हमारी एक मस्जिद की अजान सुनकर पाकिस्तान के रोजेदार करते है सहरी
पाकिस्तान के इन दोनों गांवों में मस्जिद नहीं होने के कारण यहां के रोजेदारों को बन्ने की बस्ती गांव की मस्जिद में होने वाली अजान पर ही निर्भर रहना पड़ता है ।
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। भारत और पाकिस्तान सीमा पर चाहे कितना भी तनाव हो,लेकिन राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर में एक मस्जिद दोनों देशों के बीच एक रिश्ता जोड़े है,जिसकी डोर रमजान के महीने में और अधिक मजबूत हो जाती है। रिश्तों की डोर मजबूत करता है अंतरराष्ट्रीय सीमा के बिल्कुल निकट बसा बन्ने की बस्ती गांव।
बन्ने की बस्ती गांव की मस्जिद में होने वाली अजान सरहद पार के गांव पादासरिया और जमाल की ढाणी तक सुनाई देती है और इसी के भरोसे वहां के रोजेदार सहरी करते है। पाकिस्तान के इन दोनों गांवों में मस्जिद नहीं होने के कारण यहां के रोजेदारों को बन्ने की बस्ती गांव की मस्जिद में होने वाली अजान पर ही निर्भर रहना पड़ता है। रमजान के महीने में बन्ने की बस्ती गांव की मस्जिद रोजेदारों के लिए खास बन जाती है।
यहां के निवासी रफीक अहमद,मुस्ताक अहमद सहित अन्य लोगों का कहना है कि आसपास के गांवों में केवल हमारा गांव ही ऐसा है,जहां कि मस्जिद है। बंटवारे के समय उनके ही कई रिश्तेदार पाकिस्तान सीमा में रहने लगे थे।
अंतरराष्ट्रीय सीमा से मात्र 5 किमी.दूर बन्ने की बस्ती गांव की मस्जिद उन रिश्तेदारों के लिए रमजान में काफी महत्वपूर्ण साबित होती है। बन्ने की बस्ती गांव के लोगों का कहना है कि सीमा पर तारबंदी के बाद दोनों देशों में रहने वालों का आना-जाना चाहे बंद हो गया हो,लेकिन आज भी सीमा पार कुछ गांव रमजान के महीने में सूरज निकलने से पहले तक सहरी अदायगी यहां की हमारी मस्जिद की अजान से करते है। इसी तरह सूरज डूबने के वक्त अर्थात मगरिब की अजान होने पर वहां रोजा इफ्तार होता है ।