47 साल से साहित्य को सहेजने में जुटे हरबंस लाल
साहित्य.. केवल एक शब्द नहीं बल्कि ज्ञान के भंडार का सुमेल है साहित्य।
जागरण संवाददाता, संगरूर
साहित्य.. केवल एक शब्द नहीं, बल्कि ज्ञान के भंडार का सुमेल है साहित्य। आज की पीढ़ी साहित्य से दूर होती जा रही है। किताबों के प्रति रूचि कम होकर अब मोबाइल फोन तक सीमित हो गई है। किताबें पढ़ना व साहित्य को संभालना मानों बीते जमाने की बातें हो गई हैं। संगरूर के सीनियर सिटीजन हरबंस लाल गर्ग की बात करें तो वे ऐसे शक्स हैं, जिनके पास पुस्तकों, मैगजीन, अखबार, नावल व अन्य पुस्तकों का खजाना है। वह 1975 से साहित्य को सहेज रहे हैं। उन्हें केवल किताबें पढ़ने का ही शौक नहीं है, बल्कि उन्हें संभालकर अपने पास संजोकर रखने का शौक कहीं अधिक है। इसी कारण आज उनके पास करीब चार हजार से अधिक पठनीय सामग्री मौजूद है, जिन्हें वह पिछले कई दशकों से समेटने में जुटे हैं। उनका मानना है कि किताबों में ज्ञान का रस भरा है, जिस व्यक्ति को यह रस पीने की ललक लग जाए, वह न केवल ज्ञानवान बन सकता है, बल्कि वह अपने सहित अन्य लोगों की जिदगी की दिशा बदल सकता है।
सरकारी पद से सेवानिवृत्त हुए हरबंस लाल के पास आज हजारों अखबार, मैगजीन, पुस्तकें इत्यादि मौजूद हैं। बेशक आज तक लोगों ने इतनी गिनती में यह सामग्री पुस्तकालय में ही देखी होगी, लेकिन हरबंस लाल के पास यह सामग्री घर पर मौजूद है। उनका कहना है कि यह सामग्री ही उनकी जायदाद व सल्तनत है। बेशक आज की नौजवान पीढ़ी की नजरों में इन किताबों व अन्य सामग्री की कीमत कुछ भी नहीं है, लेकिन उनके लिए यह खजाना बेशकीमती है, क्योंकि उनके निजी संग्रहालय में हर पुस्तक की कोई खास अहमियत है। उनका उद्देश्य यही है कि आज की नौजवान पीढ़ी भी किताबों से प्यार करे। किताबों में बेहद शक्ति होती है, जिसकी बदौलत किस्मत को भी बदला जा सकता है। बहुत कुछ इन किताबों से सीखने को मिलता है, जिसकी हर नौजवान को जरूरत है। आज की नौजवान पीढ़ी मोबाइल फोन पर जिदगी व्यर्थ कर रही है। हां बेशक यह मानना गलत होगा कि मोबाइल फोन को ज्ञान का जरिया नहीं बनाया जा सकता है, लेकिन नौजवान मोबाइल को ज्ञान का जरिया नहीं बना रहे हैं, बल्कि मोबाइल के जरिये किताबों से दूर हो रहे हैं।
गौर हो कि हरबंस लाल गर्ग के पास साप्ताहिक हिदुस्तान, धर्मयुग, इलेक्टर्ड वीकली, दिन मान, मुम्बई इंग्लिश, चित्रपट, आत्मा, आवाज, योगी, नवशक्ति, उत्तरबिहार सहित अन्य पुस्तकें व मैगजीन मौजूद हैं।
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1975 से संजो रहे ज्ञान का भंडार उन्होंने बताया कि वह 1975 से यह विभिन्न सामग्री संग्रहित कर रहे है। गंगानगर, जयपुर, मुम्बई, बिहार, पटना, कलकत्ता, चंडीगढ़, पंजाब, दिल्ली सहित अन्य जगहों से एकत्रित कर रहे हैं। अपने कारोबार में व्यस्त रहने के बाद खाली बचने वाले समय में वह इन किताबों के साथ ही अपना समय व्यतीत करते हैं व किताबों को पढ़ने शौकीन है।
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साहित्य को जीवित रखना जरूरी उन्होंने कहा कि साहित्य को जीवित रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि लुप्त हो रहे साहित्य के बचाकर ही हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित रख सकते हैं। अगर हम किताबों के बिना दुनिया की कल्पना करें तो यह सोचने वाली बात होगी कि बिना किताबों के ज्ञान का स्त्रोत क्या होगा? नौजवान किताबों को अपनाएं व अपने ज्ञान में वृद्धि करने वाली किताबों को पढ़ने की आदत बनाएं।