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मोह का त्याग करने से खत्म हो जाता है दुख : नवीन मुनि

संगरूर मोह के बंधनों को तोड़कर ही धर्म के रास्ते पर चला जा सकता है। मोह को खत्म करने से दुख खत्म हो जाता है। हमारे अंदर आनंत गुण भरे पड़े हैं लेकिन हमें ज्ञान नहीं। जब तक हम भावों में नहीं बहेंगे तब तक हम ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात जैन स्थानक मोहल्ला मैगजीन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए संघ संचालक नरेश चंद महाराज के आज्ञानुवर्ती मधुर वक्ता नवीन मुनि महाराज ने कहीं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 05:08 PM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 06:21 PM (IST)
मोह का त्याग करने से खत्म हो जाता है दुख : नवीन मुनि
मोह का त्याग करने से खत्म हो जाता है दुख : नवीन मुनि

जागरण संवाददाता, संगरूर :

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मोह के बंधनों को तोड़कर ही धर्म के रास्ते पर चला जा सकता है। मोह को खत्म करने से दुख खत्म हो जाता है। हमारे अंदर आनंत गुण भरे पड़े हैं लेकिन हमें ज्ञान नहीं। जब तक हम भावों में नहीं बहेंगे, तब तक हम ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते। यह बात जैन स्थानक मोहल्ला मैगजीन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए संघ संचालक नरेश चंद महाराज के आज्ञानुवर्ती मधुर वक्ता नवीन मुनि महाराज ने कहीं। उन्होंने कहा कि जिस चीज में आप दुख मानते हैं वह दुख है, जिसमें आप सुख मानते हैं वह सुख है। जब तक हम अपने घर में हैं तब तक हम सर्दी, गर्मी महसूस करते रहते हैं लेकिन जब आप जैन स्थानक में आ जाते हैं तब मई जून के महीने में भी आप बिना एसी, कूलर यहां तक पंखे के बिना भी घंटों संतों के चरणों में बैठे रहते हो, उस समय आप गर्मी महसूस नहीं करते क्योंकि आप को पता है कि यहां तो पंखा भी नहीं चलेगा। उस समय आप अपने मन को दृढ़ बना लेते हो। बस सर्दी-गर्मी, अमीरी-गरीबी महसूस करने की चीजें हैं। हमें इन चीजों से उपर उठकर हमारे अंदर भरे आनत गुणों को महसूस करना चाहिए जो खुशी हमें कल दुखी करने वाली है, उसको आज ही छोड़ देना चाहिए।

प्रवचन भास्कर अजित मुनि महराज ने श्रावक के 12 व्रतों पर चर्चा करते हुए पांचवें अनुव्रत पर चर्चा कर समझाया कि पैसे कमाने और खर्च करने के तरीके अच्छे होने चाहिए। तृष्णा-कामना पर संतोष रखें। अनआवश्यक इच्छाएं घटाएं, इच्छा, कामना, वासना भाव परिग्रह है। परिग्रह सबसे खतरनाक ग्रह है, जिससे प्रेम खत्म हो जाता है। दान पुण्य के पीछे भी परिग्रह छिपा हुआ है लेकिन संसारी का परिग्रह के बिना गुजारा भी नहीं। जिसके लिए भगवान महावीर स्वामी ने लिमिट बनाने की मर्यादा रखी है। श्रावक को जमीन, मकान, सोना-चांदी, नौकर-चाकर, नौकरों के साथ इंसानियत से पेश आना, पशुओं-गाड़ियों की लिमिट रखना यहां तक कि सूई से लेकर जहाज तक की कोई भी आइटम है। उसकी मर्यादा रखनी होगी। आयमल की तपस्या में निशा-उषा जैन 8वें व इकाशनों की तपस्या में जीवन 113वें, अतुल 94वें दिन में प्रवेश कर चुके हैं।


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