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Jaipur Literature Festival 2020: क्लाइमेट चेंज पर फूट-फूटकर रोई अभिनेत्री दीया मिर्जा, देखें वीडियो

Jaipur Literature Festival. ग्लोबल वॉर्मिंग और धरती के बदलते वातावरण पर हुए सत्र में फिल्म अभिनेत्री दीया मिर्जा मंच पर फूट-फूटकर रोने लगीं।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 07:12 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 08:27 PM (IST)
Jaipur Literature Festival 2020: क्लाइमेट चेंज पर फूट-फूटकर रोई अभिनेत्री दीया मिर्जा, देखें वीडियो
Jaipur Literature Festival 2020: क्लाइमेट चेंज पर फूट-फूटकर रोई अभिनेत्री दीया मिर्जा, देखें वीडियो

जयपुर, ईश्वर शर्मा। Jaipur Literature Festival. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अंतिम दिन सोमवार को ग्लोबल वॉर्मिंग और धरती के बदलते वातावरण पर हुए सत्र में फिल्म अभिनेत्री दीया मिर्जा मंच पर फूट-फूटकर रोने लगीं। वे वातावरण में आ रहे बदलावों, हाल ही में हुई क्रिकेटर की मौत व दुनिया में बढ़ रहे अपराधों जैसे विषयों पर बोलते-बोल रही थीं। अपनी बात कहते-कहते दीया भावुक हो गई और यह कहकर रोने लगीं कि हम अपने बच्चों को कैसी दुनिया देकर जाएंगे। इसी सत्र में लेखन की दुनिया से जुड़े रेनाटा लॉक-डिसेल्लेन, शुभांगी स्वरूप, अपूर्वा ओझा, नमिता वाइकर ने भी विचार रखे।

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सोनेम वांगचुक बोले, पेंदे में छेद वाली बाल्टी है जिंदगी, इसे कैसे भरोगे

'जिंदगी क्या है! ये सवाल हममें से हर किसी को परेशान करता है। इसका सबसे सटीक जवाब यह है कि 'पेंदे में छेद वाली बाल्टी है जिंदगी, इसे कितना भी भरोगे, ये खाली होती जाएगी इसलिए इसे भरने में अपना सब कुछ खत्म कर देने की बजाय यह जो है, जैसी है, उसे मस्ती से जीना सीखिए।' जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में यह बात फिल्म 'थ्री इडियट' से प्रसिद्ध हुए लद्दाख के वैज्ञानिक-शिक्षक सोनेम वांगचुक ने कही। वांगचुक फेस्टिवल में 'क्लाइमेट इमरजेंसी' विषय पर चर्चा करने पहुंचे थे।

वांगचुक ने यह स्वीकारा कि फिल्म थ्री इडियट ने उन्हें वैज्ञानिक फुंगसुक वांगडू के रूप में फेमस कर दिया और उसके बाद उनकी जिंदगी में बहुत बदलाव आया। लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करते हुए पृथक केंद्र शासित प्रदेश बनाने का उन्होंने स्वागत किया। वे बोले- 'क्लाइटमेट में बदलाव का सबसे अधिक असर लद्दाख जैसे इलाकों पर भी हो रहा है। अब वहां उतनी बर्फ नहीं होती, गर्मी होने लगी है। इससे वहां की जलवायु और संस्कृति खतरे में हैं।'

बाजार के मेंढक मत बनिए

वांगचुक ने सलाह दी कि खुश रहना चाहते हैं तो बाजार के इशारे पर नाचने वाले मेंढक मत बनिए। आप वही खरीदिए जो आपकी सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा, 'भारत उपभोग नहीं बल्कि 'त्येन त्यक्तेन भुंजीथा:' अर्थात त्याग की संस्कृति वाला देश रहा है। आज पश्चिम की होड़ में हम उपभोक्ता बनते जा रहे हैं। इससे हम अपनी स्वाभाविक खुशियां खो देंगे।'

बच्चे जानते हैं 20 ग्राम की जिंदगी

वांगचुक ने चिंता जताई कि आज पांच साल का बच्चा भी जानता है कि 20 ग्राम क्या होता है क्योंकि वह कार्टून चैनल के विज्ञापनों में वही सब देखता है। दरअसल, बच्चों की जिंदगी ही हमने 20 ग्राम के आसपास समेट दी है। यह ठीक नहीं, क्योंकि वे तो अनंत आकाश में बाहें फैलाकर उड़ने के लिए बने हैं, बाजार के गुलाम बनने के लिए नहीं। टीवी के विज्ञापनों में कई उत्पादों के 20-20 ग्राम के पैक का प्रचार होता है, ये पैक बच्चों में लोकप्रिय हैं।

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