Laxmi Vilas Palace Hotel case: उदयपुर के लक्ष्मी विलास होटल से जुड़े मामले में अरुण शौरी समेत पांच पर मुकदमा दर्ज
Laxmi Vilas Palace Hotel caseउदयपुर के लक्ष्मी विलास होटल से जुड़े धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार के मामले में अरुण शौरी समेत पांच अन्य पर मुकदमा दर्ज करने के सीबीआइ ने आदेश दिए हैं।
जोधपुर, रंजन दवे। उदयपुर की प्रसिद्ध लक्ष्मी विलास पैलेस होटल (Laxmi Vilas Palace Hotel ) को 2002 में औने-पौने दामों में बेचकर सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान पहुंचाने के मामले में सीबीआइ की विशेष कोर्ट जोधपुर के जज पूरण कुमार शर्मा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी (Arun Shourie), पूर्व व अन्य आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने उदयपुर कलेक्टर को फैसला आने तक होटल कुर्क करने के भी आदेश दिए हैं। होटल आइटीडीसी नई दिल्ली की इकाई थी, जिसके विनिवेशन के संबंध में आपराधिक षडयंत्र रचकर 7 करोड़ 52 लाख रुपए में बेचने का निर्णय कर दिया था, जो कि डीएलसी रेट से बहुत कम था। इससे भारत सरकार को करोड़ रुपए के आर्थिक नुकसान की बात सामने आई।
सीबीआइ ने पेश की अंतिम रिपोर्ट
सीबीआइ ने इस मामले में एफआइआर दर्ज की थी, जिसको लेकर सीबीआइ ने मामले में जांच कर अंतिम रिपोर्ट पेश की। सीबीआइ ने पहले कोई अपराध होना नहीं माना था, लेकिन कोर्ट ने 13 अगस्त 19 को आदेश पारित कर जांच के लिए यह मामला सीबीआइ को लौटाया था। सीबीआइ की ओर से पुराने तथ्यों को दोहराते हुए अंतिम रिपोर्ट दी। कोर्ट ने तीन सालों से घाटे में चल रही लक्ष्मी विलास पैलेस होटल कोविनेवशन मंत्रालय द्वारा कम से कम 6 करोड़ 32 लाख रुपए निर्धारित कर मैसर्स भारत होटल लिमिटेड को 7 करोड़ 52 लाख रुपए में बेचने का निर्णय कर दिया गया ।
अरुण शौरी व सचिव प्रदीप बैजिल ने अपने पदों का किया दुरुपयोग
आरोपियों को गिरफ्तारी वारंट से तलब करने के आदेश में कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ की जांच के दौरान 193 करोड़ 28 लाख रुपए तथा संपत्ति की कीमत 58 करोड़ आकी गई थी । इस प्रकार होटल की कुल ने कीमत 252 करोड़ रुपए थी। उसका केवल 7 करोड़ 52 लाख रुपए में ही बेचा गया । पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी व सचिव प्रदीप बैजिल ने अपने पदों का दुरुपयोग किया है तथा केंद्र सरकार को 244 करोड़ रुपए के का नुकसान पहुंचाया है। कोर्ट ने पूर्व मंत्री अरुण शौरी, प्रदीप बैजिल, आशीष गुहा, कांतिलाल कर्मसे व ज्योत्सना शूरी के विरूद्ध धारा 120 बी आईपीसी की धारा 12 (1) (डी) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का अपराध बनना पाया है।
कोर्ट ने इनके खिलाफ फौजदारी प्रकरण दर्ज कर सभी आरोपियों को गिरफ्तारी वारंट से तलब करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने पर होटल को कुर्क कर राज्य सरकार के अधीन करने के भी आदेश दिए हैं साथ ही कुर्क संपत्ति की व्यवस्था के लिए कलेक्टर उदयपुर को रिसीवर नियुक्त किया गया ।
क्या है मामला
विनिवेशन मंत्रालय के तत्कालीन सचिव प्रदीप बेजल के लोक सेवक के रूप में कार्यरत रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग कर लाजार्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नई दिल्ली के तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर आशीष गुहा, मैसर्स कांतिलाल कर्मसे कंपनी मुंबई और भारत होटल लिमिटेड नई दिल्ली के अधिकृत प्रतिनिधि व भारत सरकार के अज्ञात अधिकारियों व निजी व्यक्तियों के साथ मिलकर मेसर्स लक्ष्मी विलास पैलेस होटल उदयपुर, जो कि आईटीडीसी नई दिल्ली की इकाई थी, के विनिवेशन के संबंध में आपराधिक षडयंत्र रचकर 7 करोड़ 52 लाख रुपए में बेचने का निर्णय कर दिया था, जो कि डीएलसी रेट से बहुत कम था। सीबीआइ ने पहले इस निर्णय व बेचने को गलत मानकर मामला दर्ज किया और फिर जांच के बाद किसी प्रकार का कोई अपराध न मानकर अंतिम रिपोर्ट पेश कर दी।
कोर्ट ने सीबीआइ की ओर से पेश की गई रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया। क्योंकि सीबीआइ ने भूमि की डीएलसी रेट प्राप्त की , जो पांच सौ रुपए से एक हजार रुपए के मध्य थी । इस डीएलसी रेट के अनुसार भूमि करीब 150 करोड़ रुपए कीमत की होना साबित होता है। जिसके अनुसार भारत सरकार को 143.48 करोड़ रुपए की हानि होने की बात स्पस्ट प्रतीत होती है। कोर्ट ने सीबीआई द्वारा अंतिम रिपोर्ट में कम वेल्यूशन आंकना माना है।
दरसअल प्रकरण में पहले वेल्युएलर आइटीडीसी द्वारा नियुक्त करने का निर्णय किया गया था , लेकिन बाद में में मूल्यांकनकर्ता की नियुक्ति का निर्णय विनिवेश मंत्रालय के अधिकारी प्रदीप बैजल व मंत्री अरुण शौरी ने अपने हाथ में ले लिया। दोनों ने अपनी मर्जी से ही मैसर्स कांति कर्म से को मूल्यांकनकर्ता नियुक्त कर दिया , जो कि सरकारी मान्यता प्राप्त संपत्ति मूल्यांकनकर्ता की सूची में नहीं था। मूल्यांकन कर्ता ने सम्पूर्ण संपत्ति का मूल्यांकन अपनी मर्जी से कर दिया और होटल की जमीन को केवल 45 रुपए वर्ग फीट का माना।