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Republic Day: उदयपुर के इकबाल सक्का ने शायरियों में उकेरी हैं संविधान की विशेषताएं

Republic Day उदयपुर के इकबाल सक्का ने विश्व के सबसे लंबे भारतीय संविधान की विशेषताओं को गजल में लिखकर गुणगान किया है। विशेष बात तो यह है कि उन्होंने इन शायरियों को संविधान की प्रति के रूप में भी उकेरा है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 06:42 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 06:42 PM (IST)
Republic Day: उदयपुर के इकबाल सक्का ने शायरियों में उकेरी हैं संविधान की विशेषताएं
गणतंत्र दिवस पर उदयपुर के इकबाल सक्का ने शायरियों में उकेरी हैं संविधान की विशेषताएं। फोटो जागरण

उदयपुर, संवाद सूत्र। राजस्थान में उदयपुर के अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण शिल्पकार इकबाल सक्का ने विश्व के सबसे लंबे भारतीय संविधान की विशेषताओं को गजल में लिखकर गुणगान किया है। विशेष बात तो यह है कि उन्होंने इन शायरियों को संविधान की प्रति के रूप में भी उकेरा है। आजादी की 75वीं वर्षगांठ और गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में स्वर्ण शिल्पकार ने अपनी कला-कौशल के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि विश्व विख्यात संविधान के गौरव को सम्मान देने के लिए उन्होंने संविधान की विशेषताओं को गजल रूप में लिखने का प्रयास किया है।

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120 पृष्ठों में लिखी संविधान की विशेषताएं

इकबाल सक्का के अनुसार, संविधान की गजलमयी विशेषताओं को चर्मपत्र पर 120 पृष्ठों में 615 शायरियों के माध्यम से शब्दों में चित्रित किया गया है। इसके प्रथम पृष्ठ पर शीर्षक ‘संविधान-ए-गजल’ को चांदी के अक्षरों में लिखा है। उन्होंने बताया कि भारतीय मूल संविधान की तर्ज पर इस संविधान की गजल पुस्तिका का प्रत्येक पृष्ठ 58.4 सेमी ऊंचा व 47.7 सेमी चौड़ा है तथा वजन 13 किलो है। इसे मूल संविधान की तरह ही काली स्याही में लिखा गया है। इकबाल सक्का ने इसे विश्व का पहला और सबसे लंबा चर्मपत्र पर हस्तलिखित संविधान-ए-गजल होने का दावा किया है। इन दिनों राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देशभर में गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारियां चल रही हैं। 

इस तरह लिखी हैं शायरियां

स्वर्ण शिल्पकार इकबाल सक्का ने मूल संविधान में लिखी इबारतों के मंतव्य का समावेश करते हुए गजल रूप में शायरियों केे माध्यम से प्रस्तुत किया है। ये शायरियां कुछ इस तरह हैंः

‘‘ इब्तिदा करता हूं मैं, पढ़कर संविधान हमारा।

लिख रहा हूं मैं गजल में, संविधान हमारा।।

हर धर्म व मजहब को, लगाने गले सिखाता।

प्रकृति पर्यावरण की हिफाजत का संविधान हमारा।।

दखल अंदाजी न होगी लेखनी-ए-कलम पर।

आजाद रही कलम आजादी का संविधान हमारा।।

प्यासा न रहे कोई भूखा न सोए कोई कभी।

सरकार को देता हुक्म संविधान हमारा।।

चरींदे हो या परिंदे रखा सबका ख्याल।

कुछ नहीं रखता कसर ऐसा संविधान हमारा।।


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