जिले में एरिथ्रोमाइसिन, विटामिन सी दवाओं की किल्लत
पठानकोट में कई दवाओं की किल्लत महसूस होने लगी है। कारण यह है कि रा मेटीरियल न मिल पाने के कारण कंपनियों में दवाओं के उत्पादन पर असर पड़ा है।
विनय ढींगरा, पठानकोट : पठानकोट में कई दवाओं की किल्लत महसूस होने लगी है। कारण यह है कि रा मेटीरियल न मिल पाने के कारण कंपनियों में दवाओं के उत्पादन पर असर पड़ा है। इस वजह से एरिथ्रोमाइसिन, विटामिन सी, अजीवक जैसी कई दवाएं उपभोक्ताओं को नहीं मिल पा रही हैं। उत्पादकों की मानें तो दवा के कच्चे माल के लिए भारत की चीन पर निर्भरता है और कम सप्लाई के कारण मेडिसिन प्रोडक्शन पर काफी असर दिख रहा है। इसकी कमी के चलते अब ये सब चीजें या तो महंगी हो रही हैं या बाजार में उपलब्ध नहीं हैं।
कई अहम दवाएं नहीं उपलब्ध
कोरोना वायरस में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली एरिथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक ब्रांड जोकि कई बड़ी कंपनियां इस साल्ट की दवा बेचती हैं उसकी भारी कमी महसूस हो रही है। कच्चे माल के दाम बढ़ने से इनकी कीमतों में उछाल आया है। इसलिए कई कंपनियां इसे कम मात्रा में बना रही हैं। विटामिन सी की एक खास ब्रांड भी काफी शार्टेज में चल रही है। इसके बदले में दूसरी कंपनी की दवाइयां बाजार में बिक रही हैं। जबकि सुन्न करने वाली दवा बुपिवकेन भी बहुत कम मात्रा में बाजार में उपलब्ध है। बाजार में इनकी किल्लत
-अजीवक 500 व 250 मिलीग्राम
- लिम्सी 500 मिलीग्राम
- विको जिक कैप्सूल
- एनाविन हैवी इंजेक्शन
- एनोक्सापरिन इंजेक्शन यह है स्थिति
दवा निर्माताओं की मानें तो लगभग 70 फीसद केमिकल चीन से आयात किए जाते हैं। पठानकोट में हालांकि कोई दवा बनाने वाली फैक्ट्री नहीं है पर यहां पर दवाएं पड़ोसी राज्य जम्मू-कश्मीर या हिमाचल प्रदेश की फैक्ट्रियों से आती हैं। कुछ दवा कंपनियां चलाने वाले कारोबारी थर्ड पार्टी से मैन्युफेक्चरिग करवाते हैं जोकि किसी दूसरी कंपनी से उस कंपनी को कुछ लाभांश देकर अपने प्रोडक्ट तैयार करवाते हैं।
कंपनियां प्रयासरत पर दिक्कत जारी : बब्बा
केमिस्ट एसोसिएशन के प्रधान राजेश महाजन ने कहा कि कंपनियों से जब सप्लाई को लेकर चर्चा हुई तो उन्होंने पड़ोसी मुल्क से रा मेटीरियल कम आना कारण जाहिर किया है। हालांकि भारतीय कंपनियां दवा की आपूर्ति पर पूरा ध्यान दे रही हैं लेकिन मांग के हिसाब से इसे पूरा करने में थोड़ा समय लगता है। उम्मीद है कि जल्द ही दवाओं की कमी दूर होगी। खुद निर्भर होने में लगेगा समय : राजेश
दवा कंपनी के एमडी राजेश कुमार के मुताबिक रा मेटीरियल के महंगा होने से फिनिश्ड प्रोडक्ट भी महंगे हो जाते हैं। हालांकि कई ब्रांड जिन पर सरकार ने बेचने की कीमत तय कर रखी है, ऐसे में मेटीरियल की कीमत बढ़ने के बावजूद भी उनके रेट बढ़ाए नहीं जा सकते। तब भी कंपनियां कोशिश करके यह ब्रांड उपलब्ध करा रही हैं। भारत आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है और उम्मीद है कि जल्द चीन पर निर्भरता धीरे-धीरे कम हो जाएगी। मरीजों को दे रहे अन्य विकल्प : अजय
केमिस्ट अजय महाजन का कहना है कि कुछ दवाएं थोक विक्रेताओं के पास भी नहीं मिल रही हैं। ऐसे में डाक्टर मरीज को दूसरी कंपनी की दवा लिखकर काम चला रहे हैं। मरीजों के लिए कई ब्रांड इस समय उपलब्ध करवाने में दिक्कत हो रही है।