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पांच-छह बार भरे आवास योजना के फार्म, आज तक नहीं हुए केस पास

कहने को तो सरकार लोगों की खातिर बनाई लोक भलाई स्कीमों का लाभ जमीनी स्तर पर लाभार्थियों तक पहुंचाने के दावे कर रही है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 07 Aug 2020 09:33 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 09:33 PM (IST)
पांच-छह बार भरे आवास योजना के फार्म, आज तक नहीं हुए केस पास
पांच-छह बार भरे आवास योजना के फार्म, आज तक नहीं हुए केस पास

मनदीप कुमार, संगरूर : कहने को तो सरकार लोगों की खातिर बनाई लोक भलाई स्कीमों का लाभ जमीनी स्तर पर लाभार्थियों तक पहुंचाने के दावे कर रही है। पंजाब शहरी आवास योजना का लाभ लोगों की पहुंच से आज भी कोसों दूर है। लोग चार से छह बार कच्चे मकानों को पक्का करवाने के लिए योजना के फार्म भर चुके हैं। वार्ड के पार्षदों से लेकर नगर कौंसिल के दफ्तरों के वर्षों से चक्कर काट रहे हैं। उनकी फरियाद किसी ने नहीं सुनी। लिहाजा मानसून के मौसम में भी इन खस्ताहाल मकानों में रातें गुजारने के लिए लोग मजबूर हैं। बरसात के दिनों में किसी भी समय मकान गिर सकता है, लेकिन लोगों की इस हालत को देखने वाला कोई नहीं है।

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उल्लेखनीय है कि शहर संगरूर के 27 वार्डो में ऐसे जरूरतमंद लाभार्थियों की संख्या सैकड़ों में हैं। लोग कच्ची बल्लियों की छतों वाले मकानों में रहने को मजबूर हैं। कई बार फार्म जमा करवा चुके हैं, लेकिन योजना कागजों तक ही सीमित है। कई को योजना का लाभ नहीं मिला, तो कई को एक-दो किश्तें ही मिलने के कारण मकानों का निर्माण अधर में लटक गया है। यू कहें कि पिछले कई वर्ष गुजर जाने के बाद भी योजना सिरे नहीं चढ़ी है। परिणामस्वरूप लोगों का इस योजना पर से विश्वास उठता जा रहा है और लोग कर्जे लेकर अपने मकानों को बनाने के लिए मजबूर हैं। विधवा दादी व पोते खस्ताहाल मकान में रहने को मजबूर

स्थानीय सुंदर बस्ती की निवासी शांति देवी पत्नी स्वर्गीय बुद्ध सिंह ने कहा कि करीब एक वर्ष पहले पार्षद के माध्यम से 150 रुपये खर्च करके आवास योजना का फार्म भरा था। नगर कौंसिल में जमा करवाए थे, लेकिन इसके बाद से आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। वह अपने 19 वर्षीय पोते के साथ घर में अकेली रहती है। मकान की दीवारों में दरारें पड़ी हैं व छतें कच्ची हैं। पोता दिहाड़ी करता है, जिसके माध्यम से घर का गुजारा चलता है। कमाई को कोई साधन नहीं तो मकान की मरम्मत तक नहीं करवा सकते। बरसात की रात को कमरे से निकल बाहर बैठ जाते हैं, क्योंकि छत पर पानी जमा होने से कच्ची छत गिर सकती है। योजना का लाभ कब मिलेगा कुछ नहीं पता, कई बार पार्षद से बात की, पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। चार-पांच बार भरे फार्म, कभी नहीं मिला लाभ

संगरूर निवासी राज कौर पत्नी स्वर्गीय बंत सिंह ने बताया कि छह वर्ष पहले पति की मौत हो गई। चार बच्चे हैं। दो की शादी कर दी है, जबकि दो बच्चों के साथ वह इस छोटे खस्ताहाल मकान में रहती है। घर की छतें गिरने की कगार पर हैं, जबकि दीवारों में भी दरारें पड़ी है। गली का पानी घर में दाखिल होता है, जिसे रोकने के लिए ईंटें लगाई है तो कमरे कई फीट नीचे हो गए हैं। लड़का मजदूरी करता है, जिससे घर का गुजारा चलता है। चार-पांच बार आवास योजना के लिए फार्म भरें है, लेकिन कभी भी उनके मकानों के निर्माण के लिए फंड नहीं मिला। अब डेढ़ वर्ष पहले आखिरी बार फार्म जमा करवाया था। हर बार नगर कौंसिल दफ्तर के मुलाजिमों का कहना होता है कि जल्द पैसे मिलेंगी, लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला। योजना की आस में मंगवाई थी ईंटें, नहीं मिला कोई पैसा

संदीप कौर पत्नी तरसेम सिंह ने बताया कि मकान में दो कमरे में हैं। दोनों की छतें कच्ची हैं। शौचालय पर छत नहीं है, बल्कि टिन डालकर गुजारा कर रहे हैं। कई बार आवास योजना के बारे में पता चला और बस्ती के अन्य लोगों की भांति उसने भी करीब चार बार फार्म जमा करवाएं, लेकिन इसके बाद भी कोई लाभ नहीं मिला। छतें बरसात के मौसम में कभी भी गिर सकती है, क्योंकि छतों पर से मिट्टी भी खत्म हो गई है। बरसात में छतें झरने की भांति टपकती हैं। योजना का लाभ मिलने की आस में उन्होंने पैसे जोड़कर कुछ ईंटें खरीद ली थी, लेकिन पैसे न मिलने कारण यह ईंटें भी घर पर ही पड़ी है, क्योंकि उनके पास मिस्त्री, निर्माण सामग्री का खर्च उठाने के भी पैसे नहीं है। मजबूरन खस्ताहाल घर में ही दिन गुजार रहे हैं। ऐसे जरूरतमंदों की गिनती बड़ी, अधिकारियों से करेंगे संपर्क

यूथ इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (आइएनटीयूसी) के जिला प्रधान दविदर धालीवाल ने कहा कि एस खस्ताहाल मकानों में रहने वाले जरूरतमंद परिवारों की गिनती काफी बड़ी है। लोग कई फार्म जमा करवा चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी कोई लाभ नही मिला है। इस मामले को लेकर जल्द ही नगर कौंसिल के अधिकारियों से संपर्क करके इन केसों का पास करवाया जाएगा व इन्हें योजना की किश्तें जारी करवाई जाएंगी, ताकि यह परिवार अपना मकान बना सकें।


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