तंत्र के गण: आदिवासी बच्चों के लिए खाकी वाले बने देवदूत
राजस्थान के आदिवासी जिलों बांसवाड़ा डूंगरपुर और प्रतापगढ़ में पढ़ने वाले बच्चों के लिए पुलिसकर्मी अब एक ऐसे परिजन की तरह हैं जो उनकी हर बात को सुनकर समाधान भी करते हैं।
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान के आदिवासी जिलों बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ में पढ़ने वाले बच्चों के लिए खाकी वर्दी वाले अंकल (पुलिसकर्मी) अब एक ऐसे परिजन की तरह हैं, जो उनकी हर बात को सुनकर समाधान भी करते हैं। अशिक्षा, गरीबी और अंधविश्वास के कारण पिछड़े आदिवासियों की भावी पीढ़ी का भविष्य संवारने का काम पुलिस ने हाथ में लिया है।
अब तक आदिवासियों के बच्चों की पड़ोसी राज्य गुजरात में तस्करी होती थी, लेकिन पुलिस के सामाजिक सरोकार के कारण इस पर लगाम लगी है। दरअसल, उदयपुर रेंज की पुलिस महानिरीक्षक बिनिता ने पुलिस और आदिवासियों के बीच सामंजस्य पैदा करने और इन बच्चों का भविष्य संवारने की पहल की। उन्होंने जिला पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिए कि वे अपने मातहत थाना अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहें कि वे अपने क्षेत्र में आदिवासियों के बच्चों को स्कूल भेजें। इस काम में यदि किसी तरह की परेशानी होती तो पुलिसकर्मी इसे सुलझाएंगे। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए डूंगरपुर के पुलिस अधीक्षक जय यादव तो खुद क्लास लेने लगे हैं ।
पहाड़ों में बसे आदिवासियों के हमदर्द बने पुलिसकर्मी:
पिछले छह माह में हालात इतने बदले की आदिवासियों के बच्चे पुलिसकर्मियों को अपना अंकल-दोस्त यहां तक की परिवार का सदस्य मानने लगे हैं। पुलिस ने आदिवासियों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए यूनिसेफ के साथ मिलकर वात्सल्य वार्ता का आयोजन करना शुरू किया है। इसके तहत बच्चों को पॉक्सो, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के बारे में जानकारी दी जाती है। बच्चों को स्कूल जाने और पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। जो बच्चे वर्तमान में पढ़ रहे हैं, उन्हे भविष्य में किस विषय की पढ़ाई करनी है, उस बारे में उनसे बात कर मदद की जाती है। बच्चों को बेहतर भविष्य निर्माण के लिए मार्गदर्शन किया जाता है।
पुलिसकर्मियों के साथ अच्छे रिश्तों का ही परिणाम है कि आदिवासियों के बच्चे अब अपने परिजनो को शराब नहीं पीने, वाहन चलाते समय हेलमेट का उपयोग करने और आपस में झगड़ा नहीं करने जैसे सलाह देते हैं। बिनिता ठाकळ्र का कहना है कि आदिवासी इलाके के पुलिस थानों में बच्चों के लिए अलग से कमरे बने हुए हैं।इन कमरो में पुलिसकर्मियों के साथ बैठकर वे अपनी बात रखते हैं, यदि कोई समस्या है तो बताते हैं।
पहाड़ों पर बसे आदिवासियों के बच्चों की पढ़ाई, यूनिफॉर्म, पुस्तक, स्कूल बैग, स्कूल में प्रवेश से लेकर अन्य सुविधाओं का इंतजाम पुलिसकर्मी करते हैं। इसमें कई पुलिसकर्मी अपने वेतन का कळ्छ हिस्सा इन बच्चों के लिए निकालते हैं।
सामाजिक सरोकार
बांसवाड़ा जिले के भगोरा खेड़ा गांव के बच्चे गणेश ने पिछले साल 10वीं कक्षा पास कर ली, वह आगे पढ़ाई करने के लिए अहमदाबाद जाना चाहता था, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। वह घाटोल पुलिस स्टेशन पर पहुंचा और अपनी बात बताई।
पुलिसकर्मियों ने उसे सहयोग का आश्वासन दिया। इस शिक्षा सत्र में उसे पढ़ने के लिए अहमदाबाद भेज दिया गया। इसका समस्त खर्च पुलिसकर्मी वहन करते हैं। इसी तरह डूंगरपुर जिले के रामसगड़ा पुलिस थाने ने एक आदिवासी परिवार की तीन बहनों को गोद लिया। इन तीनों बहनों के पिता रामसुख की मौत हो गई थी, मां उन्हे घर में छोड़कर दूसरे व्यक्ति के साथ चली गई। इस घटना की जानकारी मिली तो पुलिसकर्मियों ने तीनों बहनोंको गोद लिया, उनकी पढ़ाई का खर्च अब खुद वहन करते हैं। इस तरह ऐसे अनेक उदाहरण यहां देखे जा सकते हैं, जब पुलिसकर्मियों की मदद और सूझबूझ से बच्चों को मदद मिली।