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Eco friendly: यहां तीन दशक से गंगा की माटी से निखारा जाता है दुर्गा प्रतिमाओं का रूप

Eco friendly Durga Puja 2019 उदयपुर में भी बंगाली कलाकार तीन दशक से दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण करते हैं वह भी ईको फ्रेण्डली।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 25 Sep 2019 09:57 AM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2019 09:57 AM (IST)
Eco friendly: यहां तीन दशक से गंगा की माटी से निखारा जाता है दुर्गा प्रतिमाओं का रूप
Eco friendly: यहां तीन दशक से गंगा की माटी से निखारा जाता है दुर्गा प्रतिमाओं का रूप

उदयपुर, सुभाष शर्मा। नवदुर्गा महोत्सव उत्सव बंगाल ही नहीं, देश भर में उत्साह से मनाया जाता है। उदयपुर में भी बंगाली कलाकार तीन दशक से दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण करते हैं, वह भी ईको फ्रेण्डली। उनके द्वारा तैयार दुर्गा प्रतिमाएं में निखार कोलकाता से लाई गई गंगा नदी की मिट्टी से लाया जाता है। इससे पहले वह घास-फूस की प्रतिमाएं तैयार करते हैं और मिट्टी के लेप से उन्हें आकर्षक मूर्त रूप दिया जाता है। बंगाली समाज कई दशकों से उदयपुर में नवदुर्गा महोत्सव के लिए मां दुर्गा की प्रतिमाएं तैयार कराता रहा है।

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उदयपुर की झील और पर्यावरण बचाने का संदेश देने के लिए पिछले तीस साल से मां दुर्गा की ईको फ्रेण्डली प्रतिमाएं ही पूजता आया है। इसके लिए हर साल बंगाल के कारीगरों को यहां बुलाया जाता है। बंगाली समाज के पूजा सचिव तपन राय के मुताबिक घास-फूस के ढांचे पर स्थानीय मिट्टी का लेप किया जाता है और उसे रूप दिया जाता है।

किन्तु स्थानीय मिट्टी के सूखने के साथ प्रतिमा में क्रेक आने लगते हैं। प्रतिमाओं के निखार और क्रेक खत्म करने के लिए कोलकाता से गंगा नदी की मिट्टी को ही उपयोग लिया जाता है। कोलकाता से लाई गई गंगा की मिट्टी चिकनी ही नहीं, बल्कि विशेष होती है जिससे असल निखार आता है। इसके बाद वह कोलकाता से वन विभाग से मंगाए ईको फ्रेण्डली रंगों का ही उपयोग करते हैं।

यहां भूपालपुरा क्षेत्र स्थित बंग भवन में बंगाली कारीगर 3 फीट से लेकर 15 फीट तक की प्रतिमाएं बना रहे हैं। इनमें से अधिकांश प्रतिमाएं बंगाली समाज के पांडालों में ही विराजित की जाएगी, जबकि कुछ प्रतिमाएं भक्त मंडलों के विशेष आग्रह पर पर तैयार की जा रही हैं। तपन राय के मुताबिक इन प्रतिमाओं के निर्माण में आए खर्च को बंगाली समाज मिलकर उठाता है।


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