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इन 11 गांवों में पड़े थे बाबा नानक के चरण

श्री गुरु नानक देव जी की चरणछोह प्राप्त धरती पर 30 नवंबर को श्री अखंड पाठ साहिब के भोग डाले जाएंगे

By JagranEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 05:01 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 05:01 PM (IST)
इन 11 गांवों में पड़े थे बाबा नानक के चरण
इन 11 गांवों में पड़े थे बाबा नानक के चरण

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन : श्री गुरु नानक देव जी की चरणछोह प्राप्त धरती पर 30 नवंबर को श्री अखंड पाठ साहिब के भोग डाले जाएंगे। जिले के कुल 11 ऐतिहासिक गांवों की कायाकल्प लिए कैप्टन सरकार द्वारा 11 करोड़ की राशि खर्च की गई है, जिसके माध्यम से इन गांवों का विकास देश के नक्शे पर उभरा नजर आएगा।

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श्री गुरु नानक देव जी के 551वें प्रकाश पर्व के संबंध में शनिवार को ऐतिहासिक गांव फतेहाबाद, डेरा साहिब, लुहार, गोइंदवाल साहिब, खडूर साहिब, वैरोंवाल, अमीशाह, खालड़ा, कौड़ा विधान, दयालपुरा, जलालाबाद में शनिवार को श्री अखंड पाठ साहिब आरंभ करवाए गए थे, जिनके भोग के बाद कीर्तन होगा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा आनलाइन समागम के माध्यम से यह विकास लोकार्पित कर दिया जाएगा। यहां लिखवाई थी साखी

खडूर साहिब का इतिहास है कि यहां की धरती को आठ गुरु साहिबान जी की चरणछोह प्राप्त है। पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी इस नगर में शब्द कीर्तन किया करते थे। गुरु जी के साथ भाई बाला और भाई मरदाना भी होते थे। इस स्थान पर दूसरी पातशाही श्री गुरु अंगद देव जी ने भाई बाला जी से श्री गुरु नानक देव जी की जन्म साखी लिखवाई थी। भाई बाला के परलोक गमन पर भाई बाला जी का श्री गुरु अंगद देव जी ने अपने हाथों से अंतिम संस्कार किया था। गुरु जी की याद में यहां पर गुरुद्वारा तपिआना साहिब है। जिसके सरोवर के दूसरी ओर वह स्थान भी है यहां पर गुरु अंगद देव जी तप किया करते थे। यहां किया था विश्राम

सीमावर्ती गांव खालड़ा में श्री गुरु नानक देव जी की याद में गुरुद्वारा पातशाही पहली बनाया गया है। 1501 ईसवी में श्री गुरु नानक देव जी पट्टी के किसानों को किरत करने का उपदेश देकर जब राय भोए की तलवंडी लिए रवाना हुए थे तो कुछ देर के लिए उन्होंने खालड़ा में विश्राम किया। गुरु जी ने संगतों को यहां पर किरत करने, नाम जपने और बांट कर छकने व आपसी भाईचारा का संदेश दिया था। इसी जगह पर आज गुरुद्वारा पातशाही पहली सुशोभित है। कीर्तन सुनने लिए किया प्रेरित

सांझीवालता का संदेश देते हुए धर्मशाला का निर्माण करवाने के साथ श्री गुरु नानक देव जी गांव अमीशाह पहुंचे। यहां पर भी गुरु जी ने संगत को किरत करने, नाम जपने और बांट कर छकने का उपदेश दिया। गुरु जी ने संगत को रोज दरबार में कीर्तन सुनने के लिए प्रेरित किया। श्री गुरु नानक देव जी ने गांव अमीशाह की उपजाऊ धरती का जिक्र करते कहा कि यह धरती देश दुनिया के अनाज भंडार भरेगी। इस धरती पर गुरु जी ने एक बेरी भी लगाई। यहां की थी पिता जी ने पढ़ाई

