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जयपुर का एक संस्कृत स्कूल जहां विधार्थी उर्दू में इबादत और संस्कृत में करते हैं बंदना

दो पारियों में चलने वाले इस स्कूल में पढ़ने वाले 277 विधार्थियों में 225 मुस्लिम है अर्थात 80 फीसदी विधार्थी मुस्लिम समुदाय के यहां अध्ययन कर रहे हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 20 Nov 2019 02:38 PM (IST)Updated: Wed, 20 Nov 2019 02:38 PM (IST)
जयपुर का एक संस्कृत स्कूल जहां विधार्थी उर्दू में इबादत और संस्कृत में करते हैं बंदना
जयपुर का एक संस्कृत स्कूल जहां विधार्थी उर्दू में इबादत और संस्कृत में करते हैं बंदना

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। एक तरफ जहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में जयपुर जिले के फिरोज खान का संस्कृत प्रोफेसर के रूप में चयन होने पर पर बवाल मचा है। वहीं दूसरी तरफ जयपुर शहर में स्थित एक संस्कृत स्कूल में पढ़ने वाले विधार्थी उर्दू में इबादत और संस्कृत में वंदना करते हैं। दो पारियों में चलने वाले इस स्कूल में पढ़ने वाले 277 विधार्थियों में 225 मुस्लिम है, अर्थात 80 फीसदी विधार्थी मुस्लिम समुदाय के यहां अध्ययन कर रहे हैं। धर्म और भाषा की किसी तरह के बंधन में नजर नहीं आती।

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संस्कृत के प्रति यहां पढ़ने वाले मुस्लिम विधार्थियों में इतना लगाव है कि वे आगे जाकर संस्कृत में ही अपना कैरियर बनाना चाहते हैं। छात्राएं चाहती है कि बड़ी होकर यहीं शिक्षिका के रूप में उनका चयन हो और वे संस्कृत पढ़ाएं। बीएचयू में चाहे जयपुर जिले के बगरू निवासी डॉ.फिरोज खान की नियुक्ति विवाद का विषय बनी हुई हो, लेकिन जयपुर का यह स्कूल किसी विवाद के कारण नहीं बल्कि मुस्लिम विधार्थियों में संस्कृत के प्रति खास लगाव के लिए पहचाना जाता है।

इस स्कूल में शुक्रवार को दोपहर में नमाज पढ़ी जाती है। यहां पढ़ाने वाली शिक्षकाओं का कहना है कि दो दिन से बच्चों में बीएचयू में चयनित प्रोफेसर फिरोज खान की चर्चा है। ये बच्चे फिरोज खान की तरह संस्कृत के शिक्षक और प्रोफेसर बनना चाहते हैं।

धर्म और भाषा को लेकर कोई भेदभाव नहीं

पिछले तीन दशक से जयपुर के मुस्लिम बहुल इलाके नाहरी का नाका में चल रहे "राजकीय ठाकुर हरिसिंह शेखावत मंडावा संस्कृत स्कूल" में विधार्थी संस्कृत के श्लोक और वैदिक मंत्रों का बेहद रोचक ढंग से उच्चारण करते हैं। यहां पढ़ने वाले विधार्थी धारा प्रवाह संस्कृत का पाठ पढ़ रहे हैं।

स्थानीय निवासी खातुन बानों, रहीश और शमशेर का कहना है कि यह स्कूल पहले पंचमुखी हनुमान मंदिर परिसर में चलता था, लेकिन साल 2004 में ठाकुर हरिसिंह मंडावा के परिजनों ने अपने पूर्वजों की याद में बनाई गई छतरियों और आसपास के स्थान को स्कूल चलाने के लिए शिक्षा विभाग को दिया। इसके लिए स्थानीय मुस्लिम समाज के लोगों ने उनका सम्मान भी किया था।

स्कूल के पास ही रहने वाले अब्दुल रज्जाक भाटी कहते हैं कि मेरे दो पोते इस स्कूल में पढ़ते हैं। वे यहां दिन में संस्कृत पढ़ते हैं और शाम को मदरसे में उर्दू की पढ़ाई करते हैं। यहां धर्म और भाषा को लेकर कोई भेदभाव नजर नहीं आता है। यहां पढ़ाने वाले हिंदू शिक्षक भी कभी धर्म अथवा भाषा को लेकर कोई बंधन नहीं मानते हैं। कई बार मदरसे के शिक्षक स्कूल परिसर में ही पढ़ाने के लिए पहुंच जाते हैं।

विधायक बोले, एक मिसाल है यह स्कूल

क्षेत्रीय विधायक अमीन कागजी का कहना है कि यह स्कूल देश के लिए एक मिसाल है। इस स्कूल में मुस्लिम बच्चों में संस्कृत पढ़ने के प्रति लगाव और आगे बढ़ने की चाहत को देखते हुए मैने विधायक कोष से 10 लाख रूपए की सहायता दी है। दानदाताओं से भी मदद कराई जा रही है। 


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