कला व थिएटर के जरिए इनायत अली ने संस्कृति का किया उत्थान
कुछ कलाकार संस्कृति को आगे ले जाने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं और कुछ अपनी कला के जरिए संस्कृति को लोगों तक पहुंचाते हैं।
सुरेश कामरा, पटियाला
कुछ कलाकार संस्कृति को आगे ले जाने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं और कुछ अपनी कला के जरिए संस्कृति को लोगों तक पहुंचाते हैं। इस तरह के कलाकारों में शामिल है पंजाबी यूनिवर्सिटी में पीएचडी की स्टडी कर रहे इनायत अली। वह पिछले 16 साल से फोक थियेटर के साथ जुड़कर अपनी कला के बलबूते पर न केवल फिल्म तक स्थान हासिल करने में कामयाब रहे बल्कि वे समाजिक कुरीतियों को भी कला के जरिए दूर कर रहे हैं। उनकी एक शार्ट मूवी 'खुशबू' को फ्रांस के फिल्म फेस्टिवल में चुना गया है। इनायत ने फिल्म का चयन फ्रांस के फिल्म फेस्टिवल में होने को अपनी उपलब्धि बताया है।
इनायत अली ने बताया कि वे 2006 में फोक थियेटर के साथ जुड़े और भांड की नकल करनी शुरू की। 2012 तक भांड नकल, कामेडी व एंकरिग करने के बाद 'लड़ांगे साथी' थियेटर ग्रुप पटियाला बनाया। उसके बाद अब तक सफलता की सीढि़यां चढ़ते चले गए और पीछे मुड़कर नहीं देखा। ग्रुप सरप्रस्त के तौर पर इनायत ने गांवों में धर्मशाला, सत्थ (सार्वजनिक स्थल), स्कूल सहित अन्य स्थानों पर नशे के खिलाफ नाटक करके युवा वर्ग को नशे की बुराई बताई और उनको इस तरह की कुरीतियों से दूर रहते हुए बेहतर समाज बनाने के लिए जागरूक किया।
उसके अलावा नारी सशक्तीकरण को बढ़ावा देने के लिए नाटक 'मां' का करीब एक हजार बार मंचन किया। इसके अलावा गरीब व जरूरतमंद बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाकर उनको शिक्षा के साथ जोड़ने के लिए 'सुपणेयां दी मौत' नाटक का मंचन किया जिसमें दिखाया कि किस तरह से गरीब बच्चे पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं, जबकि समाज के लोग चाहें तो वे उनको पढ़ाने में मदद कर सकते हैं। पिता व चाचा से मिले कला के गुर
इनायत अली ने बताया कि उसने पिता लाल खान व चाचा इकबाल खान से संगीत की शिक्षा हासिल की और उसका जुड़ाव कला के साथ हो गया। ऐसे में अब उन्होंने थियेटर को अपना जीवन बनाने का लक्ष्य बना लिया है। इससे पहले उन्होंने दिल्ली दूरदर्शन पर 'लिशकारा' व 'गीत धमाल' में भी एंकरिग व कमेडी की है। उसने फिल्म 'आप मर नहीं सकते' उर्दू मूवी की। वहीं, 31 मार्च के बाद उनकी उर्दू फिल्म 'जिस्ट' आ रही है।