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भाखड़ा बांध के लिए : 80 बजार हैक्टेयर बेकार जमीं को मिली जिंदगी, 371 गांव ने दी कुर्बानी

भाखड़ा बांध 22 अक्टूबर को 56 वर्ष पूरे करने जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 07:41 PM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 06:15 AM (IST)
भाखड़ा बांध के लिए : 80 बजार हैक्टेयर बेकार जमीं को मिली जिंदगी, 371 गांव ने दी कुर्बानी
भाखड़ा बांध के लिए : 80 बजार हैक्टेयर बेकार जमीं को मिली जिंदगी, 371 गांव ने दी कुर्बानी

सुभाष शर्मा, नंगल : भाखड़ा बांध 22 अक्टूबर को 56 वर्ष पूरे करने जा रहा है। वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद इस स्थल का गहन अन्वेषण कराया गया और 1948 में पानी, बिजली, सिंचाई व बाढ़ पर नियंत्रण के मद्देनजर परियोजना को अंतिम रूप देते हुए नींव खुदाई का काम शुरू हुआ। भाखड़ा बांध बनाने के लिए 371 गांवों को कुर्बानी देनी पड़ी। इससे करीबन 80 हजार हैक्टेयर ऐसी जमीन को जिंदगी मिली जो बेकार समझी जाती थी। इसके आसपास करीबन 4830 किलोमीटर नहरों का जाल बना हुआ है। करीबन पांच लाख पर्यटक दीदार के लिए पहुंच रहे हैं। नंगल क्षेत्र हथावत (हाथियों के रहने का क्षेत्र) के नाम से मशहूर था अब मिनी चंडीगढ़ के नाम से जाना जाने लगा है। पंजाब, हरियाणा व राजस्थान 1.25 करोड़ एकड़ जमीन को सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है। वहीं 371 गांव जलमग्न हैं और इनके अधिकांश वासी अपनी मिंट्टी से दूर हरियाणा के फतेहाबाद जिले में बसेरा बसा चुके हैं। नेहरू ने नींव में कंक्रीट डाला, 13 बार आए यहां

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पंडित नेहरू को यह स्थल इस कदर भाया कि इन्होंने जीवनकाल में 13 बार यहां चक्कर लगाए। इतना ही नहीं जब चीनी प्रधानमंत्री के साथ पंचशील समझौते के लिए जगह की तलाश शुरु हुई तो पंडित नेहरू ने इसी स्थल को उपयुक्त माना और यहीं बैठकर समझौते के करारनामे पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने हस्ताक्षर किए। 17 नवंबर 1955 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू नींव में कंक्रीट डालकर निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया। करीबन पंद्रह वर्ष चले निर्माण कार्य के बाद पंडित नेहरू ने 22 अक्तूबर 1963 को इसे देश को समर्पित किया। इस समर्पण से पूरे उत्तरी भारत की दिशा बदल गई। पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के उन खेतों को पानी के रूप में जिंदगी मिलनी शुरु हो गई। इसके साथ ही 540 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी शुरु हुआ। चार वर्ष तक चलता रहा नींव खोदने का कार्य

भाखड़ा बांध निर्माण के लिए मजबूती के मद्देनजर तैयार किए गए बाल्टी नुमा उपकरण से एक ही बार में आठ टन कंक्रीट निर्माण स्थल पर डाली जाती थी। वर्ष 1955 के 17 नवंबर को देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. पं. जवाहर लाल नेहरू ने बांध के निर्माण कार्य का कंक्रीट डाल कर नींव रखा था। दिन-रात कार्य के चलते वर्ष 1958 में डैम का निर्माण 420 मीटर तक पूरा कर लिया गया था। बांध की मजबूती के मद्देनजर करीब 4 वर्ष तक नींव खोदने व बनाने का कार्य चलता रहा। मजबूत पत्थर को काटने के लिए किए कई विस्फोट

पहाड़ के मजबूत पत्थर को काटने के लिए एक नहीं कई बार विस्फोट भी करने पड़े जिसके लिए बाकायदा यहां बांध के निकट विस्फोटक सामग्री जमा की गई थी। इस स्थल को आज ग्वालथाई के नाम से जाना जाता है। तब यह स्थान पंजाब में था, अब हिमाचल बनने के बाद भाखड़ा बांध तथा ग्वालथाई क्षेत्र जिला बिलासपुर के अधीन आ चुका है। पंजाब, हरियाणा के अलावा राजस्थान की मरु भूमि को हरा-भरा करने में अहम योगदान दे रहे भाखड़ा बांध को पं. जवाहर लाल नेहरू ने आधुनिक भारत के मंदिर की संज्ञा दी है। समुद्र तल से 518.16 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भाखड़ा डैम का कंक्रीट आधार 190.50 मीटर चौड़ा है। इसी वजह से भाखड़ा बांध को बेहद मजबूत माना जाता है।


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