Move to Jagran APP

आप उम्मीदवार के लिए सिरदर्दी बने रूठे नेता

विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को भी गुटबंदी का समाना करना पड़ सकता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 04:17 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 04:17 PM (IST)
आप उम्मीदवार के लिए सिरदर्दी बने रूठे नेता
आप उम्मीदवार के लिए सिरदर्दी बने रूठे नेता

सचिन धनजस, संगरूर

loksabha election banner

विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को भी गुटबंदी का समाना करना पड़ सकता है। पार्टी की टिकट के दावेदारों में टिकट घोषणा के बाद टिकट से वंचित अन्य दावेदार राजनीतिक परि²श्य से दूर दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, पार्टी अपने स्तर पर उन्हें चुनावी मुहिम में जोड़ने की जुगलबंदी कर रही है या नहीं, ये कहना मुश्किल है, लेकिन हालिया समय में उनका राजनीति से दूर होना आम आदमी पार्टी के लिए चुनौती भरा होने वाला है। चूंकि, टिकट न मिलने से वह घर में बैठे हैं। ऐसे दिग्गजों पर अन्य पार्टियों की पैनी नजरें भी टिकी हुई हैं।

गौर हो कि आम आदमी पार्टी की तरफ से सांसद भगवंत मान का 2014 में बूथ लगाकर सुर्खियों में आई नरेंद्र कौर भराज को चुनावी अखाड़े में उतार दिया गया है। भराज के चुनाव मैदान में उतरने के बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में 36498 मत लेकर दूसरे नंबर पर रहने वाले दिनेश बांसल खफा नजर आ रहे हैं। हालांकि, अभी तक न तो दिनेश बांसल ने आजाद चुनाव मैदान में उतरने का कोई फैसला लिया है और न ही वह नरेंद्र कौर भराज के साथ ही चलते दिखाई दिए हैं, लेकिन आम तौर पर वह पार्टी द्वारा टिकट काटे जाने से खफा जरूर दिखाई दे रहे हैं और कई मौकों पर अपना गुस्सा भी जता चुके हैं।

ऐसी ही स्थिति आम आदमी पार्टी के प्रांतीय स्तरीय नेता गुनिदरजीत सिंह जवंधा की है, जिन्होंने पिछले तीन सालों से न केवल अपने समाज सेवी कार्यों से हलके में अपनी बड़ी पहचान बनाई, बल्कि पार्टी स्तर पर हर अभियान में अहम भूमिका निभाकर पार्टी के लिए जमकर काम किया, लेकिन चुनावी टिकट कटने से वह भी खफा नजर आ रहे हैं। न तो उन्होंने अभी तक आजाद चुनाव लड़ने का फैसला लिया है और न ही वह पार्टी प्रोग्रामों में दिखाई दे रहे हैं, जिसको लेकर राजनीतिक चर्चाएं चलने लगी हैं।

राजनीतिक माहिरों का मानना है कि आम आदमी पार्टी को ऐसे नेताओं को मनाना बेहद जरूरी है, क्योंकि किसान संगठनों द्वारा चुनावी अखाड़े में उतरने के बाद आम आदमी पार्टी को ही ज्यादा नुकसान का अंदाजा है, जिसके बारे में पार्टी को खुद भी अहसास है। ऐसी स्थिति में अगर पार्टी के लिए पिछले पांच वर्षों से काम करने वाले सीनियर घर बैठ जाएंगे, तो पार्टी को नुकसान होना स्वाभाविक है।

बहरहाल, बेशक आम आदमी पार्टी द्वारा रुठों को मनाने के लिए कोई यत्न किए जा रहे हैं या नहीं, इसके बारें में तो कोई जानकारी नहीं है, लेकिन हकीकत में अन्य पार्टियां आम आदमी पार्टी से खफा वर्करों को अपने पाले में करने के लिए जुगलबंदी में जुटी हुई हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.