छह साल से नहीं जलाए खेत, मित्र कीड़ों से जमीन उपजाऊ बना रहे बीर दलविदर
पटियाला जिले के गांव कल्लर माजरी के किसान बीर दलविदर सिंह खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, पटियाला : गांव कल्लर माजरी के एमटेक क्वालीफाइड व प्रगतिशील किसान बीर दलविदर सिंह छह साल से प्राकृतिक स्त्रोत संरक्षण तकनीकों और आधुनिक खेती मशीनरी के साथ खेती कर रहा है। बीर दलविदर सिंह ने खेतों को छह साल से आग नहीं लगाई जिससे फसलों के लिए लाभदायक मित्र कीड़ों ने जमीन की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि की है। इसके साथ ही पहले की अपेक्षा खेतों में यूरिया खाद का प्रयोग भी कम होने लगा है। वहीं जमीन की पानी सोखने की क्षमता में भी वृद्धि हुई है। बीर दलविदर को नई दिल्ली में भारतीय खेती खोज परिषद और निदेशालय, खेती और किसान भलाई की तरफ से फसलों के अवशेष का उचित प्रयोग के विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कांफ्रेंस में सम्मानित किया गया। इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के किसानों ने हिस्सा लिया और इस मौके धान की पराली का उचित प्रयोग करने वाले पंजाब के 10 किसानों को सम्मानित किया। एमटेक (कंप्यूटर साइंस) की डिग्री प्राप्त करने के बाद सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर तीन साल नौकरी करने के बाद बीर दलविदर ने खेती करनी शुरू की। उन्होंने कहा कि इस बात से संतुष्ट हैं कि वह वातावरण को प्रदूषित करने वाली तकनीकों के बिना सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं। सरकार की तरफ से किसानों को धान की पराली को आग लगाने से होते नुकसान के बारे में सुचेत भी किया जा रहा है। वहीं हैप्पी सीडर पर सब्सिडी भी मुहैया करवाई जा रही है।
हैप्पी सीडर से एक बार में गेहूं की बिजाई
बीर दलविदर सिंह ने बताया कि हैप्पी सीडर की मदद से धान के बाद गेहूं की बिजाई में भी आसानी होती है। आम तौर पर किसान खेत को 7-8 बार वाहकर तैयार करता है जबकि हैप्पी सीडर के प्रयोग से एक बार में ही गेहूं की बिजाई हो जाती है। हैप्पी सीडर से बिजाई करके जहां वातावरण साफ-सुथरा रहता है। वहीं खेत में पराली मिलाने से जमीन की जैविक स्थिति में भी सुधार आता है और लेबर व ऊर्जा जैसे साधनों की बचत होती है। इस तरह गेहूं की बिजाई का खर्चा भी घटता है और झाड़ पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
पराली को खेत में जोतने की अपील
बीर दलविदर सिंह ने किसानों को धान की पराली को आग लगाने की बजाय खेतों में जोतने की अपील करते कहा कि जहां इससे वातावरण प्रदूषित होने से बचेगा। वहीं हमारे खेतों की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि होगी और आने वाली पीढि़यों को साफ-सुथरा वातावरण और उपजाऊ जमीन दे पाएंगे।