कर्फ्यू से पंजाब के पर्यावरण को संजीवनी, वातावरण स्वच्छ और नदियां हुईं निर्मल
कोरोना के कारण पंजाब में कर्फ्यू लागू होने और फैक्टरियों व वाहनों के बंद होने से पर्यावरण को संजीवनी मिली है। इससे राज्य में हवा स्वच्छ हुई है और नदियों निर्मल हुई हैं।
पटियाला, [दीपक मौदगिल/गौरव सूद]। पंजाब में कोरोना के कारण कर्फ्यू लागू होेना पर्यावरण के लिए संजीवनी साबित हुआ है। कर्फ्यू से कोरोना पर लगाम लगी है तो पर्यावरण प्रदूषण समाप्त हुआ है। वायु कितना साफ कितना हुआ है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 40 साल बाद जालंधर से करीब सवा सौ किमी दूर धौलाधार पहाड़ी भी साफ दिखने लगा है। यही नहीं पिछले दो दशकों के दौरान यह पहली बार है जब विश्व पृथ्वी दिवस पर प्रदूषण स्तर में बड़ी गिरावट आई है। कर्फ्यू से पहले 22 मार्च के मुकाबले लुधियाना के एक्यूआइ में सबसे ज्यादा 72 अंक का सुधार हुआ, जबकि जालंधर में 69, बठिंडा और मंडी गोबिेंदगढ़ में 56 और पटियाला में 49 अंक का सुधार दर्ज किया गया है।
पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पीपीसीबी) के अधिकारी अधिकारी जल प्रदूषण में भी सुधार का दावा करते हैं हालांकि कितना सुधार हुआ इस बारे में अभी तथ्य जुटाया जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार कर्फ्यू में फैक्टरियां बंद होने से नदी और नाले भी निर्मल हो गए। 15 साल पहली बार नदियों का पानी नहीं इतना साफ देखने को मिला। इसमें प्रमुख रूप से लुधियाना का बुड्ढा नाला शामिल है। बोर्ड की तरफ से प्रमुख नदियों नालों की सैंपङ्क्षलग की गई है और जल्द ही इसके सकारात्मक आंकड़े सामने आने की उम्मीद है।
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3 अप्रैल को सबसे स्वच्छ रही हवा
कर्फ्यू के दौरान तीन अप्रैल को राज्य की हवा सबसे बेहतर रही। एयर क्वालिटी में आए सुधार के कारण विजिबिलिटी भी बढ़ी थी। तीन अप्रैल को पटियाला का एक्यूआइ 22 रिकॉर्ड किया गया जोकि कर्फ्यू के दौरान सबसे बेहतर रहा। जबकि जालंधर और लुधियाना का एक्यूआइ 1 अप्रैल को अपने सबसे निचले स्तर पर रहा। 1 अप्रैल को जालंधर का एक्यूआइ 24 और लुधियाना का एक्यूआइ 25 रिकॉर्ड किया गया। इसी दिन मंडी गोबिंदगढ़ का एक्यूआइ 32, बठिंडा का 30 और अमृतसर का एक्यूआइ 62 रिकॉर्ड किया गया।
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कई दशकों बाद हुआ ऐसा
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जालंधर से दिखा धौलाधार
वायु प्रदूषण कम हुआ तो विजिबिलिटी बढ़ी। बीते 3 अप्रैल को जालंधर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर धौलाधार देखने को मिला। ऐसा करीब चालीस साल बाद हुआ। यह सवा सौ किलोमीटर दूरी एरियल डिस्टेंस है जबकि सड़क मार्ग से जालंधर से धौलाधार माउंटेन रेंज की दूरी करीब दो सौ किलोमीटर है।
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राजपुरा से दिखी शिवालिक की पहाडिय़ां
3 अप्रैल को ही राजपुरा (पटियाला) से करीब 110 किलोमीटर दूर शिवालिक पहाडिय़ां देखने को मिली। राजपुरा वासियों ने कहा कि उन्होंने बीते चालीस सालों में तो यहां से यह माउंटेन रेंज नहीं देखी।
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नंगल डैम लेक का पानी भी हुआ साफ
15 अप्रैल को नंगल डैम लेक का पानी शीशे की तरह साफ देखा गया। लेक के तल पर पड़े कंकड़ व पत्थर भी स्पष्ट रूप से देखने को मिले। सतलुज का पानी हजारों मील का रास्ता तय करके मानसरोवर से इस झील में पहुंचता है और स्थानीय निवासियों मुताबिक ऐसा कई दशक बाद देखने को मिला।
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इस वजह से बढ़ता है प्रदूषण
पीपीसीबी के मेंबर सेक्रेटरी करुणेश गर्ग ने बताया कि हवा में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड दूसरी गैसों के साथ मिलकर सल्फेट और नाइट्रेट पैदा करते हैं। हवा में इन कंपोनेंट्स की मात्रा बढऩे के कारण स्मॉग पैदा होती है, जिसका असर विजिबिलिटी पर पड़ता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड मुख्य रूप से कोयले, गैस और तेल के जलने से पैदा होती हैं।
उन्होंने बताया कि इससे पैदा धुआं हवा में मिलकर स्मॉग पैदा करता है। कर्फ्यू के चलते वाहन व इंडस्ट्री करीब बंद हैं और इसका असर सीधे तौर पर पर्यावरण में दिख रहा है। स्मॉग में कमी आने से विजिबिलिटी भी बढ़ी और पर्यावारण में स्वच्छ हुआ है।