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Rajasthan: सीएम अशोक गहलोत के गृहनगर जोधपुर में भी 146 बच्चों की मौत

Children Died In Jodhpur. कोटा से भी ज्यादा नवजातों की मौत मुख्यमंत्री के गृह नगर जोधपुर के डॉक्टर एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में हो रही है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 02:44 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 07:06 PM (IST)
Rajasthan: सीएम अशोक गहलोत के गृहनगर जोधपुर में भी 146 बच्चों की मौत

जोधपुर, जेएनएन। Children Died In Jodhpur. राजस्थान के कोटा में 110 और बीकानेर मेें 162 बच्चों की मौत के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह नगर जोधपुर से भी 146 बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। कोटा से भी ज्यादा नवजातों की मौत मुख्यमंत्री के गृह नगर जोधपुर के डॉक्टर एसएन मेडिकल कॉलेज के शिशु रोग विभाग में हो रही है। जोधपुर के संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज से संबंध बालकों के उम्मेद अस्पताल में 2019 के दिसंबर में बच्चों की मौतों की संख्या 146 है। इनमें 102 नवजात हैं, जबकि मेडिकल कॉलेज प्रशासन आंकड़ों के खेल में उलझा कर इसे सामान्य मान रहा है। जहां हर दिन करीब पांच बच्चों की मौतें दर्ज की जा रही है। और गहन उपचार इकाइयों में नवजात दम तोड़ रहे है। वहीं, जनवरी की शुरुआत से अभी तक नौ बच्चों की मौत हो चुकी है।

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अगर दिसंबर 2019 के आंकड़ों की बात करें तो यहां 146 बच्चों ने दम तोड़ा है। आंकड़ा इसलिए ज्यादा है कि वर्ष 2019 में एन आइसीयू और पीआइसीयू में कुल 754 बच्चों की मौत हुई। यानी कि हर माह 62 की मौत, लेकिन दिसंबर में अचानक यह सांख्य 146 तक जा पहुंची। ऐसे में यहां की व्यवस्थाए संदेह के घेरे में हैं।

जानें, क्या है आंकड़ों का गणित

जोधपुर के उम्मेद हॉस्पिटल में सर्वाधिक मौतें नियोनेटल केअर यूनिट (एनआइसीयू) व पीडियाट्रिक आइसीयू (पीआइसीयू) में हुई है। 2019 में शिशु रोग विभाग में कुल 47815 बच्चे भर्ती हुए। जिनमे 754 की मौत हुई। इस हिसाब से मौतें 1.57 फीसद हुईं, लेकिन 2019 में ही एनआइसीयू और पीआइसीयू में 5634 गंभीर नवजात भर्ती हुए, जिनमे 754 की मौत हुई है। इससे ये बात स्पस्ट हुई कि 2019 में वार्ड में एक भी मौत नहीं हुई। वहीं, जो आंकड़ा आया, वह 13 फीसद से भी ज्यादा है जबकि जिम्मेदार इसे सामूहिक रूप से जोड़कर मौत प्रतिशत में कमी दर्शा रहे हैं।

कोटा मामले के बाद जोधपुर मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा तैयार की रिपोर्ट में जो आंकड़े तैयार किए उसने बच्चों की मौत का प्रतिशत विभाग भर्ती होने वाले कुल बच्चों की संख्या से निकाला। जिसमे यह बहुत संतुलित नजर आता है, जबकि रिपोर्ट अनुसार सामान्य वार्ड में कोई मौत हुई ही नहीं।

संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज करता है संचालन

जोधपुर मेडिकल कॉलेज एमडीएम व उमेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का संचालन करता है। जहां जोधपुर के साथ संभाग के अन्य जिलों की प्रसूताएं और नवजात आते हैं। जिनके लिए नियोनेटल केअर यूनिट (एनआइसीयू) व पीडियाट्रिक आइसीयू (पीआइसूयू) भी है, लेकिन मौतों के आंकड़ों में व्यवस्थाओं की पोल खुल रही है। पहले यहां 2011 में 30 से ज्यादा प्रसूताओं की संक्रमित ग्लूकोज से मौते हुई थी। वहीं, एक बार नवजात को हीटर के सामने छोड़ स्टाफ भूल गया था, जिससे नवजात बुरी तरह झुलस गया था।

102 नवजातों की हुई मौत

पश्चिमी राजस्थान का बड़ा हॉस्पिटल होने के नाते अन्य जिलों के मरीज भी यहां आते हैं, जिस कारण यहां लोड सामान्य से अधिक रहता है। एम्स से भी मरीज यहां आते हैं। दिसंबर में कुल मरीज भार में सेे 146 मौतें हुई, जो तीन फीसद कहा जा सकता है। वहीं, अस्पताल में 3002 नवजातों में 102 मौतें हुई हैं। पीडियाट्रिक केयर मामले में हम लगातार पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान पर हैं।

-डॉ एसएस राठौड़ प्रिंसिपल, एसएन मेडिकल कालेज जोधपुर।

जानें, कितनी हुईं मौतें

2019 में एनआइसीयू और भी आइसीयू में 5635 बच्चे भर्ती हुए, जिनमें से 754 की मौत हुई है। इन 754 बच्चों में दिसंबर में 146 मरने वाले भी शामिल हैं। इस हिसाब से गहन चिकित्सा इकाई में मौत का प्रतिशत करीब 13 फीसद होता है, लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रबंधन व शिशु रोग विभाग शिशु रोग विभाग में भर्ती होने वाले सभी मरीजों के आंकड़े जोड़कर मौतों का प्रतिशत निकाल रहा है, जिससे कि वह काफी कम नजर आए। प्रिंसिपल दिसंबर में 146 बच्चे मरने की बात तो कह रहे हैं, लेकिन टोटल परसेंटेज तीन बता रहे हैं । क्योंकि वो सिर्फ एनआइसीयू और पीआइसीयू में ही भर्ती होने वाले बच्चों की बजाय सभी बच्चों की संख्या को जोड़ कर मौत तीन फीसद बता रहे हैं।

विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक, अगर पूरे साल में 5635 बच्चे जो गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती हुए हैं (यह संख्या विभाग के अधिकृत दस्तावेज पर हैं) उनका औसत निकाले तो सामने आता है कि प्रतिमाह गहन चिकित्सा इकाइयों में 461 बच्चे भर्ती होते हैं। इनमे 754 मौतों के हिसाब से 62 बच्चे हर माह मरते हैं। अगर इसी औसत के हिसाब से दिसंबर में 146 बच्चो की मौत हुई है तो यह 461 का 30 फीसद से भी ज्यादा होता है। लेकिन प्रबंधन इस आंकड़े को कम करने के लिए सभी सामान्य रुप से भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या जोड़ कर प्रतिशत कम कर दिया।

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