Move to Jagran APP

इस तरह बसा उदयपुर, बाबाजी की धूणी पर बना राजमहल- उदयपुर के स्थापना की रोचक कहानी

मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की स्थापना 1559 में महाराणा उदयसिंह ने की। इतिहासकार भी यह मानते हैं कि उदयपुर की स्थापना आखातीज के दिन हुई है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 03:15 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 03:15 PM (IST)
इस तरह बसा उदयपुर, बाबाजी की धूणी पर बना राजमहल- उदयपुर के स्थापना की रोचक कहानी
इस तरह बसा उदयपुर, बाबाजी की धूणी पर बना राजमहल- उदयपुर के स्थापना की रोचक कहानी

उदयपुर, सुभाष शर्मा। मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की स्थापना 1559 में महाराणा उदयसिंह ने की। किन्तु तिथि को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलम मत हैं। कुछ इतिहासकार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार उदयपुर की स्थापना आखातीज के दिन मानते हैं तो कुछ का कहना है कि उदयपुर की स्थापना पंद्रह अप्रैल 1553 में ही हो गई थी। जिसके प्रमाण उदयपुर के मोतीमहल में मिलते हैं। जिसे उदयपुर का पहला महल माना जाता है जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है

loksabha election banner

जिसकी सुरक्षा मोतीमगरी ट्रस्ट कर रहा है। महाराणा उदय सिंह द्वितीय, जो महाराणा प्रताप के पिता थे, चित्तौडग़ढ़ दुर्ग से मेवाड़ का संचालन करते थे। उस समय चित्तौडग़ढ़ निरन्तर मुगलों के आक्रमण से घिरा हुआ था। इसी दौरान महाराणा उदयसिंह अपने पौत्र अमरसिंह के जन्म के उपलक्ष्य में मेवाड़ के शासक भगवान एकलिंगजी के दर्शन करने कैलाशपुरी आए थे। उन्होंने यहां आयड़ नदी के किनारे शिकार के लिए डेरे डलवाए थे। तब उनके दिमाग में चित्तौडग़ढ़ पर मुगल आतताइयों के आक्रमण को लेकर सुरक्षित जगह राजधानी बनाए जाने का मंथन चल रहा था।

इसी दौरान उन्होंने एक शाम अपने सामंतों के समक्ष उदयपुर नगर बसाने का विचार रखा। जिसका सभी सामंत तथा मंत्रियों ने समर्थन किया। उदयपुर की स्थापना के लिए वह जगह तलाशने पहुंचे तब उन्होंने यहां पहला महल बनवाया, जिसका नाम मोती महल दिया, जो वर्तमान मोती मगरी पर खंडहर के रूप में मौजूद है। जिसको लेकर कई इतिहासकारों का मानना है कि मोतीमहल उदयपुर का पहला महल है और एक तरह से इस के निर्माण के साथ ही उदयपुर नगर की स्थापना शुरू हुई। स्थापना का दिन पंद्रह अप्रेल 1553 था और उस दिन आखातीज थी। 

बाकी इतिहासकार भी यह मानते हैं कि उदयपुर की स्थापना आखातीज के दिन हुई है, लेकिन यह तिथि पंद्रह अप्रैल 1553 है इसको लेकर कोई शिलालेख या प्रमाण मौजूद नहीं हैं।

इतिहासकारों की मानें तो एक बार महाराणा उदयसिंह मोतीमहल में निवास कर रहे थे, तभी वह शिकार की भावना से खरगोश का पीछा करते हुए उस जगह पहुंचे जहां राजमहल मौजूद हैं। तब उदयुपर में फतहसागर नहीं था और वह एक सहायक नदी के रूप में था। वहां एक योगी साधु धूणी रमाए बैठे थे। साधु जगतगिरी से उनकी मुलाकात हुई और महाराणा के दिल का हाल जानकार साधु ने धूणी की जगह पर राज्य बसाने का सुझाव दिया, जिसे महाराणा ने मान लिया।

यह बात सन 1559 की थी। जिस पहाड़ी की चोटी पर महल का निर्माण कराया गया, वह समूचे शहर से दिखाई देता है। जहां अलग-अलग काल में महाराणाओं ने राजमहल का निर्माण कराया। बाद में सरदार, राव, उमराव और ठिकानों के लोग भी राजमहल के पास बसाए गए। जिनकी हवेलियां भी राजमहल के इर्द-गिर्द मौजूद हैं। इतिहासकार जोगेंद्र राजपुरोहित बताते हैं कि पंद्रह अप्रेल को इस तरह उदयपुर शहर की स्थापना हुई। 

पांच हजार साल पुरानी सभ्यता

उदयपुर की स्थापना से पांच हजार साल पहले आयड़ नदी के किनारे सभ्यता मौजूद थी। विभिन्न उत्खनन के स्तरों से पता चलता है कि प्रारंभिक बसावट से लेकर अठारहवीं सदी तक यहां कई बार बस्तियां बसी और उजड़ी। आहड़ के आस-पास तांबे की उपलब्धता के चलते यहां के निवासी इस धातु के उपकरण बनाते थे। इसी तरह पिछोली गांव भी महाराणा लाखा (सन 1382-1421 )के काल का है। 

जब कुछ बंजारे यहां से गुजर रहे थे। छीतर नाम के बंजारे की बैलगाड़ी नमी वाली जगह धंस गई और वहां पानी का स्रोत जानकर खुदाई की और पिछोला झील का निर्माण हुआ था। तब यहां चारों तरफ पहाड़ी इलाके हुआ करते थे। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.