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कोटड़ा के आदिवासियों से सीखें महिलाओं का सम्मान, क्षेत्र की 44 ग्राम पंचायतों में 28 महिला सरपंच

कोटड़ा के आदिवासियों से सीखें महिलाओं का सम्मान आदिवासी क्षेत्र कोटड़ा में महिलाएं पुरुषों से ज्यादा सशक्त क्षेत्र की 44 ग्राम पंचायतों में 28 महिला सरपंच

By Preeti jhaEdited By: Published: Sun, 19 Jan 2020 11:31 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 11:31 AM (IST)
कोटड़ा के आदिवासियों से सीखें महिलाओं का सम्मान, क्षेत्र की 44 ग्राम पंचायतों में 28 महिला सरपंच
कोटड़ा के आदिवासियों से सीखें महिलाओं का सम्मान, क्षेत्र की 44 ग्राम पंचायतों में 28 महिला सरपंच

उदयपुर, सुभाष शर्मा। प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाके और उदयपुर के सबसे दूरस्थ क्षेत्र की बात आती है तो सबसे पहले कोटड़ा का नाम जेहन में आता है। यहां मौताणा (जान का बदला जान से), झगड़ा (पैसा लेकर विवाद का निपटारा) जैसी कुरीतियों जिंदा है और शिक्षा का प्रतिशत प्रदेश के औसत से बेहद कम है लेकिन इस क्षेत्र से जुड़ी एक बात ऐसी भी है जिसे राज्य ही नहीं, बल्कि समूचे देश को अपनाना चाहिए। यह बात है यहां की महिलाओं का सम्मान।

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आदिवासी बहुल कोटड़ा में महिलाओं को पुरुषों के समान ही सम्मान दिया जाता है। आज भी यहां पुत्री के जन्म पर थाली बजाई जाती है और गुड़ बांटकर खुशी का इजहार किया जाता है। यहां की महिलाएं राजनीति क्षेत्र में पुरुषों से कमतर नहीं। कोटड़ा उपखंड की 44 ग्राम पंचायतों में 28 ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच काबिज हैं।यह महिलाएं घर और पंचायतों को बखूबी संभालती आ रही हैं। बिजली, पानी, सडक़ एवं अन्य आधारभूत सुविधाओं के मामले में कोटड़ा उपखंड आज भी राज्य के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में शुमार है लेकिन यहां की महिलाओं के लिए बड़े ही गौरव की बात यह है कि यहां उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाता।

बल्कि यहां स्थिति एकदम विपरीत है। यहां आज भी पुत्री जन्म की खुशी पुत्र के जन्म से ज्यादा मनाई जाती हैं। लोगों का कहना है कि संभवत: यह देश का इकलौता समाज है जहां बेटी की शादी में पिता को दहेज नहीं देना होता है, बल्कि पुत्र पक्ष ही शादी के सारे खर्चा वहन करता आया है। आदिवासी क्षेत्र में लंबे समय से काम कर स्वयं सेवी संगठन के पदाधिकारी राजू पालीवाल बताते हैं कि समय के साथ यहां थोड़ा बहुत बदलाव आया है कि लेकिन आदिवासी परम्परा के अनुसार पुत्री की शादी के समय बाराती पक्ष भोजन लेकर वधू के घर पहुंचते थे। पहले वर पक्ष ऊंटों की पीठ पर रोटियों की बोरी, लापसी बनाने के लिए दलिया, गुड और अन्य खाद्य सामग्री लेकर वधू पक्ष के घर आते थे। इसके बाद लाया गया खाना उनके गांवों में पकाया जाता और समूचे गांव के लोग एक साथ बैठकर खाना खाते थे। अब इस परम्परा में बदलाव आया है। अब वर पक्ष वधू पक्ष के गांव में पहले से ही खाने की तैयारी हलवाइयों से कराने लगे हैं।

कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों नहीं कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं शहरी क्षेत्रों में सामने आती रहती हैं और राज्य सरकार ने भ्रूण परीक्षण को लेकर कड़े कानून बनाए लेकिन आदिवासी समाज में कन्या भ्रूण हत्या के एक भी मामला आज तक सामने नहीं आया। कोटड़ा प्रधान मुरारीलाल बुम्बरिया बताते हैं कि उनके समाज में लड़का- लड़की में अंतर नहीं किया जाता, बल्कि लड़की जन्म पर ज्यादा खुशियां मनाई जाती हैं।

आदिवासियों में दहेज को लेकर प्रताडऩा की एक भी घटना सामने नहीं आई। वह कहते हैं कि आदिवासी समाज इकलौता समाज है जो पुत्री जन्म पर थाली बजाकर यह संदेश गांव भर को देता है। 


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