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राजस्थान में हर बार सरकार ही नहीं, पाठयक्रम भी बदलता है

Rajasthan में 2003 से हर पांच साल में सरकार ही नहीं, स्कूलों का पाठ्यक्रम भी बदलता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 05 Jan 2019 07:28 PM (IST)Updated: Sat, 05 Jan 2019 07:29 PM (IST)
राजस्थान में हर बार सरकार ही नहीं, पाठयक्रम भी बदलता है
राजस्थान में हर बार सरकार ही नहीं, पाठयक्रम भी बदलता है

मनीष गोधा, जयपुर। राजस्थान में 2003 से हर पांच साल में सरकार ही नहीं, स्कूलों का पाठ्यक्रम भी बदलता है। कांग्रेस सरकार आती है तो बच्चों को कांग्रेस विचारधारा के नेताओं के बारे में पढ़ना पड़ता है और भाजपा आती है तो संघ की विचारधारा पाठ्यक्रम पर हावी हो जाती है।

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राजस्थान में हर पांच वर्ष में सरकारें बदलने की सिलसिला यूं तो 1998 से ही चल रहा है, लेकिन सरकार बदलने के साथ पाठ्यक्रम में बदलाव का सिलसिला मोटे तौर पर 2003 से शुरू हुआ, जब भाजपा ने राजस्थान में पूर्ण बहुमत हासिल किया। भाजपा के इस कार्यकाल में पाठ्यक्रम में बड़े बदलाव किए गए। राजस्थान की वीर वीरांगनाएं पाठ्यक्रम में आई।

इनके अलावा श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, सावरकर आदि भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बने। कक्षा नौ से बारह तक की हिंदी, सामाजिक विज्ञान, राजनीति विज्ञान और इतिहास की किताबों में बदलाव कर नई किताबें छपवाई गई। इसके बाद 2009 कांग्रेस सत्ता में आ गई तो राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने करीब आठ पेज का आदेश निकालकर भाजपा सरकार के समय शामिल किए गए पाठ, संदर्भ आदि पाठ्यक्रम से हटा दिए और नया सिलेबस जारी किया।

2013 में भाजपा सरकार आई तो पाठ्यक्रम में काफी बदलाव कराए गए। किताबों से नेहरू के अंश कम किए गए। सावरकर और संघ के अन्य नेताओं के पाठ जोड़े गए। कई वीर-वीरांगनाओं के पाठ जोड़कर नई किताबें छपवाई गई। सबसे बड़ा विवाद महाराणा प्रताप व अकबर की महानता को लेकर हुआ और आखिर प्रताप को महान बताने वाला पाठ शामिल कर दिया गया।

अब 2018 में फिर कांग्रेस ने सत्ता संभालते ही पाठ्यक्रम में किए गए बदलावों की समीक्षा की बात कही है। यानी अब बच्चों को एक बार फिर बदला हुआ पाठ्यक्रम पढ़ना पड़ेगा। होता है करोड़ों का खर्च पाठ्यक्रम में बदलाव की प्रक्रिया लंबी और खर्चीली है। कक्षा आठ तक की किताबों में बदलाव राज्य शैक्षणिक अनुसंधान परिषद करती है, वहीं नौ से बारहवीं तक की किताबों में बदलाव राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड करता है। सरकारी स्कूलों के बच्चों को किताबें निशुल्क दी जाती है। करोड़ों रुपए की किताबें छपती हैं।

राजस्थान सरकार के पूर्व शिक्षा अधिकारी राजेंद्र मोहन शर्मा कहते हैं कि पाठ्यक्रम में बदलाव की प्रक्रिया बहुत खर्चीली है और इसमें आम तौर पर दो से ढाई वर्ष लग जाते हैं। करोड़ों रुपए की किताबें खराब हो जाती है और बेवजह के विवाद सामने आते हैं। बच्चों को इससे कुछ हासिल भी नहीं होता, सिवाए इसके कि कांग्रेस की सरकार के समय पढ़ने वाले बच्चे कांग्रेसी नेताओं के बारे में पढ़ते हैं और भाजपा सरकार के समय पढ़ने वाले बच्चे संघ के नेताओं के बारे में भी पढ़ते हैं।

बार-बार किताबें बदलने की इस नीति के बारे में पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी कहते हैं कि हमारा प्रयास शिक्षा में राष्ट्रवाद को बढ़ाना होता है। हम हटाते कुछ नहीं, बल्कि कुछ जोड़ते ही हैं, लेकिन कांग्रेस आते ही राष्ट्रवादी नेताओं के पाठ हटवा देती है। वहीं, मौजूदा शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा मीडिया से बातचीत में कह चुके हैं कि पिछली सरकार ने शिक्षा का भगवाकरण किया था, इसलिए समीक्षा जरूरी है।


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