Rajasthan: मेवाड़ के जंगलों में चीता के पुनर्वास की योजना
Cheetah चित्तौड़गढ़ के उप वन संरक्षक सुगनाराम बताते हैं कि चित्तौड़गढ़ में चीता के पुनर्वास के लिए तैयारियां जारी हैं। नामीबिया से लाए जाने वाले चीतों को यहां बसाया जाता है तो क्षेत्र विशेष ही नहीं बल्कि समूचे राजस्थान के लिए गौरव की बात है।
उदयपुर, सुभाष शर्मा। Cheetah: सात दशक पहले भारत से लुप्त चीता के भारत में पुनर्वास के प्रयास जारी हैं। इसके लिए जिन वनक्षेत्रों को मुफीद माना जा रहा है, उनमें उदयपुर (मेवाड़) संभाग का वन क्षेत्र भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि संभाग के चित्तौड़गढ़ जिले और मध्य प्रदेश तक फैले भैंसरोडगढ़ के जंगलों में चीता रह पाएंगे। सब कुछ तैयार की गई योजना के अनुसार रहा तो जल्द चित्तौड़गढ़ और मध्य प्रदेश के मैदानी वन क्षेत्र में अफ्रीकन चीता दौड़ते नजर जाएंगे। चित्तौड़गढ़ के उप वन संरक्षक सुगनाराम बताते हैं कि चित्तौड़गढ़ में चीता के पुनर्वास के लिए तैयारियां जारी हैं। नामीबिया से लाए जाने वाले चीतों को यहां बसाया जाता है तो क्षेत्र विशेष ही नहीं, बल्कि समूचे राजस्थान के लिए गौरव की बात है।
चीता के लिए खुला तथा मैदानी जंगल चाहिए, जो भैंसरोडगढ़ में मौजूद है। वन, पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रालय चीतों को लाने के लिए बजट जारी कर चुकी है। चीता के लिए अनुकूल है चित्तौड़गढ़ के जंगल वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. सतीश शर्मा बताते हैं कि चीता के लिए चित्तौड़गढ़ के वन क्षेत्र बेहतर हैं। चीता को दौड़ने के लिए लंबा पथ चाहिए। वह 80 से 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ता है।
बाघ बसाने की भी योजना
उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले के अंतर्गत पाली जिले तक पसरा कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य अभी तक भालुओं तथा तेंदुओं के लिए जाना जाता है। यहां बाघों को बसाने की योजना पर काम जारी है। उदयपुर के सज्जनगढ़ बायलोजीकल पार्क से टाइगर टी-24 को वहां शिफ्ट किया जाना था, लेकिन उसके जनवरी में मादा बाघ दामिनी को मारने के बाद इस योजना विराम लग गया था। कुंभलगढ़ में बाघ को शिफ्ट किए जाने को लेकर वहां सभी तैयारी पहले से ही पूरी कर ली गई हैं।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक संयुक्त अध्ययन में भारतीय वैज्ञानिकों ने भारत से लुप्त हो चुके चीते को दोबारा देश में उसके वन्य आवास में स्थापित करने की संभावनाओं का आकलन किया है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जानने का प्रयास किया है कि अफ्रीकी चीता भारतीय परिस्थितियों में किस हद तक खुद को अनुकूलित कर सकता है। शोधकर्ताओं ने इस आनुवांशिक अध्ययन में एशियाई और अफ्रीकी चीतों के विकास क्रम में भी भारी अंतर का पता लगाया है।