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माझे की सरदारी के लिए ब्रह्मंपुरा और कैरों के बीच लगती रही दौड़

पूर्व कैबिनेट मंत्री आदेश प्रताप सिंह और रणजीत सिंह ब्रह्मंपुरा के बीच वर्षो से सियासी दौड़ चली आ रही है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 05:17 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:29 AM (IST)
माझे की सरदारी के लिए ब्रह्मंपुरा और कैरों के बीच लगती रही दौड़
माझे की सरदारी के लिए ब्रह्मंपुरा और कैरों के बीच लगती रही दौड़

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन

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शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में माझा का जरनैल कौन होगा, इसके लिए पूर्व कैबिनेट मंत्री आदेश प्रताप सिंह और रणजीत सिंह ब्रह्मंपुरा के बीच वर्षो से सियासी दौड़ चली आ रही है। हालांकि दोनों दिग्गजों के बीच शिअद की लीडरशिप में बिक्रम सिंह मजीठिया लगातार इस कदर हावी होते रहे कि टिकटों के फैसले हों या पार्टी में जिम्मेदारी सौंपने का मामला, यह सब कुछ मजीठिया को भरोसे में लेकर ही होता आ रहा है।

विस हलका पट्टी से 1997 में पहली बार कांग्रेस छोड़ शिअद में शामिल हुए आदेश प्रताप सिंह कैरों जहां पहला चुनाव जीतकर बादल की सरकार में कर-आबकारी मंत्री बने, वहीं नौशहरा पन्नूआ से जीतने वाले रणजीत सिंह ब्रह्मंपुरा को सहकारिता विभाग के माध्यम से कैबिनेट में स्थान मिला। उस समय मजीठिया पंजाब की सरगर्म सियासत का हिस्सा नहीं थे। माझे में मजीठिया की सियासी एंट्री होते ही दोनों दिग्गज नेताओं ने अपना दमखम तो कायम रखा, परंतु माझे की जरनैली के लिए दोनों ने कसर नहीं छोड़ी। हालांकि आदेश प्रताप सिंह कैरों व रणजीत सिंह ब्रह्मंपुरा को अपनी-अपनी जगह रखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने समानता बनाई रखी। परंतु सुखबीर सिंह बादल के हाथ में शिअद की बागडोर आते ही बिक्रम सिंह मजीठिया सियासी तौर पर पूरी तरह चमकने लगे। पट्टी से चार बार जीत दर्ज करवाकर कैरों जहां अपना सियासी दबदबा बनाने में कामयाब रहे। वहीं 2017 में उनको हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह 2012 में पहली बार रणजीत सिंह ब्रह्मंपुरा को खडूर साहिब हलके से हार देखनी पड़ी। हालांकि बाद में 2014 में लोकसभा चुनाव दौरान ब्रह्मंपुरा को टिकट देकर दोबारा सियासत में सरगर्म किया था। मजीठिया के दखल से ही कैरों को एक ही सीट पर टिकट मिली

जिले की चार विधानसभा सीटों पर दावा जताने वाले कैरों को आखिर एक ही टिकट (विस हलका पट्टी) देने का फैसला भी पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के दखल से हुआ है, क्योंकि मजीठिया अपने करीबी हरमीत सिंह संधू को तरनतारन, विरसा सिंह वल्टोहा को खेमकरण से ही चुनाव लड़ाना चाहते थे। लोकसभा चुनाव के दौरान रूठे रणजीत सिंह ब्रह्मंपुरा की घर वापसी (शिअद में वापसी) के बाद उनको खडूर साहिब के प्रत्याशी बनाने में भी मजीठिया की हामी की अहम भूमिका रही है। शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने जहां पूर्व मंत्री कैरों व ब्रह्मंपुरा को अपने-अपने स्थान पर रखते हुए बिक्रम सिंह मजीठिया के फार्मूले पर काम किया है।


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