श्री गुरु नानक देव जी के पिता मेहता कालू जी के जन्म स्थान के तौर पर जाने जाते गांव लुहार को पहले गांव भट्ठेविंडपुर के नाम से जाना जाता था। अब यहां पर गुरुद्वारा डेरा साहिब स्थापित है। करीब 600 वर्ष पहले इसे भट्ठेविंडपुर गांव के नाम से जाना जाता था। इसी गांव में बाबा मेहता कालू जी का जन्म हुआ था। बाबा मेहता कालू जी ने इसी गांव से पढ़ाई की। बाद में उन्हें पटवार की नौकरी मिल गई। राय बुलार के साथ बाबा मेहता कालू जी का काफी प्रेम था। राय बुलार के कहने पर बाबा मेहता कालू गांव भट्ठेविंडपुर को छोड़कर राय भोए की तलवंडी (अब पाकिस्तान) चले गए। बलिहारी कुदरित वसिया

22 कत्तक1501 को पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी जगत को तारने के लिए सुल्तानपुर लोधी से अपने बचपन के साथी भाई मरदाना को साथ लेकर पैदल चल पड़े। ब्यास दरिया के पास तीन दिन और तीन रातें गुजारने के बाद उन्होंने श्री गोइंदवाल साहिब नगर बसाने लिए बख्शिश की। पैदल चलते हुए गुरु नानक देव जी कस्बा फतेहाबाद पहुंचे। यह वह कस्बा है जो शेर शाह सूरी के मार्ग के नाम से भी जाना जाता है। इस धरती को भाग लगाते हुए श्री गुरु नानक देव जी ने 'बलिहारी कुदरित वसिया।। तेरा अंत न जाई लखिया।।' का उच्चारण किया। बाणी से जुड़ने का संदेश

सुल्तानपुर लोधी से भाई मरदाना के साथ पदयात्रा पर निकले श्री गुरु नानक देव जी ने फतेहाबाद तक का सफर तीन दिन में पूरा किया। इस दौरान श्री गुरु नानक देव जी ने अपने रबाबी भाई बाला के साथ एक दिन और एक रात दरिया ब्यास के किनारे पड़ते गांव दारापुर (वैरोंवाल) में विश्राम किया। श्री गुरु नानक देव जी ने यहां पर संगत को धार्मिक बाणी से जुड़ने का उपदेश दिया। देश की आजादी के बाद इस जगह पर गुरुद्वारा साहिब बनाया गया।

आशीर्वाद से बसा नगर

श्री गुरु नानक देव जी जब दरिया ब्यास के माध्यम से अमृतसर की धरती की ओर कूच करने निकले तो उनके पास सात रुपये थे। सात रुपये की भाई मरदाना जी को रबाब लेकर दी। सुल्तानपुर लोधी से चलते हुए श्री गुरु नानक देव जी जंगल, थेह और उजाड़ वाले क्षेत्र में बैठ गए। वहां पर भाई मरदाना से रबाब सुनते शब्द गायन करते रहे। इस दौरान श्री गुरु नानक देव जी की आंख लग गई। आंख खुली तो भाई मरदाना ने कहा, गुरु जी.. आपकी भूख तो करतार (भगवान) ने छीन ली है। आप कोई देवता है या कोई निरंकार। मैं तो आदमी जगत का कीड़ा हूं। मैं आपके साथ तभी रह पाउंगा जब मुझे खाने पीने को मिले। यह सुनकर श्री गुरु नानक देव जी प्रसन्न हुए। गुरु जी ने कहा कि भाई मरदानिया फिक्र न कर। इतने में एक जिमींदार दूध और छल्लिया लेकर पहुंचा, जबकि दूसरा जिमींदार प्रसादे लाया जिसे छककर भाई मरदाना जी की भूख मिट गई। इसी जगह पर श्री गुरु नानक देव जी के आशीर्वाद से श्री गोइंदवाल साहिब जी नगर बसा। यह करवाए है कार्य

विधायक डा. धर्मबीर अग्निहोत्री ने बताया कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा श्री गुरु नानक देव जी के 551वें प्रकाश पर्व मौके 11 ऐतिहासिक गांवों के विकास लिए एक-एक करोड़ की राशि जारी की गई थी। इस राशि से पूरे गांव में इंटरलाकिंग टाइलें लगाने, गलियां-नालियां पक्की करने, पंचायत घर बनाने, श्मशानघाट का सुंदरीकरण, प्ले ग्राउंड, आंगनबाड़ी सेंटर, युवाओं के लिए जिम, डिस्पेंसरी से लेकर छप्पड़ों का सुंदरीकरण व सोलर लाइटें लगाने लिए टेंडर लगवाए थे। इसके अलावा सुरक्षा के मद्देनजर गांवों में सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए है।


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