संघर्ष से निकली हक की आवाज, ...और फिर धीरे-धीरे परमजीत के लिए यूं आसन बनती गई राह
पंजाब की परमजीत कौर ने अनुसूचित जाति की महिलाओं के सामाजिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। इसके लिए उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा।
संगरूर [मनदीप कुमार]। आजादी के सात दशक बाद भी अनुसूचित जाति वर्ग व महिलाएं सबसे अधिक शोषण का शिकार हैं। इस शोषण से आजादी कब मिलेगी यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन इसके खिलाफ समय-समय पर आवाज जरूर उठती है। इन्हीं में से एक आवाज निकली है लोंगोवाल की परमजीत कौर की।
33 वर्षीय परमजीत ने अपना जीवन दबे-कुचले लोगों को हक दिलाने में समर्पित कर दिया। एमए, बीएड पास परमजीत ने पहले लंबी कानूनी लड़ाई लड़ पंचायती जमीन में से तीसरा हिस्सा इन लोगों को दिलवाया। अब वे प्राइवेट फाइनांस कंपनियों के हाथों ठगी का शिकार महिलाओं को इंसाफ दिलाने में जुटी है। इस लड़ाई में उन्हें झूठे मुकदमों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन संघर्ष की राह नहीं छोड़ी।
परमजीत कहती हैं, सदियों से हो रहे भेदभाव को कानूनी लड़ाई व समाज की सोच बदलकर ही खत्म किया जा सकता है। आज भी एक वर्ग ऐसा है जो इन लोगों को अपना नहीं मानता। गुलाम समझता है और हर तरह की जुल्म ढाने की कोशिश करता है। यही कारण है कि इनका शोषण बढ़ रहा है और संघर्ष की आवाज कम हो रही है।
पटियाला के गांव नियाल में जन्मी परमजीत ने कॉलेज में पहली बार संघर्ष के मैदान में कदम रखा, तब फीस वृद्धि, सीटों व नाजायज फीस वसूली का विरोध कर सिस्टम को चैलेंज किया। अब वह एक योग्य सारथी के रूप में सैकड़ों महिलाओं की अगुआई कर रही हैं। घरेलू हिंसा की शिकार बहू-बेटियों को प्रेरित करके उनके घर बसाने में जुटी हैं।
आसान नहीं थी राह
संघर्ष की राह आसान नहीं थी। कदम-कदम पर परमजीत व उसके परिवार को आपदा का सामना करना पड़ा। कभी पुलिस की धक्केशाही तो कभी सियासी दबाव। विरोधियों का टकराव तो कभी सरकार की नीतियां। झूठे पर्चे दर्ज किए गए और हिरासत में लेने की धमकियां भी मिली। पति को पुलिस ने पर्चा दर्ज कर जेल में बंद भी कर दिया, लेकिन तब भी हार नहीं मानी। दो साल की बच्ची के साथ तीन महीने तक संघर्ष किया।
यहां दिलाया बनता हक
पंचायती जमीन में से तीसरे हिस्से की जमीन में अनुसूचित जाति वर्ग को पारदर्शी तरीके से बोली के जरिए जमीन दिलाने को लेकर उनका प्रयास रंग लाया। इस लड़ाई में कई गांवों में अनुसूचित जाति की महिलाओं व परिवारों को सामाजिक बायकॉट का सामना भी करना पड़ा। वहां परमजीत ने आगे आकर उनकी अगुआई की। एससी आयोग व अदालतों तक पैरवी की। उनके प्रयास की बदौलत पंचायती जमीन ठेके पर लेकर ये परिवार अपने लिए अनाज, पशुओं के लिए चारा, सब्जी इत्यादि की जरूरतों को पूरा करते हैं।
अब घरों में महिलाएं बेखौफ
ग्रामीण महिलाओं को कामकाज के लिए माइक्रो फाइनांस कंपनियां लोन देती हैं, जिसकी अदायगी आसान किश्तों में करनी होती है, लेकिन कोविड काल में इन कंपनियों ने जबरदस्ती किश्तें वसूलने, उनके सामान को नीलाम करने सहित अन्य तरह की धक्केशाही महिलाओं से की। परमजीत ने संगरूर के हर गांव में पहुंचकर इस धक्केशाही का विरोध किया। संघर्ष की बदौलत पुलिस ने फाइनांस कंपनियों के वसूली के लिए गांव में आने पर पक्की रोक लगा दी है। कोविड काल में महिलाएं अब घरों में बेखौफ हैं।
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