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Rajasthan: पाठ्यक्रम निर्धारण कमेटी के सदस्य बोले, महाराणा प्रताप से जुड़े तथ्य तोड़-मरोड़कर पेश करना अपमानजनक

Maharana Pratap राजस्थान के उदयपुुर में पाठ्यक्रम निर्धारण कमेटी में शामिल सदस्यों ने कहा कि पाठ्यक्रम निर्धारण को लेकर उनकी सहमत लेना तो दूर उनसे बात तक नहीं की।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 05:32 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 05:32 PM (IST)
Rajasthan: पाठ्यक्रम निर्धारण कमेटी के सदस्य बोले, महाराणा प्रताप से जुड़े तथ्य तोड़-मरोड़कर पेश करना अपमानजनक
Rajasthan: पाठ्यक्रम निर्धारण कमेटी के सदस्य बोले, महाराणा प्रताप से जुड़े तथ्य तोड़-मरोड़कर पेश करना अपमानजनक

उदयपुर, संवाद सूत्र। Maharana Pratap: माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान की 10वीं और 12वीं इतिहास की पुस्तक में महाराणा प्रताप, हल्दीघाटी युद्ध सहित मेवाड़ के इतिहास से जुड़े तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करना तथा अपमानजनक तथ्यों को कोर्स में शामिल किए जाने में उनकी सहमति बताना उनका अपमान है। पाठ्यक्रम निर्धारण कमेटी में शामिल दोनों सदस्यों ने बुधवार को उदयपुर के प्रताप गौरव केंद्र में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि पाठ्यक्रम निर्धारण को लेकर उनकी सहमति लेना तो दूर उनसे बात तक नहीं की। इसके बावजूद उनकी सहमति का उल्लेख कर पाठ्यक्रम तय किया जाना उनका अपमान है। दोनों सदस्य इस संबंध में जल्द ही राजस्थान हाईकोर्ट में मानहानि का दावा पेश करने को लेकर कानूनविदों की राय ले रहे हैं। उनका कहना है कि यह इतिहास के साथ नहीं, बल्कि भविष्य के साथ भी खिलवाड़ है।

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इतिहासकार प्रो. केएस गुप्ता के मुताबिक, 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक में महाराणा प्रताप के बारे में जो लिखा गया है, वह विकृत मस्तिष्क की सोच है। उन्होंने इसे विश्व इतिहास के अभूतपूर्व योद्धा की छवि को जान-बूझकर धब्बा लगाने का प्रयास बताया। उनका कहना है कि हल्दीघाटी युद्ध में मौजूद अबुलफजल से लेकर बदायुनी स्वीकार करते हैं कि हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना के दो ओर से किए आक्रमण को मुगल सेना नहीं झेल पाई थी। हल्दीघाटी के निर्णायक युद्ध के बाद मान सिंह तथा मीर बख्शी आसफ खां के मुगल दरबार में उपस्थित होने पर रोक लगा दी गई थी, यह साबित करता है कि युद्ध किसके पक्ष में रहा। यह सभी तथ्य पूर्व मेें दसवीं की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में उल्लेखित था, लेकिन उसे हटाए जाने के साथ तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। इसी तरह हल्दीघाटी के नामकरण को लेकर भी हास्यास्पद बात लिखी गई है। उन्होंने कहा कि महेंद्र भाणावत नामक किसी लेखक के हवाले से यह लिखा है कि युद्ध में प्रताप की पत्नी तथा नव विवाहिताओं के लड़ने की कपोल कल्पना आधारित बात को मानते हुए उसे हल्दीघाटी नाम दिया गया। जबकि सर्वविदित है कि हल्दीघाटी की माटी का रंग पीली हल्दी जैसा होने से अरावली पर्वतमाला के इस दर्रे को हल्दीघाटी कहा जाता है।

इतिहासकार डॉ. देव कोठारी का कहना है कि उदय सिंह को बनवीर का हत्यारा बताने सहित मनगढंत आधारों को मानकर मेवाड़ के इतिहास से छेड़छाड़ किया गया है। उन्होंने बताया कि सरस्वती नदी के इतिहास को लेकर भी पाठ्यक्रम में जानकारी कम कर दी हैं, जबकि वैज्ञानिक शोधों से जाहिर होता है कि ऋग्वेद में जो लिखा है, वह अक्षरश: सत्य है। उनका कहना है कि राज्य सरकार प्रदेश के गौरव को कम करने का काम करने में जुटी है, जो राज्य सरकार की गुलाम मानसिकता है। पत्रकार वार्ता के दौरान वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष गोविन्द सिंह टांक तथा सचिव एवं पूर्व कुलपति महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर प्रो. परमेंद्र दशोरा ने भी पाठ्यक्रम परिवर्तन समिति के अध्यक्ष प्रो. बीएम शर्मा से इस्तीफा देने के साथ माफी मांगने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यदि पाठ्य पुस्तक तथा ई-पुस्तकों से मेवाड़ के इतिहास से जुड़े गलत तथ्य नहीं हटाए तो आंदोलन किया जाएगा।


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