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आतंकी कसाब के खिलाफ गवाही का खामियाजा ही मिला: देविका रोटावन

लगभग 11 साल पहले 26 नवंंबर 2008 को हुए मुंंबई में हुए आतंकी हमले के दोषी अजमल कसाब के खिलाफ कोर्ट में गवाही देने वाली देविका रोटावन अपनी बहादुरी की सजा अब तक भुगत रही है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 01:10 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 01:10 PM (IST)
आतंकी कसाब के खिलाफ गवाही का खामियाजा ही मिला: देविका रोटावन
आतंकी कसाब के खिलाफ गवाही का खामियाजा ही मिला: देविका रोटावन

उदयपुर, सुभाष शर्मा। लगभग 11 साल पहले 26 नवंंबर 2008 को हुए मुंंबई में हुए आतंकी हमले के दोषी अजमल कसाब के खिलाफ कोर्ट में गवाही देने वाली देविका रोटावन अपनी बहादुरी की सजा अब तक भुगत रही है। देविका उदयपुर जिले के ओगणा में आयोजित नव संवत्सर कार्यक्रम में भाग लेने आई थी। लौटते समय रविवार रात वह उदयपुर में एक स्वयं सेवी संस्था के कार्यक्रम में पहुंची।

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अब 11 वीं में अध्ययनरत देविका रोटावन ने कहा कि जब उन्होंने कसाब के खिलाफ गवाही दी तब सरकार, विभागों तथा देशभर की संस्थाओं ने कई वादे किए लेकिन आज तक उन्हें पूरा नहीं किया। गवाही के बाद उसे और उसके परिवार को काफी मुश्किलों से सामना करना पड़ा। उसे किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं मिला, वहीं उसके पिता का व्यापार पूरी तरह चौपट हो गया। उसके पिता दक्षिण मुंबई के कलबादेवी इलाके में ड्राइ फू्रट्स का कारोबार करते थे। उसके पापा के पास पाकिस्तान से फोन आते थे। उन्हें रुपये देकर बयान बदलने के लिए धमकाया जाता था। तब वह नहीं माने तो पूरे परिवार को जान से मारने तक धमकी दी गई। इसके बावजूद उसने बैसाखी पर कोर्ट में कसाब के खिलाफ गवाही दी।

वह और उसके परिवार के सदस्य ही नहीं, बल्कि वह जहां-कहीं किसी के पास जाती, उन लोगों में भी भय व्याप्त रहता था कि कहीं उसकी दी गवाही का खामियाजा उन्हें तो नहीं भुगतना पड़े। मुश्किल तो यह है कि जब लोग मुंबई हमले की लडक़ी का पता पूछते हैं तो लोग उसे कसाब की बेटी कहकर उसके पास लेकर पहुंचते हैं।

देविका ने बताया कि जब आतंकी हमला हुआ तब वह सीएसटी स्टेशन पर थी। उसके दाएं पैर में गोली लगी थी। उसने और उसके पिता नटवरलाल ने कसाब को देखा था। ऐसे में कसाब को सजा दिलाने के लिए दोनों ने कोर्ट में चश्मदीद के रूप में कसाब को पहचान कर उसके खिलाफ गवाही दी थी। तब वह नौ साल ग्यारह महीने की थी और सबसे छोटे उम्र की गवाह थी।

गौरतलब है कि लगभग 11 साल पहले हुए आतंकी हमले में 164 बेकसूर लोग आतंकियों की गोली के शिकार बने। दस आतंकियों में एकमात्र जिंदा आतंकी अजमल कसाब को साल 2012 में फांसी दी गई थी।

बनना चाहती है आईपीएस

देविका ने बताया कि वह आईपीएस बनना चाहती है लेकिन उसके परिवारवालों के पार ना तो अच्छा घर है और ना ही शिक्षा के लिए पर्याप्त सुविधा। किसी ने उसकी मदद नहीं की। सारे वादे खोखले साबित हुए। देविका ने यह भी बताया कि उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अपील की थी। बेटियों के उत्थान को लेकर राष्ट्र स्तर पर बात होती है लेकिन कसाब के खिलाफ दी गई उसकी गवाही के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई।


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