को जागरूक किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों ने अपने आसपास ही बीजों को इकट्ठा करके उन्हें रोपा।
इस अभियान में नेहरू युवा केंद्र और अन्य कई स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से 5 लाख से अधिक बीजों का रोपण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त कई वन अधिकारियों ने भी नरेगा कार्यक्रम के तहत सीड बॉल्स बनाकर बीजारोपण का काम बड़े पैमाने पर कराया है। इसमें आम, जामुन, करौंदा, लसोड़ा जैसे फलदार पौधों के बीज तो लोगों ने घर पर ही जमा किए इसके अलावा हर जगह नीम के पेड़ मिल जाते हैं। इनके नीचे गिरे बीजों को रोपने के लिए भी लोगों से कहा गया। जैन ने बताया एक बार की बारिश ही रोपे गए बीजों को हरियाली में बदल देती है।
ऐसे लाई जा सकती है बीजों से हरियाली
वन संरक्षक डॉ.जैन ने बताया कि हम सभी जानते हैं कि सभी प्रजातियों के पेड़ काफी मात्रा में बीज पैदा करते हैं। यदि उनको उपयुक्त स्थान जैसे थोड़ी ढीली मिट्टी, नमी एवं सुरक्षित स्थान पर रोप दिया जाए तो उनमें से अधिकांश बीजों से पौधे निकल आएंगे। बीजों से हरियाली के अभियान में यही प्रयास किया गया है। अधिक बेहतर ढंग से हरियाली प्राप्त करने के लिए छोटी सी जगह पर वर्षा के पानी को रोका जाए। उसके आसपास मिट्टी को नरम करके ढेर लगाया जाए और उसमें बीज बो दिया जाए। इससे बीजों के उगने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही एक बार बीज बोने के बाद हर एक-दो सप्ताह में वहां जाकर निराई गुड़ाई कर बीजों से निकले हुए पौधे के चारों और मिट्टी को अच्छी प्रकार से दबा दिया जाए तो पौधों के बड़े होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
जैन ने बताया कि इसके लिए यह जरूरी है कि हम स्थानीय परिस्थिति के अनुसार उपयुक्त प्रजातियों का चुनाव करें। जैसे हल्की पहाड़ी, कठोर अथवा पथरीली जमीन हो तो रोंझ, सिरस, नीम, पलाश, अमलतास, चुरैल, बेल आदि के बीज लगाए जाएं। यदि मैदानी और गहरी मिट्टी वाला क्षेत्र हो तो नीम, शीशम, अरड़ू, बबूल, करंज, पलाश, आम, जामुन, लसोड़ा, बरगद, पीपल, गुलमोहर जैसी प्रजातियों का चुनाव किया जा सकता है। यदि क्षेत्र से कोई छोटा-बडा नाला निकलता हो तो उसके आसपास की भूमि में अर्जुन, बहेड़ा, करंज, करौंदा, छोटी जामुन, खजूर, गूलर, लसोड़ा आदि प्रजातियों के बीज लगाए जा सकते है।