सिंगल पेरेट चाइल्ड का पढ़ाई का खर्च उठा रहीं डा. मनीषा
पिता न होने के कारण पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकने के कारण जब कुछ बच्चियों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो स्कूल में ज्वाइन हुई नई अध्यापिका ने उनका हाथ थाम लिया और उनकी पोस्ट ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई का खर्च उठाया।
गौरव सूद, पटियाला
पिता न होने के कारण पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकने के कारण जब कुछ बच्चियों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी तो स्कूल में ज्वाइन हुई नई अध्यापिका ने उनका हाथ थाम लिया और उनकी पोस्ट ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई का खर्च उठाया। करीब 26 साल की अपनी सर्विस पूरी कर चुकी लेक्चरर डा. मनीषा बंसल करीब 40 सिंगल पेरेट (जिन लड़कियों के पिता नहीं है) की पढ़ाई का खर्च उठा चुकी है। इस समय वह सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल फीलखाना में लेक्चरर है। डा. मनीषा की इस उपलब्धि के लिए पंजाब सरकार और शिक्षा शिक्षा विभाग उन्हें राज्य पुरस्कार से भी सम्मानित कर चुका है।
डा. मनीषा ने बताया कि उनकी ज्वाइनिग सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल कलियान में मास्टर कैडर में हुई थी। ज्वाइनिग के कुछ समय बाद ही धीरे-धीरे करके कुछ लड़कियों ने स्कूल छोड़ना शुरू कर दिया। पता चला कि परिवार उनकी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा पा रहा था। इस कारण मजबूरी में उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। उस दिन उन्होंने ऐसी बच्चियों की मदद करने की ठानी और करीब 26 साल बीत जाने के बाद करीब ऐसी 40 बच्चियों की सहायता कर चुकी है। अपनी क्लास से हर साल चार बच्चियां लेती हैं गोद
डा. मनीषा ने बताया कि वह अपनी क्लास में से हर साल ऐसी चार लड़कियों को गोद लेती हैं, जिनके पिता नहीं हैं। जिसके बाद वह उनका ग्रैजुएशन तक का पढ़ाई का खर्च उठाती है। पहले जहां वह दसवीं से नीचे की क्लास के बच्चे अडाप्ट करती थी, लेकिन अब पदोन्नत होकर वह लेक्चरर बन चुकी हैं और अब 11वीं के बच्चों को गोद करके उन्हें पढ़ाई करवाती हैं। बच्चे अच्छे पदों पर तैनात होते हैं तो मिलती है खुशी
डा. मनीषा बताती हैं कि उनकी सहायता के बाद जब बच्चे कोई अच्छा स्थान हासिल करते हैं तो उन्हें खुशी मिलती है। उन्होंने बताया कि उनके पढ़ाए विद्यार्थी टीचिग, मेडिकल और आर्मी में अच्छे पदों पर तैनात हैं। वह उन बच्चों से अब भी संपर्क में है और उनसे बातचीत करके उन्हें सुकून मिलता है। मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए भी करती हैं सहायता
डा. मनीषा ने बताया कि वह और उनके पति दोनों सरकारी नौकरी करते हैं और हर महीने अपने वेतन में से दोनों दसवंध निकालते हैं। इस दसवंध को किसी गुरुद्वारा, मंदिर या मस्जिद में दान करने के बजाय वह जरूरतमंद बच्चों के लिए खर्च करते हैं। बच्चों की पढ़ाई के अलावा वह जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ उनके उपचार के लिए भी खर्च करती है। इसके तहत वह पिछले करीब 12 साल से दो बच्चों की दवा का खर्च कर रही है।