कारगर योजना का आभाव, न गंभीरता, न ही उल्लंघन पर कार्रवाई
केंद्र सरकार व राज्यों की सरकारें सड़कों में सुधार को लेकर बड़ी गंभीरता के साथ काम तो कर रही हैं लेकिन सड़कों पर विभिन्न वाहनों के माध्यम से चलने वालों की सोच में बदलाव लाने की किसी भी सरकार के पास कोई कारगर योजना नहीं है।
संवाद सहयोगी, रूपनगर : केंद्र सरकार व राज्यों की सरकारें सड़कों में सुधार को लेकर बड़ी गंभीरता के साथ काम तो कर रही हैं लेकिन सड़कों पर विभिन्न वाहनों के माध्यम से चलने वालों की सोच में बदलाव लाने की किसी भी सरकार के पास कोई कारगर योजना नहीं है। यही कारण है कि यातायात नियमों होने के बावजूद ज्यादातर लोग इसकी परवाह नहीं करते। इसका परिणाम हादसों के रूप में सामने आता है। जिले में जगह जगह ट्रैफिक पुलिस की तैनाती रहती है। इनका काम यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के चालान करने के साथ साथ उन्हें जागरूक भी करना होता है लेकिन इस सारी प्रक्रिया में राजसी हस्तक्षेप या सिफारिश आड़े आ जाती है और यातायात नियमों की खिल्ली उड़ाने वाले पहले से अधिक नियमों की अवहेलना करने लगते हैं। फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लेते वाहन चालक
जिले की सड़कों पर दौड़ने वाले चालीस फीसदी छोटे बड़े वाहन अपनी आयु पूरी कर चुके हैं बावजूद इसके उन्हें सड़कों पर बिना रोक-टोक दौड़ाया जा रहा है। इनमें से ज्यादातर वाहनों के पास तो फिटनेस सर्टिफिकेट भी नहीं रहता जोकि हर साल लेना अनिवार्य है। इसके अलावा कुछ ऐसे वाहन भी हैं जो तीस से चालीस वर्ष पुराने हैं लेकिन उनके मालिकों ने किसी नई माडल के एक्सीडेंटल वाहन के दस्तावेज हासिल करते हुए अपने पुराने वाहन को नए माडल का बनाया हुआ है और तीस से चालीस वर्ष पुराना वाहन सड़कों पर दौड़ रहा है।
फाग लाइट तो दूर रिफ्लेक्टर या चमकदार टेप तक नहीं होती वाहनों पर
व्यावसायिक बड़े वाहनों व छोटे वाहनों जैसे कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल, तांगा, बुग्गी, रिक्शा, थ्री-व्हीलर आदि में से 75 फीसदी वाहनों पर फॉग लाइट, बैक लाइट, पार्किंग लाइट तो लगी है लेकिन चलती कोई नहीं यहां तक कि हेड लाइट हैं तो उनके डिप्पर खराब रहते हैं जबकि कलर एवं चमकदार टेप व रिफ्लेक्टर तो बहुत कम वाहनों पर ही देखने को मिलते हैं। इन मामलों में मोटा जुर्माना हो सकता है या वाहन को इंपाउंड किया जाने का प्रावधान है।
जुगाड़ू वाहनों की भरमार
आजकल जिले में चलने वाले जुगाड़ू वाहनों के साथ साथ नियमों को ताक पर रखते हुए तैयार किए गए ट्रैक्टर ट्रालियों की भरमार हो चुकी है। अकेले जुगाड़ू वाहनों की बात करें तो जिले में वर्तमान में ऐसे वाहनों की संख्या लगभग सात-आठ सौ पहुंच चुकी है जबकि हैरानी इस बात की है कि ऐसे वाहन रखने वाले न तो सरकार को कोई टैक्स देते हैं तथा न ही ऐसे वाहनों की कोई पासिग होती है, न कोई दस्तावेज व लाइसेंस रखा जाता है। नियमों की अगर बात करें तो ऐसे वाहन किसी भी सूरत में सड़कों पर नहीं चलाए जा सकते व पकड़े जाने पर इन्हें केवल इम्पाउंड ही किया जाना होता है। वोट की राजनीति के चलते इस तरफ कोई ध्यान ही नहीं देता। लाइसेंस तक नहीं होता ट्रैक्टर चलाने वालों के पास
अब अगर कृषि की आड़ में लिए जाने वाले ट्रैक्टरों में से 80 फीसदी ट्रैक्टर ट्राली वाले कामर्शियल काम करते हैं जबकि ट्रैक्टरों पर नियमों को ताक पर रखते हुए डीजे सिस्टम तक लगाए रहते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि ज्यादातर ट्रैक्टर चालकों के पास ट्रैक्टर ट्राली चलाने का लाइसेंस तक नहीं होता। जुगाड़ू वाहनों पर होगी कार्रवाई: सर्बजीत सिंह
जिला ट्रैफिक इंचार्ज सर्बजीत सिंह की अगर बात करें तो उनका कहना है कि उनकी टीम समय-समय पर यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ अभियान चलाया जाता रहता है। वाहन चालकों को जागरूक भी किया जाता है लेकिन जरूरत लोगों के खुद जागरूक होने की है। जुगाड़ू वाहनों के बारे में कहा कि इस बारे में जिला पुलिस प्रमुख के ध्यान में लाते हुए उनके दिशा निर्देशों पर अभियान चलाया जाएगा।