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गरीब परिवारों के बच्चों के लिए नगारची का 'भागीरथ' प्रयास, रियल हीरो भागीरथ बने प्रेरणास्पद

कोरोना काल में गरीबी से जूझ रहे खेल शिक्षक भागीरथ नगारची ने अनोखी मिसाल पेश की है। नाथद्वारा रोड पर राजकीय बालिका विद्यालय के सामने सड़क किनारे एक खाट के इर्द-गिर्द बच्चों को पढ़ाते किसी युवा को देखे तो समझो वह भागीरथ नगारची हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Sat, 13 Feb 2021 10:47 AM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2021 10:54 AM (IST)
गरीब परिवारों के बच्चों के लिए नगारची का 'भागीरथ' प्रयास, रियल हीरो भागीरथ बने प्रेरणास्पद
खेल शिक्षक भागीरथ नगारची दूसरों के लिए भी नजीर बन गए

उदयपुर, सुभाष शर्मा। कोरोना काल में निजी शिक्षण संस्थान ने वेतन देने में असमर्थता जताई तो पहले से गरीबी से जूझ रहे खेल शिक्षक भागीरथ नगारची टूटे नहीं, बल्कि उन्होंने कुछ ऐसा किया जो दूसरों के लिए भी नजीर बन गया। उनके 'भागीरथी' प्रयास से गरीब बच्चे शिक्षित होने लगे। उनके लिए पुस्तक, कॉपी तथा पैंसिल आदि की व्यवस्था हो सके, इसके लिए उन्होंने सड़क किनारे प्लास्टिक के गमले बेचना शुरू किया उनसे होने वाली आय से इनका खर्चा उठाना शुरू किया। 

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 प्लास्टिक के गमले बेचने का लिया निर्णय 

उदयपुर शहर में फतहपुरा से करीब आधा किलोमीटर आगे नाथद्वारा रोड पर राजकीय बालिका विद्यालय के सामने सड़क किनारे एक खाट के इर्द-गिर्द बच्चों को पढ़ाते किसी युवा को देखे तो समझो वह भागीरथ नगारची हैं। भागीरथ उदयपुर के समीप बड़गांव स्थित एक निजी शिक्षण संस्थान में बतौर खेल शिक्षक नियुक्त हैं लेकिन कोरोना महामारी के बाद शिक्षण संस्थान ने वेतन देने में असमर्थता जता दी। ऐसे में उदयपुर में रहकर खुद का खर्चा चलाना कठिन था लेकिन वह टूटे नहीं। दैनिक खर्चा उठाने के लिए उन्होंने प्लास्टिक के गमले बेचने का निर्णय लिया और सड़क किनारे गमले बेचना शुरू कर दिया। पास की पुलां बस्ती में गरीब परिवारों के बच्चों को यूं ही घूमते देखा तो उन्होंने उन्हें शिक्षित कराने का प्रयास शुरू किया। 

 बिना पैसा शिक्षा के साथ पाठ्य सामग्री भी 

सबसे पहले वह गरीब बच्चों के माता-पिता से मिले और उन्हें पढ़ाने की बात कही। तब उन परिवार के लोगों को लगा कि इसके एवज में उन्हें पैसा देना होगा लेकिन भागीरथ नगारची के बिना पैसा शिक्षा देने के साथ पुस्तक, कॉपी, पैन-पैन्सिल की व्यवस्था करने की बात पर वह बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजने लगे। बच्चों को बिठाने के लिए प्लास्टिक की छोटी-छोटी कुर्सियों की व्यवस्था की जिन्हें वह बेचने भी लगे और अपने कमरे से एक खाट ले आए। उसी के साथ यहां दैनिक रूप से बच्चों की क्लास शुरू हो गई। कोरोना महामारी के बाद लॉकडाउन खत्म होने के एक महीने बाद से उनकी क्लास दैनिक रूप से जारी है। शिक्षित करने के साथ ही उन्होंने कुछ बच्चों का प्रवेश पास के सरकारी स्कूलों में कराया। 

 बच्चों को दे रहे  नि:शुल्क प्रशिक्षण

एमए करने के बाद बीपीएड करने वाले खेल शिक्षक खुद अच्छे रेसलर हैं। वह बच्चों को रेसलर बनाने के लिए उन्हें नि:शुल्क प्रशिक्षण देते हैं। उदयपुर की प्रख्यात लक्ष्मण व्यायामशाला में वह बच्चों को ले जाते हैं और कुश्ती के गुर सिखाते हैं। साथ ही गांधी ग्राउण्ड ले जाकर उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। गरीबी देखी है इसलिए उनकी पीड़ा समझते हैं। भागीरथ कहते हैं कि उन्होंने गरीबी देखी है। गोगुंदा उपखंड क्षेत्र के सायरा तहसील के सिंघाड़ा गांव के भागीरथ बेहद गरीब परिवार से हैं। परिवार उनकी शिक्षा उठाने में असमर्थ थे लेकिन उन्होंने मजदूरी कर अपनी पढ़ाई जारी रखी और अधिस्नातक करने के साथ बीपीएड भी किया। अब सरकारी नौकरी के लिए अध्ययन में जुटे हैं। उनका कहना है कि सरकारी सेवा के बाद वह गरीब परिवार के ज्यादा बच्चों को पढ़ा पाएंगे। वे मानते हैं कि आर्थिक स्थिति के चलते भी  समाज में भेदभाव होता है और इसे खत्म करने के लिए जरूरी है शिक्षित होना।


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