सिर्फ एक सवाल ने मुझे इतना झकझोरा कि फिर किताब लिखकर ही दिल माना
कविताएं और कहानियां लिखने का शौक बचपन से ही था। हालांकि ऐसा कोई शौक और सोच नहीं थी कि मुझे किताबें लिखनी हैं।
विनोद कुमार, पठानकोट :
कविताएं और कहानियां लिखने का शौक बचपन से ही था। हालांकि, ऐसा कोई शौक और सोच नहीं थी कि मुझे किताबें लिखनी हैं। जीवन में सब ठीक चल रहा था, पर एक दिन चर्चा के दौरान पठानकोट के इतिहास को लेकर मुझसे किसी ने सवाल पूछ लिया तो मेरे पास उसे बताने को कुछ नहीं था। बस वो एक सवाल मुझे अंदर तक झकझोर गया और मैंने ठान लिया कि अब मुझे पठानकोट का इतिहास जानना भी है और लोगों को बताना भी है। यह कहना है कि 82 वर्षीय बलदेव राज कूपर (बीआर कपूर) का।
उल्लेखनीय है कि कविताएं और छोटी-छोटी कहानियां लिखने के साथ ही बीआर कपूर ने तीन किताबें लिखी। इनमें सबसे पहले उनके द्वारा लिखी गई किताब 'सिसकियां', फिर पठानकोट का इतिहास और तीसरी किताब पठानिया राजवंश का इतिहास है।
बीआर कपूर बताते हैं कि वह मूल रूप से धारीवाल के रहने वाले हैं। डीसी कार्यालय गुरदासपुर में वह नौकरी करते थे। इसके बाद वह 1982 में पठानकोट आकर बस गए। परिवार में उनकी तीन बेटियां हैं जिनकी शादी हो चुकी है। पत्नी स्वर्णलता कपूर का करीब चार साल पहले निधन हो गया था। बचपन से किताबें पढ़ने और लिखने का शौक था। पठानकोट में जब वह आए तो किसी कार्यक्रम के दौरान बातों ही बातों में पठानकोट के बारे में किसी ने कोई जानकारी पूछी जिसके बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी। इसके बाद उनके मन में आया कि वह कुछ ऐसा करेंगे जिससे न सिर्फ उन्हें पठानकोट की जानकारी होगी, बल्कि सभी उनके द्वारा एकत्रित की गई जानकारियों को इतिहास के रूप में याद करेंगे। हालांकि, इससे पहले उन्होंने 'सिसकियां' किताब लिखी हुई थी, जिसे लोगों ने काफी सराहा भी था।
उन्होंने बताया कि 2004 में पठानकोट के इतिहास की जानकारियां एकत्र करना शुरू की। इसके लिए कभी दिल्ली तो कभी हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में जाना पड़ा। आखिरकार उन्हें सफलता मिली और 2009 में पठानकोट के इतिहास पर किताब लिखी। इसे पठानकोट ही नहीं बल्कि साथ लगते पड़ोसी राज्यों हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में काफी सराहा गया। इसके बाद पठानिया राजवंश का इतिहास लिखने में तीन साल का समय लगा। दोनों किताबें लिखने में बड़ी बेटी शैरी ने बहुत मदद की।
बीआर कपूर बताते हैं कि उनका स्वास्थ्य अब ठीक नहीं रहता और उनके दामाद राजेश भूटानी व बेटी उपासना उनका ख्याल रखते हैं। उन्होंने कहा कि सेहत खराब होने के कारण अब कुछ लिख पाना मुश्किल है लेकिन, अभी भी उनकी दोहती रिद्धि जो कि तुगलकाबाद में इंग्लिश टीचर है जो उनका हौसला बढ़ाती है। वह उसका पूरा ख्याल रखती है और जब भी छुट्टी होती है तो दिन भर उनके साथ रहकर उनकी लिखी किताबों व अन्य जानकारियों के बारे में याद दिलाती रहती है ताकि वह उदास न हो।