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पूरे पंजाब को सीख दे रहीं पठानकोट की पंचायतें, कहीं नहीं जली पराली, दिखाया प्रबंधन का कमाल

पंजाब में इस साल भी पराली जमकर जलाई गई है लेकिन पठानकोट जिले ने अनोखा व प्रेरक उदाहरण पेश किया है। पठानकोट जिले की पंचायतें पूरे पंजाब को सीख दे रही हैं। जिले की पंचायतों ने पराली का जलाने की जगह इनका बेहतर प्रबंधन किया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 01:17 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 01:17 PM (IST)
पूरे पंजाब को सीख दे रहीं पठानकोट की पंचायतें, कहीं नहीं जली पराली, दिखाया प्रबंधन का कमाल
पंजाब में पराली अब भी जलाई जा रही है, लेकिन पठानकोट जिले में यह रुक गया है। (फाइल फोटो)

पठानकोट, [राज चौधरी]। धान का सीजन लगभग खत्म है। पंजाब में पराली जलाने के मामले 70 हजार का आंकड़ा पार कर गए। लेकिन पठानकोट जिले ने इस बार भी पराली नहीं जलाकर पूरे पंजाब के लिए मिसाल कायम की। इस सीजन में जहां फिरोजपुर, तरनतारन और अमृतसर जैसे जिलों में ये मामले पांच-पांच हजार की संख्या पार कर गए, वहीं पठानकोट में महज एक केस सामने आया।

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पठानकोट में प्रशासन की पहल पर पंचायतों ने एकजुट होकर किसानों को जागरूक किया, जिसका यह सुपरिणाम है। 2019 में भी यहां केवल दो जगह पराली जली थी, जबकि 2018 में नौ और 2017 में 16 केस सामने आए थे। हर साल सुधरता यह आंकड़ा यहां के किसानों की जागरूकता और पर्यावरण के प्रति उनके लगाव को भी दर्शाता है। इनकी यह धारणा 2015 में तब बदली, जब यहां 200 से अधिक जगह पराली जली थी। हालांकि तब किसानों पर कार्रवाई तो नहीं हुई, लेकिन प्रशासन ने इस ओर गंभीरता दिखाई। योजनाबद्ध तरीके से इसे काबू किया गया।

कृषि विभाग के साथ मिलकर सक्रियता बढ़ाई गई और 400 से अधिक पंचायतों से संपर्क साधा गया। जनप्रतिनिधियों को साथलेकर किसानों को जागरूकता की मुहिम से जोड़ा गया। फिर पंचायतें खुद भी सजग होती गईं और किसानों को समझाने लगीं। सामूहिक प्रयास का ऐसा असर हुआ कि दो साल बाद ही 2017 में पंजाब सरकार से पठानकोट जिले को पराली प्रबंधन के लिए सम्मान हासिल हुआ। इस बार 422 में से 365 पंचायतों ने पहले ही प्रस्ताव पारित कर दिया था कि पंच न तो खुद पराली जलाएंगे और ना ही

गांव में जलने देंगे।

उनकी देखादेखी दूसरी पंचायतें और किसान भी जागरूक हुए, जिसका नतीजा सबके सामने है। जिले में हर साल करीब 27 हजार एकड़ रकबे में धान का उत्पादन होता है और एक लाख 62 हजार टन पराली निकलती है। लेकिन उसे खेतों में ही जला देने की बजाय इसका समुचित निपटान किया जाता है। पराली को लेकर यहां जागरूकता का आलम यह है कि सीजन में मंदिर, गुरुद्वारों और मस्जिदों से रूटीन अनाउंसमेंट होता है। इस बार छह ब्लाक में टीमों का गठन कर समन्वयक तैनात किए गए। उन्होंने लोगों को जागरूक भी किया और पैनी नजर भी रखी।

पंजाब के बाकी हिस्सों के मुकाबले यहां पैदावार अपेक्षाकृत भले ही कम है, लेकिन किसानों में जागरूकता कहीं अधिक है। 2019 में पराली जलाने के एक मामले में ढोलोवाल के सरपंच को सस्पेंड कर दिया गया था। सरपंच

का कसूर महज इतना था कि उसने पराली जलाने की सूचना विभागीय स्तर पर नहीं दी थी। प्रशासन की इस सख्ती ने भी डर का काम किया। यहां किसान पराली को सहेज कर पशुओं के चारे के रूप में उपयोग करते हैं। जिनके यहां अधिकता में होती है, वह पशुपालक समुदायों को और गोशाला इत्यादि को इसे बेचकर मुनाफा कमाते हैं।

जिला स्तर पर हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, उलटावीं हल और अन्य यंत्र भी प्रशासन ने इन्हें उपलब्ध करवाए हैं, जिससे पराली का प्रबंधन आसान हो गया है। इनसे पराली को जमीन में ही मिला देते हैं। गांव भरियाल लाहड़ी के किसान हरदीप सिंह ने सात साल से पराली नहीं जलाई है। पहले वह पराली को पशुपालकों को बेच देते थे, लेकिन अब खेतों में ही मिक्स कर देते हैं। हरदीप सिंह जैसे सैकड़ों किसान हैं जिन्हें पराली नहीं जलाए अरसा हो गया है।

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'' हमें खुशी है कि पठानकोट को पराली के प्रदूषण से मुक्त करने में हम कामयाब रहे। किसानों के साथ-साथ पंचायतों और संबंधित विभाग के हर एक सदस्य का योगदान रहा। सीजन समाप्त होने को है, किंतु सभी 30 नवंबर तक ड्यूटी देंगे।

                                                                      - डॉ. हरतरन पाल सिंह, मुख्य कृषि अधिकारी, पठानकोट।


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