पति को श्रद्धांजलि देने पहली बार आसल उताड़ पहुंचेगी बीबी रसूलन
धर्मवीर सिंह मल्हार, आसल उताड़ (तरनतारन) 1965 की जंग में पाकिस्तान की फौज को लोहे के चने चबान
धर्मवीर सिंह मल्हार, आसल उताड़ (तरनतारन)
1965 की जंग में पाकिस्तान की फौज को लोहे के चने चबाने वाले भारतीय नायक हवलदार वीर अब्दुल हमीद की याद में सोमवार को सुबह तरनतारन के गांव आसल उताड़ में श्रद्धांजलि समागम मनाया जाएगा। ये पहला अवसर होगा कि शहीद को श्रद्धांजलि भेंट करने के लिए उनकी पत्नी बीबी रसूलन पहली बार उस धरती पर आएगी, जहां पर वीर अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के पेटर्न टैंक तबाह किए थे।
भारत-पाक जंग दौरान खेमकरण सेक्टर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान सैनिकों के कब्जे में आ गया था। पाकिस्तानी फौज लगातार आगे बढ़ते हुए जंग जीतने की ओर जा रही थी कि भारतीय सेना की टुकड़ी ने करो या मरो की नीति अपनाई। इस टुकड़ी में हवलदार वीर अब्दुल हमीद थे, जिन्होंने भारतीय क्षेत्र में काबिज हुए पाकिस्तान के पेटर्न टैंक को तबाह करके पाक को करार जवाब दिया। जिसके बाद इस गांव को आसल उताड़ के नाम से जाने जाना लगा। पाकिस्तान के पेटर्न टैंक तबाह करने वाले वीर अब्दुल हमीद वीरगति को प्राप्त हुए। जिसके बाद मरणापरांत उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया। वीर अब्दुल हमीद ने जिस जगह पर पेटर्न टैंक तबाह किया था, वहां पर उनकी यादगार बनाई गई है। इतना ही नहीं भारतीय फौज द्वारा 1965 की जंग में शहीद होने वाले योद्धाओं को समर्पित सात स्तंभ भी बनाए गए है। इस यादगार को विकसित करने का बीड़ा भारतीय फौज द्वारा उठाया गया ताकि आने वाले पीढ़ी अपने देश के योद्धाओं की गाथाओं से अवगत हो सके।
बीबी रसूलन को लेकर आएगी सेना की विशेष टुकड़ी
वीर अब्दुल हमीद की 86 वर्षीय पत्नी बीबी रसूलन 22 मई सोमवार को तरनतारन के गांव आसल उताड़ में आ रही है। बीबी रसूलन को लेकर फौज की विशेष टुकड़ी गांव आसल उताड़ पहुंचेगी। बीबी रसूलन के साथ उनके परिवारिक सदस्य भी मौजूद होंगे। इस अवसर पर भारतीय सेना के अधिकारियों के अलावा खेमकरण के विधायक सुखपाल सिंह भुल्लर, पूर्व मंत्री गुरचेत सिंह भुल्लर, डीसी डीपीएस खरबंदा, एसएसपी हरजीत सिंह और एसडीएम पट्टी लवदीप कलसी भी मौजूद होंगे।
प्रधानमंत्री भी कर चुके है शहीद को सलाम
2015 में दीवाली के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तरनतारन के गांव आसल उताड़ में अचानक आए थे। मोदी ने वीर अब्दुल हमीद की यादगार पर चादर चढ़ाकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए थे। प्रधानमंत्री के दखल से वीर अब्दुल हमीद की यादगार को 1965 की जंग के शहीदों की याद में स्तंभ स्थापित किए गए।