कोचिंग हब से फैक्ट्री बन रहा कोटा, प्रतिदिन 16 घंटे पढ़ाई,साल में एक सप्ताह की छुट्टी
देश में कोचिंग हब के रूप में प्रसिद्ध कोटा शहर अब फैक्ट्री बनता जा रहा है। कोटा पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार साल 2012 से लेकर अब तक 112 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी की है।
कोटा, नरेन्द्र शर्मा। देश में कोचिंग हब के रूप में प्रसिद्ध कोटा शहर अब फैक्ट्री बनता जा रहा है। देश के विभिन्न भागों से मेडिकल,इंजीनियरिंग और सीए में प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा अाने वाले स्टूडेंट्स के लिए अब यह शहर महज उनके माता-पिता के सपने पूरी करने एवं प्रतिस्पर्धा की फैक्ट्री बन गया है। "सपने पूरे नहीं होने पर स्टूडेंट्स की सांसे टूट रही है "।
कोटा पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार साल 2012 से लेकर अब तक 112 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी की है। इनमें इस साल 26 सितम्बर तक 14 स्टूडेंट्स ने जान दी है। अधिकांश मामलों में आत्महत्या का कारण पढ़ाई का दबाव बताया गया है। देश और प्रदेश के शिक्षा जगत से जुड़े लोगों एवं प्रशासनिक अधिकारियों का मानना है कि कोचिंग हब के रूप में देशभर में प्रसिद्ध कोटा अब फैक्ट्री का रूप ले चुका है जहां स्टूडेंट्स को कच्चा माल समझा जाता है और दिन-रात कच्चे माल को तैयार करने की कवायद चलती रहती है।
कोटा शहर में करीब 300 कोचिंग संस्थान और 2 हजार से अधिक हॉस्टल है। इनमें करीब डेढ़ लाख स्टूडेंट्स है। ये स्टूडेट्स राजस्थान के विभिन्न जिलों के अतिरिक्त यूपी,बिहार,छत्तीसगढ़,हरियाणा,पश्चिम बंगाल,दिल्ली,मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों के है। मेडिकल,इंजीनियरिंग और सीए प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने कोटा आए स्टूडेंट्स की समस्या अकेलापन,माता-पिता की महत्वकांक्षाएं,प्रतिदिन 16 घंटे पढ़ाई का दबाव,साल में एक सप्ताह की छ़ुट्टी सहित ऐसे कई कारण है,जिनके चलते स्टूडेंट्स तनाव में आ जाते है और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते है ।
माता-पता की महत्वकांक्षाएं और मानसिक दबाव
कोटा में आत्महत्या करने वाले स्टूडेंट्स में से अधिकांश ने अपने सुसाइड नोट में लिखा "मम्मी-पापा मुझे माफ करना,मै आपके सपनों को पूरा नहीं कर सका,मेरा मेडिकल अथवा आईआईटी में एडमिशन नहीं हो सका "। स्टूडेंट्स की आत्महत्याओं के मामलों की अधिकांश पुलिस और प्रशासनिक जांच में सामने आता है कि माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर अथवा इंजीनियर बनाने के दबाव में रखते है।
वहीं कोचिंग संस्थान प्रत्येक सप्ताह और प्रत्येक माह में टेस्ट लेता है,इनमें कम नंबर आने वाले स्टूडेंट्स का मजाक उड़ाया जाता है,उन्हे क्लास में पिछे स्थान मिलता है। टीचर टॉपर स्टूडेंट्स का ख्याल रखते है,ऐसे में कमजोर स्टूडेंट्स शर्म महसूस करते है। उन पर एक तरफ तो माता-पिता की महत्वकांक्षा का दबाव होता है और दूसरी तरफ प्रतिस्पर्धा होती है। इन सब के चलते वह तनाव में आकर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते है।
अकेलेपन की घुटन और सदमा
देश में विभिन्न हिस्सों से कोचिंग के लिए आने वाले स्टूडेंट्स कोटा में खुद को अकेला महसुस करते है। उनके दोस्त तो होते है,लेकिन वे अपने मन की बात किसी से नहीं कर पाते और अकेलेपन में तनाव अधिक बढ़ता जाता है,आखिरकार आत्महत्या जैसे कदम उठा लिए जाते है। कुछ स्टूडेंट्स अकेलेपन को दूर करने के लिए ड्रग्स का सहारा लेते है। कई स्टूडेंट्स ड्रग्स के अडिक्ट हो जाते है। कई स्टूडेंट्स को कोचिंग कोर्स में बहुंत सारी किताबें और बिना छुट्टी के कारण बहुत मुश्किल महसूस होती है। यहां रविवार को भी टेस्ट होता है। इतना कुछ है कि अगर स्टूडेंट एक क्लास भी छोड़ दे तो वह पिछड़ जाता है।
राज्यपाल,सीएम से लेकर कलेक्टर ने किए प्रयास
कोटा में स्टूडेंटृस की बढ़ती आत्महत्याओं को देखते हुए राज्यपाल कल्याण सिंह ने राज्य सरकार से जवाब मांगा और इस बारे में उचित कदम उठाने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कोचिंग संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ संवाद कर जिला कलेक्टर को स्टूडेंट्स के माता-पिता के साथ बात करने के लिए कहा। राज्य मानवािधकार आयोग ने सरकार और जिला कलेक्टर से जवाब मांगा। तत्कालीन जिला कलेक्टर रवि कुमार सुरपुर और वर्तमान जिला कलेक्टर गौरव गोयल ने अभिभावकों को पत्र लिखा।
वर्ष वार स्टूडेंट्स की आत्महत्याओं का आंकड़ा
साल 2018 (27 सितम्बर तक) - 15
साल 2017 - 24
साल 2016 - 5
साल 2015 - 17
साल 2014 - 14
साल 2013 - 26
साल 2012 - 11
कुल - 112
हालांकि गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या करीब 300 तक हो सकती है,लेकिन इनका कोई रिकॉर्ड नहीं है ।