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यहां हर दो किलोमीटर में है शिव मंदिर, कहते हैं भगवान राम और पांडवों ने भी यहां की थी शिव पूजा

वागड में ऐसा भी शिव मंदिर मौजूद है जिसमें स्थापित शिवलिंग की पूजा तीन युगों से की जा रही है। महादेव मंदिर में सतयुग में जहां भगवान राम ने पूजा की वहीं त्रेतायुग में पांडवों ने पूजा की थी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 26 Feb 2019 11:12 AM (IST)Updated: Tue, 26 Feb 2019 11:12 AM (IST)
यहां हर दो किलोमीटर में है शिव मंदिर, कहते हैं भगवान राम और पांडवों ने भी यहां की थी शिव पूजा
यहां हर दो किलोमीटर में है शिव मंदिर, कहते हैं भगवान राम और पांडवों ने भी यहां की थी शिव पूजा

उदयपुर, सुभाष शर्मा। काशी के बाद यदि सबसे अधिक शिव मंदिर होंगे तो वह राजस्थान के डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले में हैं, जहां औसतन हर दो किलोमीटर पर एक शिवमंदिर अवश्य मिल जाएगा, इसीलिए वागड में शामिल इस क्षेत्र को लोढ़ी काशी यानी छोटी काशी कहा जाता है।

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यही नहीं वागड में ऐसा भी शिव मंदिर मौजूद है, जिसमें स्थापित शिवलिंग की पूजा तीन युगों से की जा रही है।

किवदंती के मुताबिक वागड़ के नीलकंठ महादेव मंदिर में सतयुग में जहां भगवान राम ने पूजा की, वहीं त्रेतायुग में पांडवों ने पूजा की थी।  

इतिहासविदें की मानें तो वागड में चार हजार साल पुरानी सभ्यता के साक्ष्य पाए जाते हैं, जो आहड़ सभ्यता के समकालीन हैं।

बारहवीं सदी का देवसोमनाथ

वागड के डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिले में 2200 से अधिक शिव मंदिर मौजूद हैं, जबकि इन दोनों जिलों का क्षेत्रफल लगभग 8700 वर्ग किलोमीटर है। इस क्षेत्र में मौजूद मंदिरों में कई एक हजार साल से भी प्राचीन हैं।प्राचीन मंदिरों में शुमार देवसोमनाथ मंदिर बारहवीं सदी में राजा अमृतपाल देव ने कराया था। सोमनदी के तट पर होने के कारण इसे देव सोमनाथ कहा जाता है। इस मंदिर के निर्माण में सीमेंट या चूने का इस्तेमाल नहीं लिया गया। बल्कि पत्थरों को काटकर एक-दूसरे से क्लेंप कर ऐसे फंसाया गया है कि वह हिलते ही नहीं। तीन मंजिला मंदिर होने के बावजूद आज भी यह बेहद दर्शनीय है, जिसके कला वैभव को देखने हजारों पर्यटक वहां पहुंचते हैं।

यहां भगवान राम और पांडवों ने की थी पूजा वागड के सीमलवाड़ा क्षेत्र में प्राकृतिक छटा, जंगल क्षेत्र और द्रोही नदी के किनारे एक हजार साल से अधिक पुराना भगवान शिव का मंदिर है। जिसे आज नीलकंठ महादेव मंदिर कहा जाता है। लोगों की मानें तो सतयुग में भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ और द्वापर युग में पांडवों ने इसी शिव लिंग की पूजा की थी, जो यहां स्थापित हैं। पूर्व में यहां खुले में शिवलिंग विराजित थे, जिस पर लगभग एक हजार साल पहले मंदिर बनाया गया। 

इनका कहना है वागड में ऐसे कई शिव मंदिर हैं, जिनका निर्माण आठवीं सदी से एक हजार सदी से पहले हुआ है। इनमें देवसोमनाथ मंदिर आज भी अच्छी स्थिति में है। सर्वाधिक पुराने मंदिरों में सीमलवाड़ा क्षेत्र में द्रोही नदी पर स्थित मंदिर है, जिसके बारे में इतिहास में भी उल्लेख है कि उसे मोहम्मद गजनवी ने ध्वस्त करने की कोशिश की थी। खलील तनवीर, इतिहासकार एवं पूर्व संग्रहालय अध्यक्ष, राजकीय संग्रहालय, उदयपुर।


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